फिल्म समीक्षा – छोरियां छोरों से कम नहीं होतीं
राजेश अमरलाल बब्बर द्वारा निर्देशित फ़िल्म “छोरियां छोरों से कम नहीं होतीं” एक ग्रामीण लड़की के संघर्ष और सफलता को प्रदर्शित करती है। हरियाणा की ग्रामीण संस्कृति में अवस्थित बिनीता चौधरी (बीनू) का परिवार विशुद्ध भारतीय संस्कृति में पोषित है, परन्तु महिलाओं को यहां शिक्षा हेतु प्रोत्साहन नहीं मिलता। नटखट, साहसी, और मेहनती बीनू पढ़ लिख कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के माध्यम से आईपीएस अधिकारी बनने का स्वप्न संजोती है। बीनू का ताऊ बलदेव उसके पिता जयदेव की जमीन हड़प लेता है। पर बीनू अपनी होशियारी, हिम्मत और प्रतिभा से उस जमीन को पुनः हासिल करती है। आईपीएस रोहिणी फोगाट की प्रेरणा, उसके मित्र विकास का हर कदम पर साथ और उसके दादाजी की प्रेरणा से बीनू अपनी मंजिल पा ही लेती है। महिलाओं के लिए वह एक प्रेरणा स्रोत बनती है। पर उसकी सबसे बड़ी सफलता है – उसके पिता जयदेव चौधरी का हृदय परिवर्तन। उन्हें अपनी त्रुटि का अहसास होता है और वे भी बीनू की शक्ति और लगन का लोहा मानते हैं।
“बिटिया, बिटिया, मेरी प्यारी बिटिया” गाना भावुक करता है। परन्तु “दम-दम अली-अली” गाना फ़िल्म की विषयवस्तु के अनुरूप नहीं है। नवोदित कलाकारों ने अच्छा काम किया है। महिला शिक्षा हेतु प्रेरणादायी फ़िल्म है।
डॉ. अरुण सिंह