प्रभावशाली और सकारात्मक नेतृत्व के अभाव से जूझता भारतीय मुस्लिम

जब तक पढ़ा लिखा मुस्लिम वर्ग जाहिल मुसलमानों के खिलाफ लिखना और बोलना शुरू नहीं करेगा, तब तक गालियां पूरी कौम ही खाती रहेगी।

– मुरारी गुप्ता

 

ऐसे वक्त में, जब इन तबलीगी जमातियों की हर मंच से कड़ी भर्त्सना होनी चाहिए थी, मुस्लिम समुदाय का वह तबका जो खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताता है, खामोश रहा। उनकी हरकतों पर चुप रहकर उन लोगों ने अपने ही समुदाय को निंदा का पात्र बना दिया। कितना अच्छा होता यदि पहले दिन से इन जमातियों और इनके प्रमुख मौलाना साद की भर्त्सना की गई होती।

उपरोक्त शीर्षक को ट्विटर पर एक मुस्लिम महिला जुही कुरैशी के ट्वीट से आसानी से समझा जा सकता है। वह लिखती हैं- जब तक पढ़ा लिखा मुस्लिम वर्ग जाहिल मुसलमानों के खिलाफ लिखना और बोलना शुरू नहीं करेगा, तब तक गालियां पूरी कौम ही खाती रहेगी।

अब मशहूर शायर मुनव्वर राणा को सुनते हैं- जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है, अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है।

मशहूर गीतकार जावेद अख्तर का एक ट्वीट देखते हैं- विद्वान और अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष ताहिर महमूद ने सभी मस्जिदों को बंद करने के लिए दारुल उलूम देवबंद से फतवा जारी करने की मांग की है। मैं उनकी इस मांग का पूरी तरह समर्थन करता हूं। जब काबा की मस्जिद बंद हो सकती है तो भारतीय मस्जिदें क्यों नहीं।

अब बात करते हैं तबलीगी जमात की। जमात के लोगों ने कोरोना वायरस के मद्देनजर जानबूझकर जिस लापरवाही का परिचय दिया, वह उनकी सोच के हिसाब से अनुचित भी नहीं है। एक मुस्लिम मित्र से चर्चा के दौरान उसने बताया कि सामान्य मुस्लिम लोग इन जमातियों को पसंद नहीं करते। इनकी सोच, शैली और काम करने का तरीका सामान्य मुस्लिमों से एकदम अलग है। इनकी तबलीगी यानि शिक्षा-दीक्षा की तीव्रता इतनी आकर्षक होती है, कि युवा से लेकर बुजुर्ग मुस्लिम भी जमात की सोच का प्रसार प्रचार करने के लिए अपना घर परिवार छोड़कर इनके साथ हो जाता है और जैसा कि तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद अपने एक भाषण में कहते हैं, मस्जिदों में मरना कई गुना बेहतर है। इसलिए नमाज नहीं छोड़नी है। दुनिया के लगभग 190 देशों में सुन्नी मुस्लिमों के बीच काम करने वाली इस संस्था से करोड़ों मुस्लिम जुड़े हैं। छोटे भाई का पायजामा और बड़े भाई का कुर्ता यानी ओछा पायजामा और घुटने तक कुर्ता, सर पर सफेद टोपी, बढ़ी हुई दाढ़ी और साफ मूंछों के प्रति जमात का खास आग्रह रहता है। उनका फोकस मुस्लिमों को एक अलग पहचान कायम करने पर रहती है। मुस्लिम मित्र बताते हैं कि ये लोग इतने गुप्त ढंग से काम करते हैं कि सामान्य मुस्लिमों को उनके क्रियाकलाप के बारे में बता ही नहीं चलता।

