संत और श्रद्धालु नाहरगढ़ अभ्यारण्य के प्रवेश द्वार को अन्यत्र बनाने पर अड़े
जयपुर। विद्याधरनगर के पापड़वाले हनुमान जी मंदिर के पास वन विभाग की ओर से बनाए जा रहे नाहरगढ़ अभ्यारण्य (मायलाबाग) के प्रवेश द्वार को अन्यत्र बनाने अथवा पापड़ेश्वर महादेव मंदिर तक श्रद्धालुओं की निर्बाध आवाजाही के लिए अलग से मार्ग बनाने की मांग को लेकर मंगलवार को पापड़वाले हनुमानजी मंदिर में महंत रामसेवकदास महाराज के सानिध्य में धर्म सभा का आयोजन किया गया। त्रिवेणी पीठाधीश्वर खोजीचार्य रामरिछपाल दास महाराज, अग्र पीठाधीश्वर डॉ. राघवाचार्य महाराज ने एक स्वर में कहा कि वन विभाग ढाई हजार वर्ष से अधिक प्राचीन शिव मंदिर में श्रद्धालुओं को जाने से रोक रहा है। यह हिन्दू आस्था पर आघात है, इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. गोपाल शर्मा ने कहा श्रद्धालुओं को मंदिर तक जाने से रोकना पूरी तरह गलत है। सरिस्का और रणथम्भोर अभ्यारण में भी मंदिर है, लेकिन वहां तक श्रद्धालुओं को आने जाने में किसी तरह की रोक टोक नहीं है। वन विभाग को हठधर्मिता छोड़कर भक्तों के लिए अलग से एक रास्ता देना चाहिए। भक्तों के अभ्यारण्य में जाने से अभ्यारण्य की ही शोभा बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकार के स्तर पर वार्ता कर कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा।
हीरापुरी महाराज, हरिशंकरदास वेदांती, बाहुबलदेवाचार्य बलदेवदास महाराज, अरणिया धाम के हरिदास महाराज, श्री रामानंदापीठाधीश्वर प्रहलाद दास महाराज, योगीराज रघुनंदनदास महाराज, चेतराम शरण, हरिदास, रामसेवक दास, ईश्वरदास, रामचरितदास, मनु महाराज सहित अन्य संतों ने एक स्वर में घोषणा की कि यदि दस दिन में मांगें नहीं मानी गईं तो प्रदेश के संत समाज को साथ लेकर विधानसभा कूच करेंगे। मंदिर बचाओ-सनातन बचाओ के आह्वान पर हजारों की संख्या में पापड़ वाले हनुमान मंदिर में श्रद्धालुओं ने जय श्रीराम के जयकारों से वातावरण गुंजायमान कर दिया। संत प्रकाशदास महाराज ने देशभक्ति गीतों और भजनों से वातावरण में जोश भर दिया। इसके बाद सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया गया।
हेमंत सेठिया ने आगामी कार्य योजना पर प्रकाश डाला। वहीं स्थानीय विधायक नरपत सिंह राजवी ने अभयारण्य का मुख्य द्वार अन्यत्र बनाने अथवा मंदिर में श्रद्धालुओं को जाने के लिए अलग से रास्ता सुनिश्चित करने की मांग करते हुए वन विभाग के अधिकारियों को लिखा पत्र संत समाज को सौंपा।