नीट और जेईई परीक्षा : नौनिहालों के कंधों पर सियासी बंदूक से क्या मिलेगा?

नीट और जेईई परीक्षा : नौनिहालों के कंधों पर सियासी बंदूक से क्या मिलेगा?

कुमार नारद

नीट और जेईई परीक्षा : नौनिहालों के कंधों पर सियासी बंदूक से क्या मिलेगा?

आश्चर्य की बात है कि लॉकडाउन के दौरान बार बार केंद्र से शराब के ठेके खोलने की मांग करने वाले राज्य नीट और जेईई की परीक्षा के आयोजन से डर रहे हैं। सरकारी खजाने में राजस्व जुटाने के लिए शराब के ठेके खोले जा सकते हैं, लेकिन बच्चों का भविष्य बचाने के लिए परीक्षाओं का आयोजन नहीं करवाया जा सकता! लगता है शिक्षा और विद्यार्थी राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है।

आंतरिक लोकतंत्र पर उठे तूफान की दिशा मोड़ने के लिए सबसे नाजुक और अराजनैतिक कंधों का सियासी सहारा न जाने कितने दिनों तक सांसें दे पाएगा। उखड़ते सियासी पांवों को जमाने के लिए जब देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी मासूम बच्चों के पढ़ाई से बोझिल कंधों का सहारा लेने के लिए शोर मचाने लगे, तो समझ लेना चाहिए कि तिलों में तेल अब सिर्फ महसूस करने लायक ही बचा है। पहली कतार के बुजुर्ग, अनुभवी और ताजगी की चाह रखने वाले लीडरान के शब्दों को भोंटा करने और अपने खास सिपहसालारों के जरिए संगठन में तथाकथित ऊर्जा भरने के लिए बच्चों के भविष्य से खेलने का देश में यह संभवतया पहला अवसर है। कांग्रेस और गैर कांग्रेस शासित सात राज्य नीट और जेईई परीक्षा को स्थगित करने के लिए उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करना चाहते हैं। लेकिन उच्चतम न्यायालय पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि विद्यार्थियों का एक साल नष्ट नहीं किया जा सकता है।

देशभर में विद्यार्थी परीक्षा देना चाहते हैं। नीट और जेईई के नब्बे प्रतिशत से ज्यादा अभ्यर्थी अपने एडमिट कार्ड डाउनलोड कर चुके हैं। यह संकेत करता है कि छात्र ये परीक्षाएं देना चाहते हैं। जेईई मेन की परीक्षा एक से छह सितंबर के बीच और नीट की परीक्षा 13 सितंबर को आयोजित होगी। इससे पहले दोनों ही परीक्षाएं दो बार टाली जा चुकी हैं। आखिर साल भर से तैयारी कर रहे बच्चे कब तक प्रतीक्षा करते रहेंगे। क्या उनका एक साल सियासत के भेंट चढ़ा दिया जाए। जब राज्यों में अन्य परीक्षाएं आयोजित हो सकती हैं, तो नीट-जेईई के विरोध में हो आंदोलन का उद्देश्य क्या है? क्या केंद्र के हर निर्णय का विरोध करना ही राजनीति रह गया है? और विरोध के लिए मासूमों का कंधा क्यों? क्या इन आंदोलनों में नीट-जेईई की परीक्षा दे रहे छात्र शामिल हो रहे हैं? नहीं। इस महामारी के बीच भी छात्र हौंसला रखते हुए परीक्षा देना चाहते हैं तो यह राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे उन विद्यार्थियों के लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए शांतिपूर्ण परीक्षा का आयोजन करें।

राजस्थान में सरकार इस परीक्षा के आयोजन का विरोध कर रही हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि राजस्थान में प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने बहुत पहले ही प्री डीएलएड की परीक्षा की तारीखें घोषित कर दी थी- 31 अगस्त। इस परीक्षा में प्रदेश में छह लाख 70 हजार विद्यार्थी इस परीक्षा में हिस्सा लेंगे। इसके अलावा 20 से 27 सितंबर के बीच होने वाली सहायक वन संरक्षक परीक्षा में एक लाख बीस हजार अभ्यर्थी बैठेंगे। 3 से 12 सितंबर के बीच होने वाली दसवीं और बारहवीं की बोर्ड की पूरक परीक्षाओं में लगभग एक लाख बीस हजार परीक्षार्थी हिस्सा लेंगे। क्या कोरोना से खतरा सिर्फ नीट और जेईई की परीक्षा दे रहे अभ्यर्थियों को ही है? प्रशासन जब उन परीक्षाओं की व्यवस्था करवा सकता है तो नीट और जेईई के लिए क्यों नहीं?

जेईई और नीट पर सरकार का दोगला रवैया

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी इन दोनों परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिए कोरोना महामारी को देखते हुए सोश्यल डिस्टेंसिंग, शिफ्टों की संख्या, एक कमरे में अभ्यर्थियों की संख्या, परीक्षा केंद्रों की संख्या और अभ्यर्थियों की प्राथमिकताओं पर लगातार काम कर रही है, जिससे अभ्यर्थियों का एक साल बर्बाद न हो। उसी कालखंड में इसे राजनैतिक हथियार बनाकर विद्यार्थियों के भीतर मानसिक दुविधा पैदा करना सकारात्मक राजनीति तो बिलकुल भी नहीं कही जा सकता। इसे राजनैतिक मुद्दा न बनाते हुए राज्य सरकारों को नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की गाइडलाइन के अनुसार प्रशासन को निर्देश जारी करने चाहिए और ऐसे अभ्यर्थियों को विशेष सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए जो परीक्षा केंद्रों से दूर दराज के क्षेत्र में रहते हैं और जिन्हें परीक्षा केंद्र तक आने में कठिनाई हो सकती है। परीक्षा केंद्रों पर कोरोना से बचाव के उपायों पर फोकस करना चाहिए।

देश की सभी आईआईटी, डीयू, जेएनयू, और कई विदेश स्थित विश्वविद्यालयों के सैकड़ों शिक्षाविद् केंद्र सरकार को पत्र लिखकर भी कह चुके हैं कि इन परीक्षाओं में देरी हुई तो यह बच्चों के भविष्य के साथ समझौता करना जैसा होगा। उन्होंने कहा है कि कुछ लोग अपने राजनीतिक एजेंडे के चक्कर में विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।

आश्चर्य की बात है कि लॉकडाउन के दौरान बार बार केंद्र से शराब के ठेके खोलने की मांग करने वाले राज्य इन परीक्षाओं के आयोजन से डर रहे हैं। सरकारी खजाने में राजस्व जुटाने के लिए शराब के ठेके खोले जा सकते हैं, लेकिन बच्चों का भविष्य बचाने के लिए परीक्षाओं का आयोजन नहीं करवाया जा सकता! लगता है शिक्षा और विद्यार्थी राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं है। सियासत के भविष्य के लिए एक ही होटल में सैकड़ों की संख्या में लोग एक साथ महीने भर तक रुक सकते हैं, तो बच्चों को उनके भविष्य के लिए एक परीक्षा केंद्र पर तीन घंटे तो गुजारने दीजिए। उन्हें अपना भविष्य खुद तय करने दीजिए। प्रशासन उन्हें कोरोना से बचाव के उपाय और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध करवाकर अपना कर्तव्य निभा पाए, तो देश के भविष्य के बड़ी सौगात होगी। बच्चों का एक साल खराब होने से बच जाएगा। इसलिए यह वक्त नकारात्मक राजनीति को छोड़कर देश के नौनिहालों के भविष्य को संवारने का है।

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