परम प्रतापी योद्धा महाराणा प्रताप

वो शूरवीर महाराणा, मेवाड़ी आन-बान-शान का रखवाला था,
बात अड़ी थी स्वाभिमान पर, इस बार मुगलों से पड़ा पाला था।
मुगलिया सेना बड़ी थी, पर वो मेवाड़ी पूत भी हिम्मतवाला था,
रण में सदा साथ रखता दो तलवारें, अंदाज यह निराला था।।

शौर्य का तो वाह क्या कहना था, सवा मण का तो सिर्फ भाला था,
बहलोल खां को घोड़े सहित, एक झटके में ही काट डाला था।
महाराणा थे सवार जिस पर, वह घोड़ा चेतक भी मतवाला था,
चढ़ गया वह हाथी पर, मान सिंह को अंदर तक हिला डाला था।।

अफ़गान व भील राणा के साथ, जान हथेली पर लिए खड़े थे,
मेवाड़ी आभा बचाने को, झाला मान सिंह भी पूरे जोश से लड़े थे।
महल छोड़े, घास की रोटी खाई, पर अधीनता स्वीकार नहीं की,
हल्दीघाटी के कण-कण से, गूंजे शौर्य महाराणा तेरी कुर्बानी का।।

यह शूरवीरता की प्रतिमूर्ति, महाराणा प्रताप की कहानी है,
हल्दीघाटी की यह माटी, जिनके स्वाभिमान की अमिट निशानी है।
एक-एक क्षण समर्पित किया, मातृभूमि को अपनी जवानी का,
हल्दीघाटी के कण-कण से, गूंजे शौर्य महाराणा तेरी कुर्बानी का।।

सूरजभान सिंह

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