पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा 1051 ग्रंथों का लोकार्पण

पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा 1051 ग्रंथों का लोकार्पण

पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा 1051 ग्रंथों का लोकार्पणपुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा 1051 ग्रंथों का लोकार्पण

कर्णावती, गुजरात। पुनरुत्थान विद्यापीठ ने कर्णावती में 1051 ग्रंथों का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया। लोकार्पण कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि 1051 ग्रंथों का एक साथ लोकार्पण शायद विश्व रिकॉर्ड बन सकता है। भारतीयों को भारतीय ज्ञान परम्परा का ज्ञान हो जाए, इसके लिए जो अनिवार्य आवश्यक कदम उठाने पड़ते हैं, उनमें से यह एक कदम है। वैसे भारतीय ज्ञान परम्परा के अथाह सागर में यह बहुत छोटी सी बात है, लेकिन हमारी क्षमता के अनुसार यह एक बड़ा कदम है।

उन्होंने कहा कि पिछले 200 वर्षों में बहुत खेल हो गए। ज्ञान को समझने का अपना अपना तरीका रहता है। सबको सुख देने वाला क्या है, इसकी खोज दुनिया में जब से विचार उत्पन्न हुआ, तब से चल रही है। जो कुछ भी ज्ञान है, उसको समझने के दो तरीके बन गए। सारी बाहर की बात जानना उसे ज्ञान माना गया। हमारे यहाँ उसको विज्ञान कहते हैं। ज्ञान का अस्तित्व चिरन्तन है। ज्ञान सब अज्ञान से मुक्त करके मनुष्य जीवन को मुक्त करता है। यह ज्ञान बाहर नहीं है, उसको अंदर देखना पड़ता है…तब मिलता है। जो दिख रहा है, वह नित्य परिवर्तनशील है। यह बाह्य ज्ञान है। लेकिन केवल विज्ञान को मानने वाला यह कहता है कि बाकि सब गलत है। यह अहंकार है और अंदर के ज्ञान की शुरुआत इस अहंकार को मारकर होती है और सत्य का पूर्ण ज्ञान अपने अहम के परे जाने पर ही होता है। इसलिए अहं सापेक्ष और अहं निरपेक्ष, ऐसे दो प्रकार के ज्ञान को जानने के तरीके हैं। वास्तव में इसमें संघर्ष नहीं है। लेकिन अहं निरपेक्ष ज्ञान के तरीके वाले इसको समझते है और अहं सापेक्ष ज्ञान वाले इसको नहीं समझते, इसलिए बखेड़े खड़े करते हैं। और दुनिया में पिछले दो हजार साल में यही हुआ है।

उन्होंने कहा कि विज्ञान का जन्म हुआ और विज्ञान ने सब अंध श्रद्धाओं से मनुष्य को मुक्त किया और मनुष्यों को कहा कि प्रयोग करो, फिर मानो। इसके चलते मनुष्य का जीवन सुखमय हो गया। लेकिन मनुष्य ने साधनों को शक्ति के रूप में प्रयोग किया, जिसके परिणाम आज हम देख रहे हैं। जिसके हाथ में साधन है वो राजा, जो दुर्बल है वो समाप्त होगा।

कोरोना काल में सृष्टि को कैसे सुखमय रख सकते हैं, उसकी अनुभूति सबको हुई। वास्तव में दुनिया नया तरीका चाहती है और देने का काम हमारा है। हमारे राष्ट्र के अस्तित्व का प्रयोजन यही है। हमारी दृष्टि धर्म की दृष्टि है वो सबको जोड़ती है, सबको साथ चलाती है, वो सब को सुख देती है। अस्तित्व की एकता का सत्य हमारे पूर्वजों ने जाना, उससे परिपूर्ण एकात्म ज्ञान की दृष्टि मिली और इसीलिए उनको यह भी अनुभव हो गया कि सम्पूर्ण विश्व अपना परिवार है, एक परिवार है। जिस ज्ञान में मेरा-तेरा का भेद नहीं, यही पवित्र है और उस ज्ञान की उपासना हम करते हैं। सबके साथ एकात्मता की दृष्टि हम में उत्पन्न हुई। तब हमें कहा कि सारी दुनिया को कुछ देना चाहिए, इसलिए अपने राष्ट्र का उद्भव हुआ। विश्व के कल्याण की इच्छा रखने वाले हमारे पूर्वजों की तपस्या से हमारे राष्ट्र का निर्माण हुआ है। हमारा प्रयोजन विश्व का कल्याण है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में ज्ञानसागर महाप्रकल्प की अध्यक्ष इंदुमती ने प्रकल्प के विषय में जानकारी दी। राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांतक्का विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। कार्यक्रम के अध्यक्ष पूजनीय परमात्मानन्द जी ने आशीर्वचन दिया।

Share on

1 thought on “पुनरुत्थान विद्यापीठ द्वारा 1051 ग्रंथों का लोकार्पण

  1. वर्ल्ड रिकॉर्ड की अग्रिम शुभकामनाएं!
    और वैसे भी रिकार्ड से अधिक उपलब्धता तो धार्मिक सदसाहित्य निर्माण की हैं।

    – 1051 ग्रंथ कौनसे हैं? कृपया ये भी बताए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *