बंगाल में भाजपा की जीत या हार?
पश्चिम बंगाल में 1947 से 1977 तक कांग्रेस का शासन रहा। 1978 से 2011 तक कम्युनिस्टों का और 2011 से टीएमसी का शासन चल रहा है अर्थात यहां भाजपा न तो कभी शासन में रही, न ही कभी विपक्ष में। 2021 के विधानसभा चुनाव का परिणाम पक्षपाती मीडिया, कांग्रेस, कम्युनिस्टों व लगभग पूरे विपक्ष द्वारा इस प्रकार से प्रचारित किया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की बहुत बुरी हार हुई और इस प्रकार की मिथ्या बातों को फैलाकर भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ना क्या दर्शाता है? विचार करें क्या वास्तव में बीजेपी की हार हुई है या अपेक्षित सफलता नहीं मिली?
वर्तमान विधानसभा में 294 में से 292 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें टीएमसी को 213 सीटें और 48 प्रतिशत मत मिले। भाजपा को 77 सीटें और 38 प्रतिशत मत मिले, जबकि 2016 के विधानसभा चुनाव में 10 प्रतिशत मत और 3 सीटें मिली थीं। कम्युनिस्टों को केवल 5 प्रतिशत मत और जीरो सीट मिली, कांग्रेस को 3 प्रतिशत मत और जीरो सीट मिली। भाजपा की 2016 में 3 सीटें थीं जो बढ़कर 77 हो गईं। क्या 74 सीटों की वृद्धि को भाजपा की हार मान लिया जाए? क्या यह एक प्रोपेगेंडा नहीं है? क्या एक झूठा विमर्श नहीं चलाया जा रहा है? ऐसा नहीं लग रहा मानो भाजपा व मोदी पर हमला करने वाले सोचते हैं कि इससे बड़ा अवसर कभी भविष्य में प्राप्त होगा ही नहीं! एक प्रश्न यह भी मन में आ सकता है कि भाजपा को इस तरह के परिणाम आने की पूर्व कल्पना थी क्या? तो उत्तर होगा वास्तव में नहीं थी क्योंकि 13 सीटें ऐसी हैं जिन पर हार का अंतर नोटा के वोट से भी कम रहा। नापक्ष को मिले ये मत प्रायः हिन्दू मत ही होंगे। 70 सीटें ऐसी हैं जहॉं हार का अंतर 300 से 5000 तक रहा। सीएम ममता बनर्जी स्वयं नंदीग्राम से चुनाव हार गईं जहाँ से सिंगूर का आन्दोलन चला था।
बीजेपी को दो करोड़ 28 लाख लोगों ने मत दिए जबकि टीएमसी को 2 करोड़ 78 लाख मत मिले अर्थात बीजेपी को टीएमसी से मात्र 50 लाख मत ही कम मिले। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कम्युनिस्टों व कांग्रेस का इस चुनाव में अंत हो गया वामपंथियों का तो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा तक समाप्त हो गया।
फिर भाजपा के अपेक्षा से कम सीट मिलने के कारण क्या रहे?
पुलिस प्रशासन एवं मुस्लिम जिहादियों द्वारा टीएमसी का समर्थन एवं पोलिंग के पूर्व भय का वातावरण बनाया गया जिससे हिंदू नागरिकों द्वारा मतदान नहीं किया जा सका विशेषकर कोलकाता के आसपास। कम्युनिस्ट एवं कांग्रेस ने अपने मतों को टीएमसी की ओर डायवर्ट कर दिया। मुक़ाबला चतुष्कोणीय से बदलकर आमने सामने का हो गया। कई जगह दोनों पार्टियाँ ज़मानत भी नहीं बचा पायीं। इस चुनाव में मुस्लिम पोलिंग 91 प्रतिशत जबकि हिंदू पोलिंग 67 प्रतिशत रही और एक बड़ा कारण यह भी रहा कि मतगणना के समय हिंसा करवा के प्रशासन द्वारा मतगणना में हेरफेर किया गया जिससे कई सीटों में उलटफेर हो गया। भाजपा का समर्थन जनता में बहुत है लेकिन वहां अभी स्थानीय कार्यकर्ताओं का नेटवर्क अन्य राज्यों से जैसा नहीं बन पाया है। इस परिणाम का प्रभाव यह होगा कि भाजपा विधानसभा में प्रखर व सशक्त विपक्ष की भूमिका निभा कर सत्य का पक्ष रखते हुए लोकतंत्र बनाए रखेगी।