श्रीकांत के घर में पुलिस की बर्बरता, राजस्थान सरकार का मुस्लिम तुष्टीकरण चरम पर

श्रीकांत के घर में पुलिस की बर्बरता, राजस्थान सरकार का मुस्लिम तुष्टीकरण चरम पर
जयपुर। भरतपुर के दो मुस्लिम युवकों को कथित तौर पर जला कर मारे जाने की घटना के बाद राजस्थान सरकार और इसकी पुलिस ने सिर्फ बयानों और रिपोर्ट के आधार पर जिस तरह की तेजी दिखाई है, वह राजस्थान सरकार की तुष्टिकरण की नीति का एक और नमूना बन कर सामने आया है। रिपोर्ट कराने वाले मौके पर उपस्थित नहीं थे। उन्होंने दूसरों से मिली सूचना के आधार पर पांच लोगों के विरुद्ध नामजद मामला दर्ज करा दिया और पुलिस ने उसी आधार पर एक कथित आरोपी श्रीकांत के घर में घुस कर जिस तरह की बर्बरता की है, वह यह बता रही है कि इस मामले को लेकर पुलिस पर किस तरह का राजनीतिक दबाव है।
दो युवकों की मौत निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। इसकी निंदा की जानी चाहिए, लेकिन इस घटना के बाद जो कुछ हुआ है, वह यह बता रहा है कि यह घटना राजनीति की भेंट चढ़ गई है। इसके माध्यम से कुछ लोग सीधे तौर पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की तैयारी में हैं। वहीं राजस्थान सरकार अपनी तुष्टिकरण की नीति के हाथों इस सीमा तक मजबूर है कि उसने ना सिर्फ हाथों-हाथ मुआवजा घोषित कर दिया है, बल्कि इसकी पुलिस कथित नामजद आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई में बर्बरता की सीमा तक उतर आई है।
परिवार वालों का बयान खड़े कर रहा है कई प्रश्न
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि आखिर नामजद रिपोर्ट कैसे दर्ज हुई? मृतकों के परिवार वाले स्वयं कह रहे हैं कि जो भी घटना हुई, हरियाणा के जंगलों में हुई। वहीं उनकी गाड़ी को टक्कर मारी गई, उनसे मारपीट की गई और फिर मारपीट करने वाले उन्हें पुलिस के पास ले गए और जब पुलिस ने हिरासत में लेने से मना कर दिया तो उन्हें जला कर मार दिया गया। इस घटना में हरियाणा की क्राइम इन्वेस्टिगेशन एजेंसी और बजरंग दल के लोगों पर आरोप लगाते हुए मोनू मानेसर सहित पांच लोगों के विरुद्ध मामला दर्ज कराया गया। यह भी सामने आया कि प्रदेश की शिक्षा राज्य मंत्री जाहिदा खान जो इसी क्षेत्र से विधायक भी हैं, उनके हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की।
अब इस बयान को ही आधार बनाएं तो प्रश्न खड़े होते हैं कि-
- जिसने रिपोर्ट दर्ज कराई, उसके पास नामजद रिपोर्ट का क्या आधार है, क्योंकि वह रिपोर्ट दर्ज कराने वाला स्वयं मौके पर उपस्थित नहीं था। ऐसे में नाम कैसे और किसके इशारे पर रिपोर्ट में डलवाए गए?
- घटना जंगल में हुई तो आखिर कौन थे वे प्रत्यक्षदर्शी, जिन्होंने पहले उनकी गाड़ी को टक्कर मारते देखा, फिर मारपीट करते देखा और फिर जलाते देखा?
- पुलिस को अपनी जांच में कथित नामजद आरोपियों के घरों पर बर्बरतापूर्वक दबिश देने से पहले क्या इन प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ नहीं करनी चाहिए थी?
- बयान में कहा गया है कि कथित आरोपियों ने पहले मारपीट की और फिर स्वयं ही पुलिस के पास ले गए।आरोपी आखिर ऐसा क्यों करेंगे? वे या तो उन्हें सीधे पुलिस के पास ले जा सकते थे या मारपीट करनी थी तो मारपीट कर वहीं छोड़ सकते थे, पुलिस के पास ले जाने की क्या आवश्यकता थी? और यदि उन्हें इनको जान से ही मारना था, तो मारपीट के बाद सीधे मार देते। इस मामले में भी पुलिस के पास ले जाने की आवश्यकता नहीं थी।
- मान लिया जाए कि जो कुछ रिपोर्ट में कहा गया है, वही सच भी है, तो घटना के तुरंत बाद कथित आरोपी मोनू मानेसर ने स्वयं वीडियो जारी कर कहा कि उसका या बजरंग दल का इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है। वह जांच में पूरी तरह सहयोग करने के लिए तैयार है। अब में प्रश्न उठता है कि ऐसी घटना को अंजाम देने वाला आखिर क्यों वीडियो जारी कर ऐसी बात कहेगा। वह या तो छुपने का प्रयास करेगा या उन्मादी है तो स्वीकार करेगा कि उसने इस घटना को अंजाम दिया है।
- एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि मृतकों में से एक जुनैद पर गोतस्करी और मारपीट आदि के पांच मुकदमे दर्ज बताए जा रहे हैं, तो पुलिस ने आज तक उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
- इस घटना के बाद पुलिस ने जिस तरह श्रीकांत के घर पर दबिश दी और उसकी गर्भवती पत्नी से मारपीट की, जिसके चलते उसके बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई, इसके लिए उत्तरदायी कौन होगा? क्या इस अपराध के लिए किसी को सजा मिलेगी?
मामले को देखें तो साफ तौर पर लग रहा है कि पुलिस पर स्थानीय नेताओं का दबाव है। इस घटना के माध्यम से वहां के कुछ नेता और राजस्थान की कांग्रेस सरकार अपनी अपनी राजनीति चमकाने के प्रयास में हैं, क्योंकि गोतस्करी बड़ा मुद्दा है और ऐसे मामलों में हिन्दू संगठनों पर आरोप लगाना बहुत आसान है। बाकी बचा काम तथाकथित सेक्युलर मीडिया कर देता है, जो घटना के बाद से ही लगातार मीडिया ट्रायल कर रहा है। कुल मिला कर यह घटना एक बार फिर एकपक्षीय जांच और परिणाम की ओर बढ़ती दिख रही है, जो बेहद अफसोसजनक है।