नूंह हिंसा, संयोग या प्रयोग?
अवधेश कुमार
हरियाणा के नूंह जिले से लेकर गुरुग्राम और होडल तथा आसपास के क्षेत्रों में धू-धू कर जलती गाड़ियों के वीडियो तथा जली हुई गाड़ियों की कतारें यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वहां क्या कुछ हुआ होगा। वास्तव में नूंह की हिंसा ने भी हर संवेदनशील भारतीय को हिला दिया है। यह अलग बात है कि जिस स्वरूप में चर्चा मणिपुर की हो रही है, वैसी नूंह की नहीं। पहले से पुलिस द्वारा अनुमति प्राप्त और कई वर्षों से चलने वाली वार्षिक धार्मिक यात्रा को केंद्र बनाकर किए गए हमलों में अगर पुलिसकर्मियों को गोली मारी जाए, यात्रा में शामिल लोग कई घंटों तक चारों तरफ चल रही गोलीबारी और पत्थरबाजी के बीच मंदिर में छिपे रहने को विवश हों, रास्ता इस तरह जाम कर दिया जाए कि पुलिस बल आगे न जा सके तथा केन्द्र को एअरलिफ्ट से सुरक्षाबलों को उतारना पड़े तो इससे भयावह स्थिति कुछ नहीं हो सकती। होडल के पुलिस उप अधीक्षक सज्जन सिंह के सिर में, एक इंस्पेक्टर के पेट में गोली लगी तथा दो इंस्पेक्टर व तीन सब इंस्पेक्टर भी घायल हैं। जगह-जगह के वीडियो क्लिपों में गोलियों की आवाज स्पष्ट सुनी जा सकती है। वस्तुतः नूंह से गुरुग्राम और दूसरी तरफ होडल आदि लगभग 60 -62 किलोमीटर तक कई घंटों के लिए हमलावरों ने पूरी व्यवस्था अपनी नियोजित हिंसा की गिरफ्त में ले लिया था। वास्तव में कई किलोमीटर तक जो भी वाहन इनकी जद में आए, उन सबको फोड़ा गया और आग के हवाले किया गया।
अभी तक कोई प्रमाण नहीं है कि बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा से किसी को उत्तेजित करने वाले नारे लगाए गए हों। जरा संक्षेप में घटनाक्रम देखिए और फिर निष्कर्ष निकालिए। नूंह के नल्हर स्थित शिव मंदिर में जलाभिषेक करने के बाद यात्रा गांव सिंगार की ओर जा रही थी। अचानक नूंह में खोलना मोड़ के पास लोगों के समूह ने पहले उसे घेरा और अचानक पथराव करने के साथ गोलियां भी चलाई जाने लगीं। भीड़ ने काली मंदिर पर भी पथराव किया। साफ है यात्रा में शामिल लोगों की इससे सामना करने की तैयारी नहीं थी। इस कारण यह एकपक्षीय लड़ाई में बदल गया। पहले हमलावरों ने जुलूस की गाड़ियों को निशाना बनाना शुरू किया, उन्हें जलाने लगे और बाद में आसपास जो भी गाड़ियां दिखतीं उनको क्षतिग्रस्त कर उनमें आग लगाई। नूंह अनाज मंडी स्थित साइबर क्राइम थाने पर भी हमला कर दिया। एक बस से उसका एक दीवार तोड़ा गया और फिर अंदर बाहर खड़े दर्जन से अधिक वाहनों को आग लगा दी गई। ऐसा लगा ही नहीं की पुलिसकर्मियों की इस हमले से निपटने की इस तरह की तैयारी थी। इस कारण उन्हें भी अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। जब थाने पर हमले हों और पुलिसकर्मियों को जान बचानी पड़े तो फिर आम आदमी की सुरक्षा कैसे होगी। दुकानों में लूटपाट शुरू हो गई। स्थिति कितनी विकट रही होगी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यात्रा में शामिल लगभग ढाई हजार लोग मंदिरों में छिप गए और उन्हें सात घंटों तक वहीं बंद रहना पड़ा। नल्हार के शिव मंदिर में 1 बजे के आसपास लगभग ढाई हजार श्रद्धालु या यात्री जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे, फंसे रहे। चारों ओर से गोलियां चल रही थीं, पत्थर बरसाए जा रहे थे, नारे लग रहे थे। 