पाकिस्तान में 14 वां संशोधन अधिनियम: पीओके में पाक-चीन का बड़ा षड़यंत्र

पाकिस्तान में 14 वां संशोधन अधिनियम: पाक के कब्जाए जम्मू-कश्मीर में पाक-चीन का षड़यंत्र जारी है

प्रीति शर्मा

पाकिस्तान में 14 वां संशोधन अधिनियम: पाक के कब्जाए जम्मू-कश्मीर में पाक-चीन का षड़यंत्र जारी है

पाक के कब्जाए जम्मू-कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान में अल्पसंख्यकों की हत्या तथा जबरन घुसपैठ के काम निरंतर किए जा रहे हैं। इससे त्रस्त पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर तथा गिलगित बालटिस्तान की जनता पाकिस्तान को अस्वीकार कर चुकी है।

पाकिस्तान में 14 वां संशोधन अधिनियम पीओके में पाक-चीन का बड़ा षड़यंत्र है। चीन अपनी विस्तारवादी नीति द्वारा पाकिस्तान की सहायता से भारत को घेरने हेतु निरंतर प्रयासरत है। इसका स्पष्ट प्रमाण पाकिस्तान में 14 वें संशोधन अधिनियम की रूपरेखा में स्पष्ट परिलक्षित होता है। इस अधिनियम द्वारा कश्मीर परिषद की विधाई शक्तियां कम करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही इसकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 65 करने की बात की गई है। इसमें 12 सदस्य भारतीय सीमा में जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख से होंगे। सर्वविदित है कि इनका चुनाव कभी नहीं हो सकता। साथ ही इस अधिनियम द्वारा मानवाधिकारों एवं राजनीतिक अधिकारों को सीमित करने के प्रयास भी किए गए हैं जिसमें इस क्षेत्र के लोगों द्वारा संगठन तथा राजनीतिक दल बनाने पर रोक लगाई गई है। विशेषत: वे राजनीतिक दल जो पाकिस्तान की कश्मीर संबंधी विचारधारा के विरुद्ध हों।

पाकिस्तान पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर तथा गिलगित बालटिस्तान में जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने के लिए भी प्रयास कर रहा है। जिसके तहत क्षेत्र में पंजाब तथा अन्य क्षेत्रों से लोगों को लाकर बसाया जा रहा है और चीनी सैनिकों को भी यहां आवास प्रदान किए जा रहे हैं। यहां की जनता को डरा धमका कर तथा भीषण मानव हत्या द्वारा नियंत्रित करने के पाकिस्तानी प्रयासों में यहां के शिया समुदाय अल्पसंख्यक रह गए हैं। और ऐसी गैर कानूनी गतिविधियों को फलीभूत करने में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों की भी उपेक्षा कर दी है। पाक अधिकृत कश्मीर एवं गिलगित बालटिस्तान में जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने के पीछे पाकिस्तान की एक  नीयत है कि यह क्षेत्र पूर्णत: पाकिस्तान के प्रभाव में आ सके और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह इसे पाकिस्तानी क्षेत्र प्रमाणित कर सके तथा चीन को उसकी औपनिवेशिक विस्तार वाद की नीति में सहायता कर सके।

ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान में 14 वां संशोधन अधिनियम भी चीन की गिलगित बालटिस्तान में बढ़ती कूटनीतिक मंशा का ही परिणाम है। मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय कमीशन की 2018 और 2019 की रिपोर्टों के तहत भी यह स्पष्ट किया गया कि धार्मिक और गैर धार्मिक अल्पसंख्यकों को संवैधानिक अधिकारों से विमुख करने तथा उन्हें पीड़ित करने के पाकिस्तान के प्रयास निरंतर जारी है। तथा पाकिस्तान सेना आईएसआई की सहायता से पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर और गिलगित बालटिस्तान में निरंतर मतभेद करवा रही है। इसके पीछे पाकिस्तान की जनसांख्यिकीय परिवर्तन की कूटनीति प्रभावी है और इसी नियति से इन क्षेत्रों की जनता के बोलने की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता को भी दबाया जाता रहा है।

यह विषय हाल ही में पुनः इसलिए  समाचार पत्रों तथा विभिन्न संगोष्ठियों में चर्चित रहा है। क्योंकि पिछले कुछ महीनों से चीन की गिलगिट बाल्टिस्तान में अवसंरचना निर्माण की गतिविधियां अधिक तीव्रता से चल रही हैं और चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के निर्माण कार्य हेतु चीनी मजदूरों तथा सैनिकों को इस क्षेत्र में बसाया जा रहा है। यही नहीं इस क्षेत्र में अल्पसंख्यकों की हत्या तथा जबरन घुसपैठ निरंतर की जा रही है। इन मानवाधिकार विरोधी तथा गैर लोकतांत्रिक गतिविधियों से त्रस्त पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर तथा गिलगित बालटिस्तान की जनता पाकिस्तान को पूर्णतया अस्वीकार कर चुकी है।

अतः आवश्यकता है कि भारत इस पक्ष पर अधिक पुरजोर तरीके से ध्यान देते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना पक्ष रखे और मानवाधिकारों के हनन संबंधी इस निकृष्ट कार्य के लिए पाकिस्तान तथा चीन के विरोध में निर्णयकारी कदम उठाए। कोई भी देश अपनी सीमाओं में भी मानव हत्या, दास प्रथा तथा दबावकारी कार्यों द्वारा मानवाधिकारों से समाज को वंचित नहीं कर सकता। यहां पाकिस्तान का दोगलापन स्पष्ट है। पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर और गिलगित बालटिस्तान जो कि पाकिस्तान के संविधान का कभी भी भाग नहीं रहे और पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर में एक अंतरिम संविधान आजाद जम्मू कश्मीर के नाम से बनाया गया। इसे पाकिस्तान अपनी सुविधानुसार बदलता रहता है तथा इस क्षेत्र में विनाशकारी परिवर्तन करता रहता है। अतः आवश्यकता है कि  भारतीय मीडिया भी इस पक्ष की तरफ ध्यान आकर्षित कर भारत विरोधी सूचना एवं संचार का सामना करें। क्योंकि जब अनुच्छेद 370 के पश्चात जम्मू कश्मीर में संचार साधनों पर नियंत्रण के संदर्भ में भारत को मानवाधिकारों के नाम पर बार-बार अपने कर्तव्य याद दिलाए गए जो कि भारत की सीमाओं में भारत  प्रशासन चलाने हेतु  संप्रभु क्षमता के तहत लिया गया निर्णय था। तो यह विषय निश्चय ही भारत द्वारा सार्वजनिक मंच पर रखना अनिवार्य है।

 

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