पुस्तक परिचय – छह स्वर्णिम पृष्ठ
प्रस्तुत ग्रंथ छह स्वर्णिम पृष्ठ में हिंदू राष्ट्र के इतिहास का प्रथम स्वर्णिम पृष्ठ है यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्त की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ, यवनांतक सम्राट पुष्यमित्र की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्णिम पृष्ठ तथा सम्राट् विक्रमादित्य की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ इतिहास का तृतीय स्वर्णिम पृष्ठ है।
हूणांतक राजा यशोधर्मा के पराक्रम से उद्दीप्त पृष्ठ इतिहास का चतुर्थ स्वर्णिम पृष्ठ, मुस्लिम शासकों के साथ निरंतर चलते संघर्ष और उसमें मराठों द्वारा मुस्लिम सत्ता के अंत को हिंदू इतिहास का पंचम स्वर्णिम पृष्ठ कह सकते हैं। अंतिम स्वर्णिम पृष्ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाड़कर स्वातंत्र्य प्राप्त करना।
पुस्तक के परिच्छेद 7 में सावरकर जी लिखते हैं, “इस ऐतिहासिक कालखंड के जिन स्वर्णिम पृष्ठों की चर्चा मैं कर रहा हूँ, केवल उन्हें ही स्वर्णिम पृष्ठ की कसौटी पर मैं (क्यों) कसता हूँ? वैसे देखा जाए तो हमारे इस ऐतिहासिक कालखंड में काव्य, संगीत, प्राबल्य, ऐश्वर्य, अध्यात्म आदि अन्यान्य कसौटियों पर खरे उतरनेवाले सैकड़ों गौरवास्पद पृष्ठ मिलते हैं, परंतु किसी भी राष्ट्र पर जब परतंत्रता का प्राण-संकट आता है, जब शत्रु के प्रबल एवं कठोर पाद प्रहार उसे रौंद डालते हैं (तब) उस शत्रु को पराजित कर उच्च कोटि का पराक्रम कर स्वराष्ट्र को परतंत्रता से और शत्रु से मुक्त करनेवाली तथा अपने राष्ट्रीय स्वातंत्र्य और स्वराज्य का पुनरुज्जीवन करनेवाली वीर जुझारू पीढ़ी और उसका नेतृत्व करनेवाले वीर, धुरंधर, विजयी पुरुष सिंहों के स्वातंत्र्य – संग्राम के वृत्तांतों से रँगे पृष्ठों को ही मैं ‘स्वर्णिम पृष्ठ’ कहता हूँ। कोई भी राष्ट्र अपने पर-जयी स्वातंत्र्य-युद्धों के वर्णनों से युक्त ऐतिहासिक पृष्ठों का सम्मान इसी प्रकार ‘स्वर्णिम पृष्ठ’ कहकर करता है।”
विश्वास है, सुधी पाठक भारतीय इतिहास का सम्यक रूप में अध्ययन कर इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं और घटनाओं से परिचित होंगे।
लेखक:- विनायक दामोदर सावरकर
प्रकाशन:- प्रभात प्रकाशन दिल्ली
ISBN 978-81-7315-685-4
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