नित्य हमारी यही साधना
डॉ. श्रीकांत भारती
प्रकृति भले विपरीत खड़ी हो,
कालचक्र भी पड़े थामना।
संकट के तूफानी सागर,
चीर करेंगे सफल सामना॥
सतत् हमारी यही योजना,
नित्य हमारी यही साधना॥धृ॥
हिन्दु धर्म की श्रेष्ठ आन पर,
है प्रहार अब छल असत्य का।
किन्तु सजग निर्भय सधैर्य हो,
रखना सम्बल धर्म-कृत्य का॥
अविरल जीवन चले जगत् में,
सृष्टि धर्म की यही कल्पना॥1॥
नित्य हमारी यही साधना…….
नये-नये ढंग विकसित होंगे,
नयी-नयी पद्धति आयेंगी।
संस्कृति वही पुरानी अपनी,
जन-जीवन को सरसायेगी॥
चक्र-अखण्डित यही सृष्टि का,
यही सृजन की सहज धारणा॥2॥
नित्य हमारी यही साधना ……
विघ्नों के गिरि अचल अनामिक,
कदम-कदम हर पग रोकेंगे।
भरी दुपहरी का रवि ग्रस लें,
ऐसे राहु-केतु डोलेंगे॥
किन्तु अटल निर्बाध बढ़ें हम,
जीवन की गति सहज भावना॥3॥
नित्य हमारी यही साधना …….
सुख-दुख-विपदा-बाधा-सुविधा,
यही मार्ग मीलों के पत्थर।
किन्तु इसी में आनन्दित हो,
खोजें हम उन्नति के अवसर॥
विजय सुनिश्चित भरतभूमि की,
चाहे सागर पड़े बाँधना॥4॥
नित्य हमारी यही साधना…….
संघ सृष्टि इस कण्टक पथ की,
बीहड़ता की भी अभ्यासी।
दिखी लालिमा ध्येय-सूर्य की,
थोड़ी धैर्य परीक्षा बाकी॥
लाँघ चलें यत्नों की सीमा,
निश्चित होगी सफल कामना॥5॥
नित्य हमारी यही साधना………..