पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर पर कर रखा है अवैध कब्जा

गुलाम कश्मीर के लोग पाक से आजादी के लिए कई वर्षो से कर रहे हैं संघर्ष

लोगों की आवाज को दबाने के लिए पाक बल प्रयोग कर रहा है

पाथेय डेस्क

श्रीनगर । पाकिस्तान ने पिछले 70 वर्षो से गिलगिट, गिलगिट एजेंसी पर अवैध कब्जा कर रखा है। इस क्षेत्र को ही गिलगिट बाल्टिस्तान कहा जाता है। इस हिस्से समेत पूरे गुलाम कश्मीर के लोग पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं और बीते कई वर्षो से संघर्ष कर रहे हैं। पाकिस्तान लोगों की आवाज को दबाने के लिए बल प्रयोग कर रहा है। पिछले पखवाड़े भी गुलाम कश्मीर में लोगों की आजादी की मांग को दबाने के लिए पाकिस्तान की सेना ने गोली चला दी थी, जिसमें दो लोगों की मौत और दर्जनों घायल हो गए थे।

 

भारत-पाक विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के पांच प्रांत होते थे। कश्मीर, लद्दाख, गिलगिट वजारत, गिलगिट एजेंसी और जम्मू। जम्मू प्रांत में ही पुंछ जिला था, जिसके अंतर्गत मीरपुर और मुजफ्फराबाद थे। 1931 में कश्मीर में हुए विद्रोह के बाद लगातार बदलते समीकरणों के बीच तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने 1935 में अंग्रेजों को गिलगिट एजेंसी को लीज पर 60 साल के लिए दिया। गिलगिट एजेंसी में प्रशासक के तौर पर एक ब्रिटिश सैन्याधिकारी नियुक्त था। भारत छोड़ने से पहले अंग्रेजों ने लीज को रदद करते हुए इस क्षेत्र को पुनः महाराजा के हवाले कर दिया और सुरक्षा प्रबंध पहले की तरह ही रहा।

विलय के मुताबिक सारा हिस्सा भारत का है
अक्टूबर 1947 में जब कबाइली हमला हुआ तो गिलगिट एजेंसी में बैठे ब्रिटिश प्रशासक मेजर विलियम ब्राउन ने सूबेदार मेजर बाबर खान के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया। विद्रोही सैनिकों ने गिलगिट में महाराजा के गर्वनर को शहीद कर दिया। उन्होंने वहां मौजूद डोगरा, सिख व गोरखा सिपाहियों के दस्ते को भी शहीद कर दिया। विद्रोहियों ने कराची में गिलगिट वजारत और गिलगिट एजेंसी पर कब्जा कर लिया। महाराजा ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय का समझौता कर लिया और इसके साथ ही भारतीय फौज ने पाकिस्तानी सेना व कबाइलियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। विलय समझौते के मुताबिक, पूरा जम्मू कश्मीर जिसमें गिलगिट बाल्टिस्तान, गिलगिट एजेंसी समेत अन्य इलाके भी हैं, भारत का हिस्सा हैं।

पाकिस्तानियों को बसाना शुरू किया
वर्ष 1970 तक गिलगिट बाल्टिस्तान और गुलाम कश्मीर एक ही हिस्से के रूप में पाकिस्तान ने बनाए रखा। लेकिन 1971 की जंग में हार के बाद पाकिस्तान ने गिलगिट बाल्टिस्तान के एक हिस्से को अलग करते हुए इसे नार्दर्न क्षेत्र बनाया और इसे पाकिस्तान सरकार के प्रशासकीय नियंत्रण वाला इलाका घोषित कर दिया। शेष इलाके को उसने आजाद कश्मीर का नाम दिया। वर्ष 1974 में पाकिस्तान ने महाराजा द्वारा 1927 में लागू स्टेट सब्जेक्ट के कानून को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान के विभिन्न प्रांतों के लोगों को गुलाम कश्मीर जिसे वह आजार कश्मीर कहता है, में संपत्ति के अधिकार देने और उन्हें बसाना शुरू कर दिया।

सुन्नी मुस्लिमों को बसा करवाए दंगे
गिलगिट बाल्टिस्तान में भी उसने यही किया। पाकिस्तान ने गिलगिट बाल्टिस्तान में सुन्नी मुस्लिमों को बसाया, जबकि यह इलाका परंपरागत रूप से शिया बहुल था। इससे इस क्षेत्र में शिया सुन्नी दंगे भी शुरू हो गए। 2009 में पाकिस्तान ने गिलगिट बाल्टिस्तान का उसका पुराना नाम लौटाया। गिलगिट बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की कठपुतली कहे जाने वाली एक विधानसभा भी है, लेकिन उसके अधिकार पूरी तरह सीमित हैं।

गुलाम कश्मीर कोटे की सीटों की संख्या पर भी हो सकता है असर
केंद्र शासित लद्दाख में गिलगिट, चिलास, गिलगिट वजारत और ट्राइबल टेरिटरी को शामिल किए जाने के बाद गुलाम कश्मीर के कोटे की 24 सीटें जो केंद्र शासित जम्मू कश्मीर राज्य की विधानसभा में शामिल हैं, भी प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित सीटों को गुलाम कश्मीर के विभिन्न हिस्सों के आधार पर नहीं रखा गया है, लेकिन इनमें कुछ सीटें कथित तौर पर गिलगिट, गिलगिट वजारत व ट्राइबल टेरिटरी का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। अब यह इलाका केंद्र शासित लद्दाख का हिस्सा है और वहां विधानसभा नहीं है। इसलिए इस क्षेत्र की जो सीटें होंगी, वह स्वतरू समाप्त मानी जा सकती हैं या नहीं, इस बारे में अभी तक केंद्र सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है।

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