बंगाल में बलात्कार एक हथियार बन गया है – पीड़िता
आज बंगाल में जो हो रहा है, उसने इस्लामिक शासन के दौर की याद दिला दी। तब भी इस्लामिक शासक किसी राज्य को जीतते ही वहॉं के पुरुषों की हत्याएं करते थे या उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करते थे, महिलाओं का बलात्कार करते थे ताकि महिला की आत्मा छलनी हो जाए, उसका आत्मविश्वास डिग जाए और उसे भी मतांतरित करना आसान हो जाए और समाज में भय का वातावरण निर्मित हो।
पिछले दिनों विधान सभा चुनाव के बाद बंगाल में हिंसा ने जोर पकड़ा। वहॉं भी यही सब देखने को मिला। भाजपा सपोर्टर्स की हत्याएं हुईं और महिलाओं के साथ बलात्कार। लोगों से कहा गया या तो वे टीएमसी का समर्थन करें या मुसलमान बन जाएं या घर छोड़कर अन्यत्र कहीं चले जाएं। हिन्दू बनकर रहने के लिए हफ्ता वसूली दें। घुसपैठिए रोहिंग्या बहुल 24 परगना में तो हालात ये बताए जा रहे हैं कि टीएमसी के मुस्लिम गुंडे किसी भी हिन्दू घर में घुस जाते हैं और घर की महिला को ममता बनर्जी द्वारा पोषित क्लबों में अपने साथ ले जाते हैं और हवस मिटाने के बाद 3-4 घंटों में घर छोड़ जाते हैं। ऐसी वीभत्सता के बावजूद वहॉं का प्रशासन अंधा, गूंगा और बहरा बना बैठा है। उसकी संवेदनाओं को जैसे लकवा मार चुका है। राज्यपाल धनखड़ तक कह चुके हैं कि व्यक्ति वहॉं दर्द लेकर जाता है और मुजरिम बनकर बाहर आता है। हिन्दुओं द्वारा भाजपा को वोट देने की कीमत उनकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म करके वसूली जा रही है। लेकिन अब कोई सुनवायी न होने पर परेशान होकर वहॉं की महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनकी आपबीती रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
पूर्व मेदिनीपुर जिले की खेजुरी विधानसभा क्षेत्र की एक 60 वर्षीय महिला ने याचिका में कहा है कि चुनाव परिणाम आने के बाद टीएमसी के पांच कार्यकर्ता चार मई की रात को जबरन उनके घर में घुस गए और उनके छह साल के पोते के सामने सामूहिक बलात्कार किया। पड़ोसियों ने अगले दिन उन्हें बेहोशी की हालत में पाया और अस्पताल में भर्ती कराया। पुलिस ने शिकायत तक दर्ज नहीं की। पीड़िता ने कोर्ट से कहा कि टीएमसी के कार्यकर्ता बदला लेने के इरादे से बलात्कार को एक हथियार की तरह प्रयोग कर रहे थे।
इसी तरह अनुसूचित जनजाति की एक 17 साल की नाबालिग लड़की ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जिसमें कहा गया है कि बीती नौ तारीख को टीएमसी के लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया और जब वह बेहोश हो गई तो उसे जंगल में फेंक कर भाग गए। परिजन पुलिस के पास पहुंचे तो टीएमसी के गुंडों ने उन्हें धमकाया और रिपोर्ट भी नहीं लिखने दी।
अब ये पीड़िताएं चाहती हैं कि इन घटनाओं की जांच सीबीआई या एसआईटी से करवाई जाए और मामले का ट्रायल राज्य से बाहर हो।
इससे पहले भी चुनाव के बाद हुई हिंसा में बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप में उनके परिजनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि टीएमसी के लोगों ने उसकी आंखों के सामने कुल्हाड़ी से पति की हत्या कर दी थी।