4 बजे एडीजीपी लॉ एंड ऑर्डर ममता सिंह पुलिस बल के साथ पहुंचीं। पुलिस ने सोचा कि उपद्रव को तुरंत शांत कर लोगों को निकाला जा सकता है, लेकिन लगातार हमलावरों की संख्या और हमलों की तीक्ष्णता बढ़ती जा रही थी। पुलिस ने लोगों को छोटे-छोटे समूहों में निकालने का निर्णय लिया और एक और कवर फायरिंग से इनका सामना करते रहे। दूसरी और कुछ पुलिस वाले घेरे में लोगों को बाहर निकालते रहे। लोगों को मंदिर से सुरक्षित निकालकर गाड़ी में बैठाया। जब उनको गाड़ी में बैठाया था, तब भी पुलिस की एक टीम दोनों तरफ खड़ी थी। जरा सोचिए स्थिति क्या रही होगी कि ढाई हजार लोगों को मंदिर से निकालने में 2 घंटे से अधिक का समय लगा। एक घटना के विवरण के बाद पूरी तस्वीर स्पष्ट हो जाती है। जो लोग इसे भड़काऊ बयानों से पैदा हुई उत्तेजना का परिणाम या द्विपक्षीय दंगा मान रहे हैं उनके लिए इन सारी घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से ध्यान रखना आवश्यक है।
वास्तव में यह राज्य के अंदर एक युद्ध की स्थिति थी। नूंह से लेकर चारों ओर कई किलोमीटर तक अगर एक ही समान हमले, आगजनी, तोड़फोड़, गोलीबारी, पत्थरबाजी आदि हो तो सीधा निष्कर्ष यही है कि लंबे समय से तैयारी की गई थी। लोगों को प्रशिक्षित किया गया था, हर संभव संसाधन जुटाए गए थे, अंदर ही अंदर प्रचार तंत्र का उपयोग करते हुए जनसंपर्क हुआ, अनेक स्थानों पर तैयारी बैठकें हुई होंगी, हमलावरों ने तय कर लिया था कि कानून और व्यवस्था का उनके लिए कोई मायने नहीं है। पूरे क्षेत्र के रास्तों को चारों तरफ से इस तरह से घेर लिया गया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के सहयोग से सुरक्षाबलों को एअरड्रॉप कराना पड़ा।इतना दुस्साहस बगैर संगठित योजना और शत प्रतिशत तैयारी के संभव ही नहीं हो सकती।
इतने व्यापक क्षेत्र में हुए ऐसे हमलों के लिए मोनू मानेसर के वीडियो को जिम्मेवार ठहराने वाले क्या कहना चाहते हैं? क्या किसी की यात्रा में शामिल होने की घोषणा से लोगों को यात्रा, धर्म स्थलों, दुकानों, गाड़ियों आदि पर हमला कर उन्हें आग लगाने का अधिकार मिल गया? मोनू यात्रा में शामिल भी नहीं हुआ। अगर गुस्सा तात्कालिक था तो इतनी संख्या में छतों पर पत्थर, पेट्रोल बम, गोली चलाने वाले हथियार आदि कहां से आ गए? संगठित समूह ने सड़क जाम कर यह स्थिति कैसे पैदा कर दी कि पुलिस निशाना बन रहे लोगों, वाहनों, संपत्तियों की सुरक्षा तक के लिए न जा सके? एक शोरूम से लगभग 200 नए बाइक लोग लूट कर ले गए। दो चार बाइक लूटने की बात समझ में आती है, किंतु इतनी संख्या में तो बगैर तैयारी के संभव नहीं है। यह स्पष्ट दिख रहा था कि गैर मुस्लिम समुदाय की दुकानें संपत्तियां इनके निशाने पर थीं। निस्संदेह, हरियाणा पुलिस प्रशासन की अक्षम्य विफलता है। हिंसा की इतनी तैयारी हो और पुलिस को भनक तक नहीं लगे! पुलिस से अनुमति लेकर यात्रा निकाली गई थी। स्वाभाविक ही हर वर्ष की तरह इसका मार्ग निर्धारित था। यानी यह यात्रा नूंह स्थित मनसा देवी मंदिर पहुंचती, फिर झीर मंदिर फिरोजपुर झिरका जाती और वहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन व जलाभिषेक के बाद यात्रा पुन्हाना के श्रृंगार मंदिर के लिए आगे बढ़ती। इसे सुरक्षा देना पुलिस का दायित्व था। घटना के बाद भी हरियाणा पुलिस इसे संभालने, हिंसा को नियंत्रित करने, यात्रा में शामिल लोगों को सुरक्षित रखने तथा उनके अंदर से भय निकालने तक की समुचित भूमिका नहीं निभा सकी।
