नूंह मेवात की हिंसा का सच

अवधेश कुमार
नूंह मेवात की हिंसा को जो भी गहराई से देखेगा, वह चिंतित और भयभीत हो जाएगा। मैं दो साथियों सामाजिक कार्यकर्ता भारत रावत एवं जमात उलेमा ए हिन्द के प्रमुख मौलाना सोहेब कासमी के साथ कर्फ्यू तथा भय के बीच उन सारे स्थानों पर गया, जहां हिंसा हुई थी। क्षेत्र के कुछ लोगों से मिलने का प्रयास किया, जिनसे सम्भव हुआ, उनसे बातचीत कर स्थिति को समझा। किसी भी धार्मिक यात्रा को लेकर इससे पहले इस तरह की हिंसा भारत में नहीं हुई थी। जो लोग उसे सामान्य तनाव या दो पक्षों के टकराव के रूप में देख रहे हैं, उन्हें एक बार वहां जाकर स्वयं सच्चाई देखनी चाहिए। किसी भी हिंसा, तनाव या समस्या में जो सच है, उसे छिपाने का प्रयास होगा तो न सच्चे दोषी पकड़े जाएंगे और न इनकी पुनरावृति की संभावनाओं को समाप्त किया जा सकेगा।
तो सच क्या है?
जलाभिषेक यात्रा नल्हर महादेव मंदिर से निकलकर फिरोजपुर झिरका तक जाने वाली थी। नल्हर महादेव मंदिर अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में है। वहां से निकलने का एक ही मार्ग है जो नूंह शहर की ओर आता है। आगे दो तरफ रास्ते फूटते हैं, जिनमें एक मेडिकल कॉलेज होते हुए नूंह शहर निकल जाता है और दूसरा सीधे नूंह शहर से मुख्य हाइवे तक। मंदिर के आस पास दूर तक बस्ती नहीं है। यात्रा निकलने के 50 गज दूर आपको वाहनों एवं अन्य सामग्रियों के जले हुए अवशेष दिखाई देने लगेंगे। पुलिस द्वारा जले हुए वाहनों के अवशेषों को पूरी तरह हटाने तथा सफाई करने के बावजूद काफी कुछ है जो बताता है कि हमला कितना भीषण रहा होगा। जब वहां कोई बस्ती है ही नहीं तो इतने वाहनों के जलने का कारण क्या हो सकता है?
पता चला कि यात्रा आगे बढ़ी, कुछ लोग आगे निकल गए, कुछ बीच में थे और बीच वाले से हमले शुरू हो गए थे। लोगों को जान बचाने के लिए मंदिर की ओर ही वापस दौड़ना पड़ा। यात्रा में महिलाएं और बच्चे भी थे। पीछे पहाड़ से भी गोलियां चलाए जाने की बात बताई जा रही है। कुछ जो आगे निकल गए उन पर भी आगे हमले हुए। जहॉं अभिषेक को गोली मारने और गला काटने का समाचार आया, वह स्थान थोड़ा आगे मेडिकल कॉलेज का चौक है। कोई भी यात्रा निकलती है तो कुछ लोग आगे मोटरसाइकिल या कार आदि से जाते हैं ताकि सड़क खाली कराकर यात्रा निकलने की व्यवस्था की जाए। उसी में वह नौजवान आगे निकल गया था। वहां जाने पर समझ में आ जाता है कि मंदिर में जान बचाकर छिपे हुए लोगों को सुरक्षित निकालने में पुलिस को बहुत ज्यादा समय क्यों लगा होगा?
वास्तव में मंदिर के आगे खाली स्थान या उससे आगे की बस्ती से पत्थरों, गोलियों के हमले तथा पुलिस के साथ मुकाबले इतने सघन थे कि किसी को भी ले जाना खतरे से भरा था। पुलिस ने पहले कुछ घंटों में हिंसक तत्वों को परास्त करने का प्रयास किया, लेकिन देर लगने पर फायरिंग कवर देते हुए थोड़ी-थोड़ी संख्या में पुलिस घेरे के बीच पुलिस वाहनों में धीरे-धीरे लोगों निकालना शुरू किया। इसमें देर रात हो गई। कर्फ़्यू और तनाव के कारण वहां नेताओं को तलाशना और उनका मिलना कठिन था। शहर में आम आदमी पार्टी के नेता फखरुद्दीन अली अपने घर में मिले। उन्होंने कहा कि इस तरह धार्मिक यात्रा पर हमले की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पहले झड़प हुई, पुलिस आई, उसने हवाई फायरिंग की, कुछ लाठियां चलाईं। ऐसा करने पर दंगाई भाग जाते थे। लेकिन इस बार पुलिस के साथ वे जिस ढंग से मोर्चाबंदी कर रहे थे, चारों तरफ हमले और आगजनी कर रहे थे, उससे स्पष्ट लगता है कि पूरी योजना बनाई गई थी। हालांकि उनका कहना था कि यह योजना हमारे मेवात में न होकर शायद राजस्थान के क्षेत्र में हुई। नूंह जिला और पूरा मेवात एक ओर राजस्थान के अलवर से लगता है तो दूसरी ओर मथुरा, भरतपुर आदि से जुड़ा है। दूसरे लोगों ने भी कहा कि यात्रा नूंह से निकलकर आगे जाती, बड़कली तक पहुंच जाती तो कुछ हजार लोग मर सकते थे। ध्यान रखिए यात्रा सौ गज भी नहीं चल पाई।
