पत्रकारिता की दशा और दिशा
आज ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है। आज ही के दिन भगवान ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक देवर्षि नारद का जन्म हुआ था। देवर्षि नारद के व्यक्तित्व को शब्दों में व्यक्त करना निसंदेह कठिन कार्य है। शास्त्रों में उन्हें भगवान का मन कहा गया है। यही कारण है कि उन्हें सभी युगों में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गों में सदैव महत्वपूर्ण स्थान दिया। नारद ने धर्म, न्याय, लोक कल्याण, लोक मंगल, लोक हित के संरक्षण का कार्य किया। उन्हें सिर्फ देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों- राक्षसों ने भी सम्मान और आदर दिया।
भारत का प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ” उदन्त मार्तण्ड ” नारद जयंती पर ही कलकत्ता से 1 मई ,1826 को साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ। देवर्षि नारद को दुनिया में पहले पत्रकार के रूप में जाना जाता है। इस लोक से उस लोक तक की परिक्रमा, सर्वत्र भ्रमण, सतत् ,सजग और जीवन्त संवाद उनके पत्रकारिता धर्म का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनकी पत्रकारिता में मानव मात्र का लोक कल्याण, लोक हित और लोक मंगल का दर्शन है। रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक कथाओं में भी नारद मुनि की भूमिका न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि दिशा बोधक भी रही है।
अपने संवाद से सेतु अर्थात् सभी को जोड़ने का काम करने वाले पत्रकारिता के पितृ पुरूष देवर्षि नारद के मूल्यों को आज की पत्रकारिता के सन्दर्भों में देखें तो सुखद अनुभूति नहीं कही जा सकती। मीडिया की भूमिका वर्तमान परिवेश में कैसी हो, किन मूल्यों पर आधारित हो और मुद्दे क्या हों ? इन सवालों का जवाब ढूंढते समय हमको सबसे पहले भारत, भारतीयता और राष्ट्रवाद को प्राथमिकता देनी होगी। क्योंकि भारतीय राष्ट्रवाद ही एकमात्र वो विकल्प है जो विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
आज अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती बनकर खड़ा है। आज देश, धर्म, आतंकवाद मुद्दों को लेकर जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बहस शुरू होती है तो हमारा अपना ही देश दो धारणाओं मेंबंटा हुआ दिखाई देता है। किसी बहस में प्रतिभागी होते हुए बोलने की एक चौखट की मर्यादा होती है। लेकिन सहभागी उस मर्यादा को तार तार करते दिखाई देते हैं। इन चैनल्स को देखते हुए लगता है कि हम अपने ही देश में बेगाने हो रहे हैं। कमोबेश प्रिन्ट मीडिया के भी हाल ऐसे ही नजर आते हैं।
नारद भक्ति सूत्र में कहा गया है ” तल्ल्क्ष्णानि वच्यन्ते नानामतभेदात ” अर्थात मतों में विभिन्नता व अनेकता है। यही पत्रकारिता का भी मूल सिद्धांत है। परन्तु उन्होंने साथ ही यह भी कहा है कि किसी भी मत को मानने से पहले स्वयं उसकी अनुभूति करना आवश्यक है और तभी विवेकानुसार निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए व लोकहित में प्रस्तुति करनी चाहिए।
क्या नारद के बताए इस मत का अनुसरण हमारे पत्रकार करते हैं? यह विचारणीय प्रश्न है।
आज पूरी दुनिया के सामने कोरोना जैसी महामारी का संकट फैला हुआ है। इसको लेकर भी समाज को तोड़ने वाली ताकतें सामने आईं। दिल्ली के मरकज में जमा तब्लीगी जमात, मुम्बई के धारवी, इन्दौर और भोपाल में डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिस पर हुए हमलों व हैदराबाद में मस्जिद को बंद करवाने गए पुलिसकर्मियों के साथ हुए बर्ताव को भी मीडिया ने अपने अपने नजरिये से प्रस्तुत किया। यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन क्या यह आजादी निरपेक्ष है और लोक कल्याण के मार्ग को दर्शाती है। यह पत्रकारिता का नकारात्मक पक्ष है। नकारात्मक पत्रकारिता समाज को तोड़ने वाली है। यह समाज में विष की तरह काम करती है। इसका प्रसार नहीं होना चाहिए।
सीएए, शाहीन बाग धरना को लेकर पी एफआई की भूमिका, पी एफ आई को फंडिंग , निर्भया बलात्कार कांड के दोषियों को सजा, लव जेहाद, दिल्ली दंगे, जेएन यू में नारेबाजी, टुकड़े टुकड़े गैंग,कश्मीर में आतंकवाद, पत्थरबाजी, मुस्लिमों को अवैध तरीके से जमीन का आवंटन,दिल्ली दंगे,मुम्बई में पत्थरबाजी सहित अनेक मुद्दे हैं जिन पर मीडिया की दोहरी भूमिका साफ दिखाई देती है।
पिछले दिनों में महाराष्ट्र में हुई संतों की हत्या, कोरोना के फैलाव को रोकने लेकर किए गए केन्द्र सरकार के निर्देशों की एक समूह विशेष द्वारा षडयंत्रपूर्वक अवहेलना और शासन – प्रशासन का विरोध, कई राजनीतिक दलों की नीतियां और उनका इस संकट के समय में आचरण भी मीडिया की दोहरी भूमिका को इंगित करता है।
कुख्यात आतंककारी रियाज नायकू के मारे जाने पर एक अन्तर्राष्ट्रीय समाचार एजेन्सी ने शीर्षक दिया ” गणित के अध्यापक रहे रियाज नायकू की मुठभेड़ में मौत”। नायकू को आतंकवादी कहने में उन्हें शर्म आती है क्या। फिर तो लादेन की मौत पर भी ऐसे लोगों को सिविल इंजीनियर ही लिखना चाहिए था।
कश्मीर के पत्थरबाजों या जे एन यू के नारेबाजों पर कार्रवाई करने से पहले ही कुछ मीडिया कर्मी मानवाधिकार के हनन का प्रश्न उठाने लग जाते हैं। कश्मीर के मामले में निष्पक्ष आवाज उठाने वाले दिल्ली के एक पत्रकार के खिलाफ इन दिनों केरल में एफ आई आर दर्ज करवाई गई है। ताकि मीडिया में भय पैदा हो। मामला कश्मीर से जुड़ा हुआ था तो वहाँ रिपोर्ट दर्ज करवाई जानी चाहिए। केरल में क्यों। लेकिन सभी जानते हैं कि केरल में वामपंथी सरकार है। जो इस राष्ट्रवादी विचार के पत्रकार को हर संभव कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करेगी।
ऐसे हालात में आम आदमी मीडिया से आशान्वित है। राष्ट्र की अस्मिता और गौरव को धूल धूसरित होने से बचाने के लिए मीडिया को देवर्षि नारद के मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
नारद मुनि ने कहा था ” नास्ति तेषु जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादिभेदः” अर्थात जाति, विद्या, रूप, कुल, धन, कार्य आदि के कारण भेद नहीं होना चाहिए। उनकी यह बात हमारी आज के मीडिया पर भी लागू होती है।
पत्रकारिता किसलिए हो व किस विषय में हो, यह आज का सबसे विचारणीय विषय है। नारद जयंती इस विषय के सार्थक चिन्तन, संवाद और आत्म मंथन के लिए हम सभी को प्रेरित करती है।