पुस्तक समीक्षा – पुण्यभूमि भारत

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” हमारी संस्कृति का परिचायक यह अटल वाक्य देश को स्वर्ग के सुखों से भी परमोच्च स्थान देता है। लेकिन क्या हम अपने देश, अपनी संस्कृति को वह आदर दे पा हैं जो हमें देना चाहिए था। केवल कुछ दिवसों, नारों और जयकारों के अलावा हमारे कर्तव्य क्या हैं, हम जानते हैं? अपनी प्राचीन गौरवशाली सभ्यता व संस्कृति के विषय में हम कितना जानते हैं इसका परीक्षण इस लघु पुस्तिका पुण्य भूमि भारत से ही हो जाएगा।

हमने अपने गौरवशाली अतीत को बिल्कुल ही भुला दिया है। इस पुस्तिका को पढ़ने पर हमें प्रतीत होगा कि वास्तव में हम अपने देश के विषय में कुछ भी नहीं जानते। देश के पुण्य भौगोलिक, प्राकृतिक, आध्यात्मिक स्वरूप का बहुत ही प्रभावशाली निरूपण हमें इसमें मिलता है। बहुत ही सरल भाषा में चित्रों के माध्यम से यह पुस्तिका प्राचीन भारत के गौरव की झांकी प्रस्तुत करती है। “पुण्यभूमि भारत” लघु पुस्तिका होते हुए भी भारत के विशाल गौरव के दर्शन कराती है। हम आज अपने स्वार्थ के वशीभूत केवल अपने अधिकारों की बात करते हैं और कर्तव्यों की इतिश्री हमने मान ली है। भारत के विशाल स्वरूप को अक्षुण्ण रखना हमारा कर्तव्य था, लेकिन हम नहीं रख पाए। अतः भारत सिमटता चला गया।”पुण्यभूमि भारत” हमें इस विषय में चिन्तन करने का संकल्प दिलाती है।

पुस्तिका की रचना बच्चों को ध्यान में रखते हुए की गई है, लेकिन सभी आयु वर्गों के लिए बहुत उपयोगी है। अपने देश के विषय में जानें ताकि गर्व से कह सकें कि हम अपनी जननी को जानते भी हैं और पहचानते भी हैं। आगे आने वाली पीढ़ियां अपने देश के वैभवशाली गौरव को जानेंगी और गर्व से कह सकेंगी कि हम भारतीय हैं।

मीनू गेरा भसीन

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *