अरावली फ़िल्म सोसायटी का फिल्म समीक्षा कार्यक्रम, दिखाई गई फिल्म हिचकी

अरावली फ़िल्म सोसायटी का फिल्म समीक्षा कार्यक्रम, दिखाई गई फिल्म हिचकी

अरावली फ़िल्म सोसायटी का फिल्म समीक्षा कार्यक्रम, दिखाई गई फिल्म हिचकी

सीकर। अरावली फ़िल्म सोसायटी द्वारा पिछले शुक्रवार, 4 मार्च 2022 को फ़िल्म समीक्षा कार्यक्रम रखा गया। जिसमें सभी कार्यकर्ताओं द्वारा एम.के. मेमोरियल विद्यालय में विशेष स्क्रीन के माध्यम से सामूहिक रूप से फिल्म हिचकी देखी गई।

फिल्म हिचकी में रानी मुखर्जी ने नैना माथुर नाम की शिक्षिका का पात्र निभाया है। नैना माथुर टॉरेट सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रसित है। यह तंत्रिकाओं से जुड़ा रोग है, जिसमें मांसपेशियों में समय-समय पर Tics होते हैं। टिक्स का अर्थ है अचानक संकुचन या सिकुड़न होना। इसी कारण अचानक मांसपेशियों में संकुचन होता है और पीड़ित के हाव-भाव व शब्द बदल जाते हैं। यह सिंड्रोम दिमाग में मौजूद न्यूरोट्रांसमीटर के संतुलन के बिगड़ने के कारण होता है।

फ़िल्म देखने वालों की कुल संख्या 15 रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजस्थान क्षेत्र के सह-क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोज कुमार का प्रवास रहा। सभी दर्शकों ने फ़िल्म समीक्षा में अपने विचार रखे। जो निम्न प्रकार रहे:-

  • सेवानिवृत व्याख्याता कैलाशचन्द्र का कहना था कि, फिल्म में जिस प्रकार विद्यार्थियों ने विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को साबित किया, वह यह बताता है कि स्वयं पर विश्वास हो तो प्रत्येक कार्य सम्भव है। प्रतिभा छिपाने से छिपती नहीं है। सभी के अंदर कुछ न कुछ अंतर्निहित ज्ञान होता है जो उचित अवसर मिलने पर सामने आता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेषताएं तो कुछ कमियां होती हैं। इसलिए केवल कमियों के आधार पर किसी का आंकलन नहीं करना चाहिए। व्यक्ति अपने दृढ़ निश्चय और मेहनत के द्वारा अपनी कमियों को अपनी ताकत बना सकता है। जैसा इस फ़िल्म में भी दिखाया गया है।
  • अभिमन्यु राठौड़ को फ़िल्म में शिक्षिका के पढ़ाने का तरीका अच्छा लगा। उन्होंने कहा कि छात्र व शिक्षक के सम्बंध कैसे होने चाहिए, यह फिल्म में बखूबी दर्शाया गया है, जो प्रेरणादायक है।
  • प्रतीक शर्मा को फिल्मांकन कमजोर लगा। उनका कहना था कि फिल्म में आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को अधिक प्रतिभाशाली व समृद्ध विद्यार्थियों को तुलनात्मक रूप से कमजोर दिखाया गया है।
  • मनोज कुमार को कुछ दृश्य अनावश्यक रूप से बढ़ा चढ़ा कर दिखाए गए लगे। उन्होंने कहा, फ़िल्म में छात्रों को हॉल के अंदर जुआ खेलते, सिगरेट पीते व शिक्षक के सामने कुर्सियां तोड़ते दिखाया गया है, जो आमतौर पर किसी भी विद्यालय में नहीं होता। समग्र रूप से देखा जाए तो फ़िल्म का विषय अच्छा था। छात्र व शिक्षक के बीच अपनत्व के भाव को दिखाया गया है। फिल्म में सामाजिक समरसता को भी दर्शाया गया है। आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को आर्थिक रूप से समृद्ध विद्यार्थियों द्वारा सहर्ष स्वीकार किया जाता है व अन्य अध्यापकों द्वारा भी उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाता है, उनकी प्रतिभा का सम्मान किया जाता है। जो समाज में एक सकारात्मक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
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