झुंझुनूं के खुडानिया गांव में तैयार हो रही है बलिदानियों की बटालियन

झुंझुनूं के खुडानिया गांव में तैयार हो रही है बलिदानियों की बटालियन

झुंझुनूं के खुडानिया गांव में तैयार हो रही है बलिदानियों की बटालियन

1971 का भारत-पाक युद्ध 13 दिन चला। इस युद्ध में देश के 3900 सैनिक बलिदान हुए। इसमें शेखावाटी के 168  ,  झुंझुनूं के 108, सीकर के 46 तथा चूरू के 12 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। वहीं देश में विभिन्न मोर्चों पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरभूमि राजस्थान से अब तक लगभग 1650 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं। अब तक अकेले झुंझुनूं जिले से 468 सैनिकों ने अपना बलिदान दिया है।

शेखावाटी के लिए यह दिवस गौरवपूर्ण है, क्योंकि इस युद्ध में सबसे अधिक बलिदान होने वाले 168 सैनिक शेखावाटी के सपूत थे। जिनके अदम्य साहस के बूते दुश्मन को घुटने टेकने पड़े और आज भी यह जीत विश्व की सबसे बड़ी जीत के रूप में दर्ज है, क्योंकि इसमें पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा था। इस युद्ध के किस्से आज भी यहां कहे व सुनाए जाते हैं। गुगन की ढाणी तन कंकड़ेऊ निवासी कैप्टन अमरचंद खेदड़ ने बताया कि हम 6 जाट रेजीमेंट में थे। हमारी यूनिट लाल माहिल पर थी। उस दौरान दुश्मन के हमले में हमारे 16 जवान शहीद हाे गए थे। इसमें सीकर, बाड़मेर व हरियाणा के जवान भी थे।

यह तो एक युद्ध की कहानी है, लेकिन देश के हर संकट में शेखावटी के जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। इन सब बलिदानियों की याद में झुंझुनूं जिले के खुडानिया गांव में मूर्तिकार वीरेंद्र सिंह शेखावत ने शहीदों की प्रतिमाएं तैयार की हैं। जो उनके पैतृक गांवों में नि:शुल्क लगाई जाएंगी। वे लगभग चार सौ प्रतिमाएं बना चुके हैं। यह काम सैनिक कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष प्रेमसिंह बाजौर की पहल पर किया जा रहा है। इस पर करीब 25 करोड़ रुपए खर्च होंगे, इसके बाद राजस्थान देश का ऐसा अकेला राज्य बन जाएगा, जहां के सभी बलिदानियों की प्रतिमाएं स्थापित होंगी। इस काम को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने की तैयारी भी शुरू कर दी गई है।

राजस्थान में बलिदान हुए सैनिकों की प्रतिमाएं

प्रतिमाओं की इस बटालियन को देखकर ही यों लगता है जैसे बलिदान के बाद भी इस माटी के लाल देश पर मर मिटने को तत्पर हों। बलिदानियों की प्रतिमाएं बनवाने का बीड़ा उठाने वाले प्रेमसिंह बाजौर ने बताया कि दो वर्ष पूर्व शहीद सम्मान यात्रा के दौरान शहीदों के घरों तक पहुंचा तो कई जगह शहीदों की बूढ़ी माताओं ने कहा, ‘म्हारै बेटे री मूरती तो लगवा दो साब!’ बस उसी दिन फैसला कर लिया कि हर शहीद की प्रतिमा लगवाऊंगा। उनके इस निर्णय के बाद 40 से 50 साल पहले शहीद हुए जवानों की मूर्तियां भी लग रही हैं। इससे उनके परिजन खुश हैं।

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