परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा- डॉ. भागवत

परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा

परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगापरिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा

बरेली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा। वास्तव में कुटुम्ब ही समाज की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इकाई है। संघ कुटुम्ब प्रबोधन के माध्यम से समाज के बीच बेहतर तालमेल, परस्पर सहयोग और सौहार्द स्थापित करने का प्रयास करके समाज और देश को मजबूत करने का प्रयास करता रहा है।

महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के अटल सभागार में आयोजित कार्यकर्ता परिवार मिलन कार्यक्रम में सरसंघचालक ने कहा कि व्यक्ति को सबसे पहले संस्कार अपने परिवार से ही मिलते हैं। समाज को सुसंस्कृत, चरित्रवान, राष्ट्र के प्रति समर्पित और अनुशासित बनाने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए संघ का प्रयास है कि स्वयंसेवकों के परिवारों को भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणाओं से जोड़कर समाज को सशक्त बनाया जाए। लोगों को अपनी परम्पराओं और संस्कृति से जुड़े रहने के लिए अपनी मूल भाषा, भूषा, भजन, भवन, भ्रमण और भोजन को अपनाना होगा।

उन्होंने कहा कि विगत लगभग एक सौ वर्ष में संघ का काफी विस्तार हुआ है। संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर देश के लोग अब इस संगठन की ओर आशा भरी दृष्टि से देखने लगे हैं। लोग अपनी मूल परम्पराओं और संस्कृति से जुड़े रहकर प्रगति करना चाहते हैं।

समाज में संघ की छवि स्वयंसेवकों के आचरण से ही बनी है। स्वयंसेवकों का आचरण जितना अच्छा होगा, संघ की छवि उतनी अच्छी बनेगी। स्वयंसेवकों को सप्ताह में कम से कम एक दिन अपने परिवार और मित्र परिवारों के साथ बैठकर भोजन करने के अलावा राष्ट्र और सांस्कृतिक विरासत से जुड़े विषयों पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों के परिवारों को विभिन्न जातियों, पंथ, भाषाओं और क्षेत्रों के परिवारों के साथ मित्रवत सम्बंध बनाकर उनके साथ नियमित रूप से मिलन, भोजन और चर्चा के कार्यक्रम करने चाहिए। विभिन्न आर्थिक स्तरों के परिवारों के बीच भी सौहार्दपूर्ण और परस्पर सहयोग बनाने के लिए स्वयंसेवक कुटुम्बों को प्रयास करने चाहिए। सक्षम, सम्पन्न और वंचित परिवारों के बीच परस्पर सहयोग होने पर कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का स्वतः निराकरण हो जाएगा। स्वयंसेवक परिवारों के जीवन का मंत्र देशार्चन, सद्भाव, ऋणमोचन और अनुशासन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देशार्चन से तात्पर्य है कि हमें देश की पूजा करनी चाहिए अर्थात भारत को जानना चाहिए और भारत के जैसा ही बनने का प्रयास करना चाहिए। यही देशार्चन यानि देश की पूजा है। हमें सबके प्रति सद्भावना का व्यवहार करना चाहिए। अपने मित्रों के कष्टों का निवारण करना चाहिए और उन्हें अपनी संगति से सुधारने का भी प्रयास करना चाहिए। उन्होंने स्वयंसेवक परिवरों से मित्रता के छह गुणों को अपनाने का भी आह्वान किया। इसी तरह हमारा संपूर्ण जीवन विभिन्न लोगों का ऋणी है। हमें जो वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त होते हैं, वे सब समाज के अलग-अलग वर्गों के हम पर ऋण हैं। हमें इन ऋणों को उतारने का प्रयास करना चाहिए। जो लोग लोक कल्याण की भावना से अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं, उन्हें युगों युगों तक याद रखा जाता है। उन्होंने चौथे मूल मंत्र अनुशासन की महिमा बताते हुए कहा कि अनुशासन के बिना कोई भी राष्ट्र और समाज प्रगति नहीं कर सकता। यदि हमें अपने राष्ट्र को एक बार फिर विश्वगुरु के रूप में स्थापित करना है तो हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का प्रकटीकरण करना चाहिए।

इस अवसर पर विभाजन विभीषिका स्मृति प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इसमें देश के विभाजन के समय के विभिन्न स्थानों के चित्रों, समाचार पत्रों की कतरनों एवं अन्य साधनों से उस समय लोगों द्वारा झेली गई त्रासदी का चित्रण करने का प्रयास किया गया।

कुटुम्ब प्रबोधन कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित महिषासुर मर्दिनी दुर्गा माता का पाठ डॉ. विवेक मिश्रा, आलोक प्रकाश, सारिका सक्सेना और दीपिका मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में भारतीय संस्कृति और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी एक प्रश्नोत्तरी का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर क्षेत्र, प्रांत और विभाग स्तर के कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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