नूंह शहर में भी हिंसा करने वाला समूह अलग-अलग दिशाओं में बंट गया, इस कारण भी मरने और घायल होने वालों की संख्या काफी कम रही। कुछ दुकानें लूटने लगे, जलाने लगे, तो कुछ बसों को रोककर लोगों को उतारकर उनमें आग लगाने लगे। नूंह साइबर थाने का दृश्य भी आपको बहुत कुछ समझा देगा। एक बस पर हमला कर उस पर कब्जा किया गया और उसको चलाते हुए साइबर थाने की दीवार तोड़ी गई, पुलिस की गाड़ियां चकनाचूर की गईं। साफ लगता है कि हमलावरों का लक्ष्य साइबर थाने के रिकॉर्ड को नष्ट करना था। मेवात पूरे देश में साइबर अपराध का सबसे बड़ा केंद्र है। पिछले दिनों ही वहां 300 से अधिक स्थानों पर छापेमारी हुई, भारी संख्या में लोग पकड़े गए तथा ऐसी-ऐसी सामग्रियां बरामद हुईं जो भौंचक करने वाली थीं।
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का कहना था कि यात्रा निकालने वालों ने तनाव की स्थिति पैदा की। यदि ऐसा था तो दंगाइयों द्वारा साइबर थाने पर हमले का कोई कारण नहीं होना चाहिए। सड़कों पर चलती बसों से लोगों को उतार कर उनको अपमानित करना और उन बसों को जलाने का भी कारण नहीं हो सकता। अगर कुछ आपत्तिजनक या उत्तेजक था तो उसकी शिकायत पुलिस प्रशासन से होनी चाहिए न कि इतनी जगहों पर भीषण हमले। वहां सदर थाना और अलग पड़े जले हुए वाहनों के अवशेष देखेंगे तो दंग रह जाएंगे। सामान्य कारों में तो लोहे के अलावा कुछ बचा ही नहीं। बसों की स्थिति भी लगभग यही है। इस तरह वाहनों को जलाना बिल्कुल प्रशिक्षित व प्रोफेशनल लोगों का काम है। तात्कालिक गुस्से और उत्तेजना में वाहनों को थोड़ी क्षति पहुंच सकती है, धू-धू कर मिनटों में खाक नहीं किया जा सकता। यह बताता है कि योजनाबद्ध तैयारी हुई, प्रशिक्षण दिया गया, संसाधन जुटाने जुटाए गए। इतनी मात्रा में पेट्रोल मिनटों व घंटों में जमाकर वितरित नहीं किया जा सकता। वीरान में सीसीटीवी था नहीं कि हमलावर नजर आएं। आगे के कुछ वीडियो उपलब्ध हैं। कुछ भवनों को बुलडोजर से ध्वस्त किया गया, जिनसे पत्थर व अन्य सामग्रियां फेंकी जाती दिखीं। लोगों ने उन छतों से पत्थर चलते, पेट्रोल बम फेंके जाते देखे। जिस सहारा होटल में सबसे ज्यादा पत्थर और बाकी चीजें मिलीं, वह सदर थाने से कुछ गज की दूरी पर है। अरावली की पहाड़ियों से पत्थर काटे जाते हैं। उनको ढोने वाले डंपरों की संख्या काफी है इसलिए पत्थर कहीं आए तो सामान्यतः संदेह नहीं होता।
नूंह से 20 किलोमीटर दूर बड़कली की स्थिति भी भयावह थी। वहां नूंह जिला भाजपा के महासचिव की तेल मिल पर दोपहर में हमला हुआ, उसे पूरी तरह जला दिया गया, वहां खड़ी दो गाड़ियां भी आग को समर्पित कर दी गईं। लोगों ने बताया कि पुलिस 12 बजे रात के बाद वहां पहुंची। वहां 20-22 दुकानें जली हैं, जो हिन्दुओं की हैं। लोगों ने कहा कि हम अभी भी रात में जागकर डरते हुए अपनी दुकानों की रक्षा करते हैं, न जाने कब हमला हो जाए। वहां मुख्य चौक पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कुछ जवान हैं, सुरक्षा के लिए पुलिस नहीं है। प्रश्न है कि इतनी दूर उन दुकानों को निशाना क्यों बनाया गया? इतने भीषण अग्निकांड के लिए सामग्री, उतनी संख्या में लोग अचानक तो नहीं आ सकते। नूंह में भी हिन्दुओं की ही दुकानें लूटी और जलाई गईं।
इस तरह आप पूरी हिंसा की एक तस्वीर बनाएं तो साफ दिख जाएगा कि इसके पीछे लंबे समय की तैयारी थी। बिना जगह-जगह बैठकों, लोगों को तैयार किए, उनको संसाधन उपलब्ध कराए तथा प्रशिक्षित किए इस तरह की हिंसा संभव नहीं है। घटनाएं कुछ लोग करते हैं और परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ता है। मेवात भय व तनाव से गुजर रहा है। पुलिस प्रशासन की विफलता स्पष्ट है। दोपहर 12 बजे के थोड़े समय बाद यात्रा पर हमला हुआ। जो थोड़े पुलिस वाले साथ थे, उन्हें जान बचानी पड़ी। लोग हमलों के बीच मंदिर की ओर भागने को विवश थे। पुलिस वहां 5 बजे के आसपास पहुंची है। पूरा शहर हमलावरों के नियंत्रण में था। यह स्थिति बदलनी चाहिए। जिन पर हमले हुए, जिनकी दुकानें जलाई गईं, उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए। हिंसा करने और करवाने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उनके अंदर ऐसा डर पैदा होना चाहिए कि वे दुबारा साहस न करें। यह सब प्रशासन और सरकार का दायित्व है। दूसरी ओर अतिवादी विचारों की ओर जा चुके युवाओं को वापस मुख्यधारा में लाना भी अत्यंत आवश्यक है।