कोरोना के कारण जब पूरे भारत में लॉकडाउन के हालात हैं। हालांकि इससे आम लोगों को तकलीफ हुई, मगर दुनियाभर के देशों के साथ तुलना करें, तो भारत में तेजी से हालात नियंत्रण में आने लगे थे। मगर जैसे ही तबलीगी जमात के लोगों ने निजामुद्दीन से अपने अपने राज्यों में पलायन शुरू किया, वे अपने साथ चीनी वायरस भी ले गए और स्थानीय लोगों में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलना शुरू हो गया। अब हालात यह है कि कोरोना संक्रमित कुल मरीजों में एक तिहाई जमात के लोग हैं। गाजियाबाद, नई दिल्ली और कई स्थानों पर जहां इनका इलाज किया जा रहा था, वहां इनकी अमानवीय हरकतों ने इनकी तबलीग यानी शिक्षा-दीक्षा और आचरण पर गहरे सवाल उठा दिए हैं। इलाज के दौरान नर्सों के सामने जिस तरह का अश्लील व्यवहार इन जमातियों ने किए हैं, वह पूरे मुस्लिम समुदाय को हास्यास्पद स्थिति में खड़ा कर रहा है।

ऐसे वक्त में, जब इन जमातियों की हर मंच से कड़ी भर्त्सना होनी चाहिए थी, मुस्लिम समुदाय का वह तबका जो खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताता है, खामोश रहा। उनकी हरकतों पर चुप रहकर उन लोगों ने अपने ही समुदाय को निंदा का पात्र बना दिया। निश्चित रूप से दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार और इंटेलीजेंस इन जमातियों के जमावड़े को रोकने में फेल रही है। यह जांच का विषय हो सकता है कि इसमें जानबूझकर फेल होने का भी कोई तथ्य है अथवा नहीं। मगर मामला सामने आने पर देश के प्रमुख दलों में से किसी ने भी जमात की सार्वजनिक मंच से आलोचना नहीं की। ज्यादातर मुस्लिम वर्ग के धार्मिक प्रमुखों, विद्वान भी जमात की इन हरकतों पर चुप दिखे। बल्कि पहली बार, बरेलवी, देवबंदी और दूसरे विचार के अन्य मुस्लिम विद्यालयों के धार्मिक विद्वानों ने तबलीगी जमात का खुलकर समर्थन किया है। खास बात यह कि ये वर्ग कभी एक दूसरे की राय से सहमत नहीं होते थे और न ही एक दूसरे का समर्थन करते थे। सूफी नेता और सीरत-अन-नबी एकेडमी के अध्यक्ष मौलाना सैयद गुलाम समदानी अली कादरी ने कहा कि हालांकि वह तबलीगी जमात का वैचारिक रूप से विरोध करते थे लेकिन वह उनके सिद्धांतों पर इसका समर्थन करेंगे। जमीयत उलेमा हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने भी जमातियों को दोषी ठहराने के बजाय प्रशासनिक अधिकारियों को ही जिम्मेदार बताया है।

मुस्लिम समुदाय का बड़ा वर्ग बहुत सामान्य जीवन व्यतीत करता है। देश के अन्य नागरिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता है। राष्ट्र निर्माण में सहयोग करता है। लेकिन उसकी आवाज  इन तबलीगी जैसे समूह की चिल्ल पों और उसकी अमानवीय हरकतों में कहीं दब जाती है। उस निम्न- मध्यम वर्ग के मुस्लिम समुदाय की आवाज को बुलंद करने के लिए कोई धार्मिक, सामाजिक या राजनैतिक नेता कहीं भी किसी भी मंच पर नहीं दिखता।

यह सही वक्त है, जब निम्न-मध्यम वर्ग के मुस्लिमों के बीच से भारतीयता से ओतप्रोत, उनकी आवाज उठाने वाली, इस्लाम के नाम पर प्रोपेगेंडा करने वालों का पर्दाफाश करने वाली बहुत सी आवाजें खड़ी हों। भारत को प्रतीक्षा है उस दिन की जब इन्हीं आवाजों में से कुछ प्रभावशाली और सकारात्मक नेता उभर कर मुस्लिमों को पहले भारतीय, फिर नागरिक और अंत में मुस्लिम के तौर पर स्थापित कर सकेंगे।

 

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