पृथ्वी का बढ़ता तापमान : एक ग्लोबल चुनौती
सुनील कुमार महला
पृथ्वी का बढ़ता तापमान अब एक ग्लोबल चुनौती बन चुका है। संपूर्ण विश्व के साथ ही भारत भी पृथ्वी की बढ़ती तपिश का सामना कर रहा है। धरती का तापमान बढ़ने से धरती की पारिस्थितिकी तंत्र में भी अनेक आमूल चूल परिवर्तन आ रहे हैं। तपिश इतनी बढ़ चुकी है कि मैदानी भागों में तो क्या पहाड़ों में भी आदमी तपिश व बढ़ती उमस को झेल नहीं पा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं पर इससे पेयजल संकट गहरा गया है, तो कहीं पर सूखे का खतरा तक मंडराने लगा है। हाल ही में उत्तराखंड के टनकपुर में पारा 41 डिग्री को पार कर गया, यह बहुत ही चिंताजनक बात है। बढ़ती गर्मी से आदमी तो आदमी जीव जंतुओं का हाल बहुत बुरा हो गया है। हाल ही में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में पेयजल संकट गहरा गया है और पांच योजनाओं में 30 प्रतिशत पानी कम होने पर विभाग को रोस्टर प्रणाली शुरू करनी पड़ी है। बताया जा रहा है कि मुख्यालय के बड़े कैचमेंट एरिया पर लगातार सूखे का खतरा मंडरा रहा है। इसी बीच यदि हम यहां मैदानी क्षेत्रों की बात करें तो उत्तर प्रदेश व बिहार आजकल भीषण गर्मी की चपेट में हैं। हाल ही में एक हिन्दी दैनिक समाचार पत्र के अनुसार गर्मी और लू से अकेले उत्तर प्रदेश के बलिया जिला अस्पताल में 10 से 17 जून के बीच 121 मौतें हुई, जिनमें से 34 मौतें तो बाद के दो दिनों में हुई। 43 से 44 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच अस्पताल डायरिया व लू के रोगियों से भरे हुए हैं। समाचार पत्र ने अपने संपादकीय में यह भी लिखा है कि बिहार के पटना में भी अत्यधिक गर्मी और लू से हुई मौतों का आंकड़ा चौंकाने वाला है। इस कारण बिहार में स्कूल बंद कर दिए गए हैं, तो मध्य प्रदेश में पांचवीं तक के बच्चों की गर्मी की छुट्टियां 30 जून तक बढ़ा दी गई हैं। मौसम विज्ञान विभाग ने तापमान घटने की संभावना तो नहीं ही जताई है, उल्टे अगले पांच दिन तक विदर्भ और छत्तीसगढ़ में तापमान और बढ़ने की बात कही है।
धरती पर लगातार बढ़ती तपिश के परिणामस्वरूप पृथ्वी में लगातार बदलाव आ रहा है और इसके कारण ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है। पर्वतों पर ग्लेशियर लगातार घट रहे हैं। समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और समुद्री स्तर बढ़ने से जनसमूहों का लगातार पलायन हो रहा है। वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू के खतरे की आशंकाएं बढ़ रही हैं। एक अत्यधिक गर्म जलवायु में, वायुमंडल अधिक पानी एकत्रित कर सकता है और बारिश कर सकता है, जिससे वर्षा के पैटर्न में बदलाव हो सकता है। वास्तव में, ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी की सतह, महासागरों और वायुमंडल के क्रमिक ताप व मानव गतिविधियों के कारण होता है, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन का जलना जो कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन (methane) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में उत्सर्जित करता है।
आज विश्व के विकसित देश लगातार बड़ी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन कर रहे हैं और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनो ऑक्साइड (CO) व अन्य ग्रीन हाउस गैसों (green house gases) की अधिकता हो गई है, जो कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए मुख्य जिम्मेदार घटक है। विकसित देश, विकासशील देशों को अधिक कार्बन उत्सर्जन (carbon emmission) के लिए जिम्मेदार मानते हैं, जबकि अधिकतम कार्बन का उत्सर्जन वे स्वयं करते हैं और वे इसके लिए विकासशील देशों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उल्लेखनीय है, लगभग 200 देशों ने साल 2015 के पेरिस समझौते में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5C या उससे कम तक सीमित करने का संकल्प लिया था, लेकिन ये देश अपने ही संकल्प को पूरा कर पाने में सक्षम साबित नहीं हो पा रहे हैं। आज ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौत का आंकड़ा बढ़ने के अलावा बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं और कामकाज प्रभावित होने से अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है। एक आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2000 से 2004 तक देश में लू और बढ़े तापमान के कारण वार्षिक औसतन 20,000 मौतें होती थीं, पर वर्ष 2017 से 2021 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर सालाना 31,000 मौतों का हो गया। वैज्ञानिकों का यह कहना है कि इस परिवर्तन (ग्लोबल वार्मिंग) के पीछे ग्रीन हाउस गैसों की मुख्य भूमिका है, जिन्हें सीएफसी या क्लोरो फ्लोरो कार्बन भी कहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये गैसें वातावरण में बढ़ती जा रही हैं और इससे ओज़ोन परत की छेद का दायरा बढ़ता ही जा रहा है।ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक समस्या है और इससे एकजुट होकर ही निपटा जा सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग (global warming) की समस्या से निपटने के लिए मुख्य रूप से सीएफसी गैसों का उत्सर्जन कम करने की आवश्यकता है और इसके लिए फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का प्रयोग कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा, जिनसे सीएफसी गैसें (CFC gases) कम निकलती हैं। औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकलने वाला धुँआ हानिकारक है और इनसे निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड गैस गर्मी बढ़ाती है। वास्तव में हमें इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे। वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा। इतना ही नहीं, हमें उद्योगों और विशेष रूप से रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोगी बनाने के प्रयास करने होंगे और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी, जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा। आज बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादन के लिए कोयला जलाया जाता है, और कोयले से ग्लोबल वार्मिंग बहुत अधिक होता है, इसलिए हमें अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पन बिजली पर ध्यान दिया जाए तो धरती की आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दुनिया को सचेत किया था। यूएन ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि अगले पांच सालों के भीतर ग्लोबल वार्मिंग खतरनाक 1.5 C की सीमा को पार कर जाएगी। अल नीनो और मानव जनित जलवायु परिवर्तन से विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदा आएंगी, इससे भारी मात्रा में विनाश देखने को मिल सकता है। जिस तरह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, उसी तरह से उसका बढ़ना जारी रहता है तो इससे स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, जल प्रबंधन और पर्यावरण पर इसका बहुत ही बुरा असर पड़ेगा।
हालांकि, एक रिपोर्ट के अनुसार अन्य देशों की तुलना में भारत में तापमान में कम वृद्धि हुई है। विश्व में जहां 1.59 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा है, वहीं भारत में केवल 0.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा है, लेकिन बावजूद इसके भारत को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए ऊपर सुझाए गए सुझावों पर अमल करना होगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए मुख्य घटक मानव गतिविधियों को ही कहा जा सकता है, इसलिए हमें पर्यावरण के साथ तालमेल, सामंजस्य स्थापित कर आगे बढ़ना होगा।