क्या पोप फ्रांसिस भारत से भी माफी मांगेंगे?
बलबीर पुंज
हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बहुदेशीय राजकीय यात्रा के दौरान वेटिकन में पोप फ्रांसिस से मिले। वे रोमन कैथोलिक चर्च के वैश्विक प्रधान (पॉन्टिफ) होने के साथ विश्व के सबसे छोटे, स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र, जिसका क्षेत्रफल केवल 44 हेक्टेयर (108.7 एकड़) और जनसंख्या 768 है- उसके प्रमुख भी हैं। विश्व की कुल जनसंख्या (7.8 अरब) में 2.4 अरब ईसाइयों के लिए पोप निसंदेह श्रद्धा के पात्र हैं। 30 अक्टूबर को पोप से भेंट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय परंपरा- ‘एक सत् विप्रा: बहुधा वदंति’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का परिचय देते हुए उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया, जिसे पोप ने सहर्ष स्वीकार भी किया। इसी घटनाक्रम से कुछ दिन पहले पोप फ्रांसिस ने फ्रांस के उस वीभत्स खुलासे को दुर्भाग्यपूर्ण-शर्मनाक बताया था, जिसमें वहां के चर्चों में पादरियों द्वारा 70 वर्षों में 3,30,000 बच्चों का यौन शोषण करने का रहस्योद्घाटन हुआ था। इस अक्षम्य अपराध पर 6 नवंबर को फ्रांसीसी नगर ल्यूर्डेस में बिशपों के बड़े समूह ने अपने घुटनों पर बैठकर प्रायश्चित भी किया।
ऐतिहासिक भूलों/अपराध पर रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा पश्चाताप या माफी नई बात नहीं है। चर्च में यौन-शोषण का यह पहला मामला भी नहीं है। शेष विश्व में पादरियों द्वारा बालिग, नाबालिग और ननों के साथ यौनाचार के दशकों पुराने कई सौ मामले कलंक बनकर सामने आ चुके हैं। इस पर 2008 में तत्कालीन पोप बेनेडिक्ट-16, तो वर्तमान पोप फ्रांसिस 2018 में सार्वजनिक माफी मांग चुके हैं। पादरियों के यौनाचार संबंधित गंभीर आरोपों से भारत के चर्च (अधिकांश वेटिकन संचालित) भी मुक्त नहीं हैं।
अब प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर पोप फ्रांसिस कब भारत आएंगे, यह पता नहीं। प्रश्न उठता है कि जब भी वे या उनके उत्तराधिकारी भारत की यात्रा करेंगे, क्या तब वे उन सब ‘पापों’ के लिए भी भारतीय जनता से माफी मांगेंगे, जिनमें चर्च और उनके प्रतिनिधियों ने सदियों पहले देश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रताड़ना, नरसंहार और मतांतरण का संचालन किया था? दुर्भाग्य से मतांतरण के नाम पर स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को अपमानित करने की वह कलुषित प्रथा आज भी स्वतंत्र भारत के कई हिस्सों में जारी है।
ईसाइयत का भारत से संपर्क इस्लाम की भांति दो किस्तों में हुआ। देश में दोनों ही एकेश्वरवादी अब्राह्मी मजहबों का दूसरा दौर अपने दर्शन के अनुरूप वैमनस्य, घृणा और असहिष्णुता भी साथ लेकर आया। प्राचीनकाल में अपने उद्गमस्थान पर मजहबी उत्पीड़न के शिकार हुए जो लोग भारतीय तटों पर पहुंचे, उनमें यहूदियों के बाद सीरियाई ईसाई भी शामिल थे- जो रोमन कैथोलिक चर्च का दंश झेलकर आए थे। तब इन सभी विदेशियों का तत्कालीन स्थानीय हिंदू शासकों और जनता ने बहुलतावादी भारतीय परंपराओं के अनुरूप उन्हें ना केवल समाज का हिस्सा बनाया, साथ ही उन्हें उनकी पूजा-पद्धति और जीवनशैली अपनाने का अवसर भी दिया।
यह सुखद स्थिति तब बिगड़ी, जब 15-16वीं शताब्दी में रोमन कैथोलिक चर्च का पुर्तगाली साम्राज्यवाद के साथ भारत में प्रवेश हुआ। तब कालांतर में स्पेनवासी फ्रांसिस जेवियर ने भारतीय इतिहास के सबसे भयावह, नृशंस और रक्तरंजित अध्यायों में से एक- ‘गोवा इंक्विजीशन’ (1561-1812) की पटकथा लिख डाली। ईसाइयत के प्रचार हेतु 1541-42 में जेसुइट मिशनरी बनकर भारत पहुंचे जेवियर ने पाया कि यहां गैर-ईसाइयों की भांति मतांतरित कैथोलिक ईसाई अपनी मूल परंपराओं के साथ पूजा-पद्धति का ही अनुसरण कर रहे थे। तब चर्च से निर्देश मिलने पर जेवियर ने गोवा में ‘हेरेटिक्स’ अर्थात्- मजहबी मान्यता से विपरीत धारणा रखने वालों के विरुद्ध अमानुषी ‘इंक्विजीशन’ प्रारंभ किया, जो हजारों स्थानीय हिंदुओं, यहूदियों के साथ मतांतरित और सीरियाई ईसाइयों पर कहर बनकर टूटा।
रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं को अंगीकार नहीं करने वालों (‘हेरेटिक’) को अपराधी माना गया और उन्हें जीभ काटने या उनकी जीवित ही चमड़ी उतारने जैसी क्रूर सजा दी गई। इन प्रताड़नाओं से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई। कैथोलिक चर्च और पुर्तगाली ईसाई मिशनरियों के निर्देश पर 350 से अधिक मंदिरों और देवी-देवताओं की मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया गया। ईसाइयत के प्रति ‘सेवा’ के लिए मजहबी दुराचारी फ्रांसिस जेवियर को 1662 में तत्कालीन पोप ग्रेगरी-15 ने ‘संत’ की उपाधि दी। गोवा के पणजी स्थित बेसिलिका बॉम जीसस चर्च में जेवियर का शव आज भी रखा हुआ है।
रोमन कैथोलिक चर्च की तत्कालीन क्रूरता का उल्लेख संविधान निर्माता बाबासाहब डॉ.अंबेडकर ने अपने लेखन-कार्य के 5वें खंड में किया है। पृष्ठ संख्या 435 में उन्होंने लिखा, “…जैसे ही गोवा में जांचकर्ताओं (इंक्विजीशन करने वाले) को पता चला कि वे (सीरियाई ईसाई) हेरेक्टिक है, तब पोप के प्रतिनिधि सीरियाई चर्च पर भेड़ियों की तरह टूट पड़े…।” डॉ.अंबेडकर ने आगे लिखा, “…डॉन एलैक्सिज डि मेंडिस को गोवा का आर्कबिशप बनाया गया था। उसका मुख्य उद्देश्य नए गैर-ईसाइयों के मतांतरण की तुलना में पुरानों को अपने अधीन रखना था। इसके लिए उसने स्वयं को अति-उत्साह के साथ इस उत्पीड़न के काम में झोंक दिया, जोकि रोम काफी प्रिय लगा।” आज भी भारत के कई हिस्सों- पंजाब, झारखंड आदि राज्यों में वामपंथियों-सेकुलरवादियों के आशीर्वाद से चर्चों और ईसाई मिशनरियों का छल, धोखे और लालच आधारित मतांतरण रूपी आत्मा का व्यापार जारी है।
चर्च का दागदार इतिहास केवल भारत तक सीमित नहीं है। सदियों पहले हुए मजहबी क्रूसेड से लेकर स्पेन, पुर्तगाल, मैक्सिको और पेरू ‘इंक्विजीशन’, महिलाओं को ‘विच’ (चुड़ैल) बताकर जीवित जलाने और यहूदियों आदि गैर-ईसाइयों की हत्याओं आदि का भी चर्च अपराधी है। यरुशलम स्थित पवित्र भूखंड पर ईसाइयत का परचम लहराने हेतु हुए चर्च ने क्रूसेड युद्ध (1095-1291) लड़ा, जिसमें कम से कम 10 लाख लोग मारे गए थे। एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार, 1450-1750 के बीच एक लाख से अधिक महिलाओं को चर्च के निर्देश पर चुड़ैल घोषित करके मौत के घाट उतार दिया गया था। इसी अगणनीय पीड़िताओं में ईसाई विरांगना “जोन ऑफ आर्क” भी शामिल है, जिसका पराक्रम चर्च को रास नहीं आया और उसे अपराधी घोषित करके मार डाला। वर्ष 1466 में तत्कालीन पोप पॉल-2 के निर्देश पर क्रिसमस के दिन रोम में यहूदियों को सरेआम नग्न घुमाया गया। कालांतर में, यहूदी पुजारियों (रब्बी) को विदूषक-परिधान पहनाकर उनका जुलूस निकाले जाने लगा। 25 दिसंबर 1881 को पोलैंड के वारसॉ में 12 यहूदियों को उन्मादी ईसाइयों ने निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया, कई महिलाओं का बलात्कार तक किया। यही नहीं, 13वीं शताब्दी में तत्कालीन पोप के आह्वान पर दुनियाभर की हजारों बिल्लियों को “शैतान” बताकर मार दिया गया था।
मार्च 2000 में तत्कालीन पोप दिवंगत जॉन पॉल-2 ने बिना किसी संदर्भ या व्यक्तिगत अपराधी का नाम लिए बिना चर्च द्वारा किए गए ‘पापों’ के लिए क्षमा मांगी थी। अभी कुछ माह पहले कनाडा में सदियों पहले चर्च द्वारा स्थापित दो आवासीय स्कूलों से एक हजार बच्चों की कब्रें मिली। ऐसे कई स्कूलों (1876-1996) के माध्यम से कनाडा के लाखों मूल स्थानीय आदिवासियों को उनकी सांस्कृतिक-पांरपरिक जड़ों से काटकर ईसाई बनाया था। इसपर कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पोप से माफी मांगने को कहा है। इस पृष्ठभूमि में क्या पोप अपने भारत आगमन पर चर्च द्वारा किए गए असंख्य ‘पापों’ के लिए माफी मांगेंगे?
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)