पाकिस्तान द्वारा कब्जाया हुआ कश्मीर (PoK)

पाकिस्तान द्वारा कब्जाया हुआ कश्मीर (PoK)

टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / 13

प्रशांत पोळ

पाकिस्तान द्वारा कब्जाया हुआ कश्मीर (PoK)पाकिस्तान द्वारा कब्जाया हुआ कश्मीर (PoK)

आर पार जोड़ दो, कारगिल रोड खोल दो। कुछ माह पहले, पाक द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर (PoK) और गिलगिट-बाल्टिस्तान में यह नारा गुंजायमान था। हजारों लाखों की संख्या में लोग पाकिस्तान के विरोध में अपना  क्रोध बाहर निकाल रहे थे। घाटी में गेहूं की कमी हो गयी थी, बिजली नहीं थी, महंगाई ने कमर तोड़ दी थी…। पाकिस्तान द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर के लोग भारत के जम्मू और कश्मीर के समाचार पढ़ते थे। वहां के वीडियो देखते थे। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में कैसा खुशहाल वातावरण बना है, यह सब उनको दिख रहा था। पर्यटकों का झुंड भी दिखता था।

इसीलिए ये सारे आंदोलनकर्ता, पाकिस्तानी सरकार के साथ ही अपने पुरखों को भी कोस रहे थे, कि हम भारत के साथ क्यूं नहीं गये?

इन लोगों की स्थिति बड़ी दयनीय है। ये सब ना तो घर के हैं ना घाट के! इन पर पाकिस्तान का पूरा नियंत्रण है, लेकिन ये लोग पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में अपना प्रतिनिधि नहीं चुन सकते। वोटिंग नहीं कर सकते। 1994 तक तो गिलगिट-बाल्टिस्तान और पाक द्वारा कब्जाये कश्मीर में, किसी को वोटिंग क्या होती है, यह मालूम ही नहीं था। विधानसभा जैसी रचना तो छोड़ दीजिये, नगर पंचायत तक जनता द्वारा चुनी हुई नहीं थी। आखिरकार, यहां के लोगों के आंदोलन के कारण पाकिस्तान की फेडरल सरकार ने अक्टूबर 1994 में, पाकिस्तान के राजनैतिक दलों को, पाक द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर में गतिविधियों की अनुमति दी। यहां ‘नॉर्दर्न एरियाज एक्जीक्यूटिव काउंसिल’ का गठन किया। किंतु शर्त यह थी कि यहां के स्थानिक राजनैतिक दल नहीं रहेंगे। सारी राजनैतिक गतिविधियां पाकिस्तान के राजनैतिक दलों द्वारा की जायेंगी। अर्थात इस काउंसिल (या अपनी भाषा में विधानसभा) को कोई भी कार्यकारी अधिकार नहीं है। इनका काम केवल सलाह देने तक सीमित है।

इसीलिए कुछ महीने पहले, जब भारतीय संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि ‘पाक द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर में स्थित शारदा मंदिर तक एक कॉरिडोर बनाया जायेगा’, तब पाक द्वारा कब्जाए हुए कश्मीर की असेंबली ने इसका स्वागत किया। शेख रशीद के नेतृत्व में ‘अवामी मुस्लिम लीग’ ने असेंबली में अमित शाह के वक्तव्य का संदर्भ देते हुए, ‘माता शारदा के मंदिर तक एक कॉरिडोर बनाने’ का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को असेंबली ने पारित किया एवं पाकिस्तान सरकार को यह सलाह दी कि ‘कश्मीरी पंडित और भारत के सभी हिन्दू, माता शारदा के मंदिर के दर्शन करने आ सकें’ ऐसी व्यवस्था हो। अर्थात पाकिस्तानी शासक, काउंसिल (असेंबली) की इस मांग से खासे नाराज हुए। किंतु स्थानिक लोग भी चाहते हैं कि शारदा पीठ का रास्ता, कर्तारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर बनाया जाए। स्थानीय लोगों में शारदा पीठ को ‘शारदा माई’ नाम से जाना जाता है। यहॉं यदि भारतीय दर्शनार्थी आने लगे, तो स्वाभाविकतः यहां का पर्यटन भी जबरदस्त बढ़ेगा।

शारदा पीठ देश की 18 शक्तिपीठों में से एक है। कुछ हजार वर्ष का इसका इतिहास है। यहां प्राचीन विश्वविद्यालय भी था। नीलम नदी (जो भारत में आकर ‘किशनगंगा’ कहलाती है) के किनारे बसा यह गांव, किसी समय इस देश में विद्या का, शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। इसी के नाम से ‘शारदा लिपि’ प्रचलित हुई। आदि शंकराचार्य जी ने यहां तप किया था।

पाकिस्तान द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद से यह स्थान 150 किलोमीटर, तो नियंत्रण रेखा से मात्र पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर है।

पाकिस्तान ने गिलगिट-बाल्टिस्तान और कब्जाये हुए कश्मीर पर नियंत्रण तो रखा है, किंतु संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में वह इन्हें अपना राज्य नहीं मान सकता। इसलिये पाकिस्तान की प्रशासनिक दृष्टि से, गिलगिट-बाल्टिस्तान और कब्जाया हुआ कश्मीर स्वतंत्र यूनिट्स हैं। 1962 में भारत से हुए युद्ध में चीन ने अक्साई चीन पर कब्जा कर लिया था। इससे लगे हुए कुछ हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा था। इसलिये चीनी नेताओं ने, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को चीन बुलवाया। शनिवार दिनांक 2 मार्च 1963 को चीनी नेताओं ने पाकिस्तान के साथ पेकिंग (वर्तमान मे ‘बीजिंग’) में एक समझौता किया, जो ‘सायनो पाकिस्तान समझौता’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के अंतर्गत, कश्मीर का गिलगिट-बाल्टिस्तान से लगा हुआ हिस्सा, जिस पर पाकिस्तान ने अनाधिकृत कब्जा किया था, चीन को हमेशा के लिए दे दिया।