विहिप के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन का कहना है कि उन्होंने पुलिस को कहा कि वे लोग मंदिर में सुरक्षित हैं। लेकिन मंदिर से बाहर निकालकर पहाड़ के नीचे खेतों में लोगों को खड़ा कर दिया गया, जबकि गोलियां चल रही थीं। रात्रि आठ बजे तक लोग पुलिस लाइन जाने के लिए वाहन की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब लोगों ने पुलिस प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाई तो उनके साथ दुर्व्यवहार होने के आरोप भी लगे हैं। हरियाणा सरकार पर उस क्षेत्र के खतरे की अनदेखी करने का आरोप लगता रहा है। बीच में ऐसी अनेक छोटी-छोटी घटनाएं हुईं, जो सरकार को चेतावनी देने के लिए पर्याप्त थीं। लगता है जैसे पुलिस का मेवात क्षेत्र में चल रही मजहबी कट्टरपंथी गतिविधियों से कोई लेना-देना ही नहीं रहा हो। मेवात क्षेत्र में यदि सही तरीके से सुरक्षा व्यवस्था होती तो षड्यंत्र रचने वाले पहले ही पकड़ में आ जाते एवं हथियार, पत्थर, डंडे आदि भी जब्त होते। बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा प्रतिवर्ष निकाली जाती है। लेकिन पुलिस प्रशासन की विफलता की आवाज उठाकर जड़ जमा चुके हिंसक मजहबी कट्टरपंथ और दूसरे धर्मों के विरुद्ध हिंसा की तैयारी के सर्वप्रमुख पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्या भारत में सामान्य धार्मिक उत्सव या यात्राएं सुरक्षा घेरे में ही आयोजित हो सकती हैं? अगर पुलिस नहीं हो तो क्या सामूहिक धार्मिक क्रियाकलाप नहीं हो सकता? हमले केवल शोभायात्रा तक तो सीमित नहीं रहे। कई किलोमीटर तक जगह-जगह हुए हमले, वाहनों को क्षतिग्रस्त करना, लोगों को बसों से उतारकर आग लगाना, सड़कों को बाधित करना या धर्मस्थलों को निशाना बनाना आदि साबित करता है कि षड्यंत्र कार्यों का लक्ष्य कुछ और था। जैसे समाचार हैं सोशल मीडिया पर कई तरीके के झूठ फैलाए जा रहे थे। पुलिस को एक पोस्ट हाथ लगी, जिसमें रहीस खान रंगालिया नाम के व्यक्ति ने लिखा कि कुछ देर में नूंह में इंशा अल्लाह। मोहम्मद सब्बीर खान का पोस्ट है कि मोनू सोनू आ जा मेवात में तेरे स्वागत में ऐसी प्याज कुटेगी कि फिर कभी जुड़ नहीं पाएगी। इसी तरह अजहर इसाब रानियां ने पोस्ट की कि मेरा सभी देशवासियों से निवेदन है कि जो भाई चालक हैं वे 31 जुलाई को मेवात में गाड़ी, डंपर अपने लिए नहीं बल्कि इज्जत के लिए चलाएं। इन सब पोस्टों का निष्कर्ष क्या है? यही कि इस हमले के लिए विशेष तैयारी की गई थी। पता चल रहा है कि अमेरिका में इंडियन अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल ने भी अपने ट्वीट में इस यात्रा की चर्चा कर लोगों को उकसाया था। वीडियो में हिंसा करते कुछ लोग साफ दिख रहे हैं, जिन्हें पकड़ना कतई मुश्किल नहीं। यदि भीड़ की हिंसा मानकर नजरअंदाज किया गया, केवल कुछ लोगों को पकड़ कर खानापूर्ति की गई तो खतरा ज्यादा बढ़ेगा। चाहे संख्या जितनी हो, एक – एक व्यक्ति को सजा मिलनी चाहिए। यह योजना बनाकर मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर हमला है। ऐसे लोगों को सजा न देने का अर्थ होगा ऐसी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना। चूंकि इस तरह के हमले और हिंसा की प्रवृतियां हम देश के दूसरे राज्यों में भी देख रहे हैं, इसलिए छानबीन का दायित्व एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को दिया जाए।