चूंकि इस पूरे क्षेत्र से कोई भी प्रतिनिधि चुनकर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में नहीं जाता है, पाकिस्तानी सरकार ने इस क्षेत्र के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया। पर्यटन की अपार संभावनाएँ होते हुए भी यहां पर्यटकों के लिए सुविधाओं का अभाव है। पिछले वर्ष, 2022 में जहां भारत के जम्मू कश्मीर में रिकॉर्ड 1.88 करोड़ पर्यटक आये, वहीं नीलम वैली, मुजफ्फराबाद, गिलगिट….. ये सभी स्थान पर्यटकों के लिए तरस गए। मात्र पर्यटन ही नहीं, सभी क्षेत्रों में, पाकिस्तान की सरकार ने कब्जाये हुए कश्मीर और गिलगिट -बाल्टिस्तान को पिछड़ा ही रखा। पाकिस्तान को, कश्मीर को विश्व की राजनीति में जीवित रखना है, इसलिये पाकिस्तानी सेना ने, इस पूरे क्षेत्र में अनेक आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे हैं।

यदि हम भारत के हिस्से वाले कश्मीर से इस क्षेत्र की तुलना करेंगे तो दिखता है कि यह क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा है। पाकिस्तान इस क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिवर्ष मात्र 135 करोड़ रुपये खर्च करता है। वहीं भारत अपने हिस्से के कश्मीर में, शिक्षा पर 1100 करोड़ रुपये खर्च करता है। भारत के पास जो जम्मू कश्मीर है, उसमें तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय, नौ राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय और 170 से ज्यादा महाविद्यालय हैं। दो एम्स, आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, 11 मेडिकल कॉलेज, 15 से अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज… इन सबके अलावा अनेक महत्त्वपूर्ण शिक्षा संस्थान और शोध संस्थान जम्मू कश्मीर में हैं।

इसके विपरीत, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की क्या स्थिति है?

यहां मात्र आठ शिक्षा संस्थान हैं, जिनमें से तीन मेडिकल कॉलेज हैं। भारतीय कश्मीर की तुलना में पाकिस्तान द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर में बेरोजगारी और गरीबी का प्रतिशत बहुत अधिक है। इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं के बराबर है।

अभी 11 अगस्त को गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र की, ‘गिलगिट-बाल्टिस्तान अवामी एक्शन कमेटी’ ने इस्लामाबाद में बैठी पाकिस्तानी सरकार के विरोध में उग्र प्रदर्शन किये। अवामी एक्शन कमेटी के सचिव शब्बीर मायार के अनुसार ये प्रदर्शन, बेहद घटिया इन्फ्रास्ट्रक्चर के विरोध में किये गये। इस पूरे क्षेत्र में न तो अच्छी सडकें हैं, और न ही बिजली। ‘हर घर तक शुद्ध पेयजल’ तो उनकी कल्पना से भी बाहर है।

ये सारे लोग अपने पड़ोस के जम्मू कश्मीर के समाचार पढ़ते, सुनते, देखते रहते हैं। भारत की, विशेषतः कश्मीर की, यह उन्नति देखकर आजकल पाक द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में भारत के साथ जाने की मांग जोरों से उठ रही है। लेकिन स्वतंत्रता या भारत के साथ जाना, इन दोनों विकल्पों के सामने चीन है। बिलकुल वैसा ही, जैसे बलूचिस्तान और खैबर पख्तुनख्वा में है। चीन ने अपना बहुत बड़ा निवेश, पाकिस्तान द्वारा कब्जाये कश्मीर में और गिलगिट-बाल्टिस्तान में कर रखा है। उसकी महत्त्वाकांक्षी परियोजना, ‘ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिंजियांग प्रांत से जोड़ने वाला रास्ता’, पाकिस्तान द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर से जाता है। चीन ने विद्युत निर्माण की अनेक परियोजनाएं इस क्षेत्र में प्रारंभ की हैं।

इसलिये न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, अपने इस निवेश की सुरक्षा के लिये, चीन ने, पाक द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान में ग्यारह हजार से भी ज्यादा सेना के जवान तैनात किए हैं। एक प्रकार से यह पूरा क्षेत्र, चीन का एक लघु उपनिवेश है। पाकिस्तान द्वारा कब्जाये हुए कश्मीर और गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोगों को कितना भी लगता होगा कि पाकिस्तान से टूटकर स्वतंत्र राष्ट्र बनाएं या भारत में विलीन हो जाएं, तो भी चीन इसका मजबूती से विरोध करेगा।

आने वाले दिनों में यह देखना रोचक रहेगा कि पाक द्वारा कब्जा किये हुए कश्मीर के और गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग ज्यादा मुखर होते हैं, या चीन पूरी शक्ति के साथ इन को दबा देता है।

मजेदार बात यह है, कि इस सारे संघर्ष में इस्लामाबाद में बैठे पाकिस्तानी नेताओं की कोई भूमिका नहीं है…!
(क्रमशः)

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