बागेश्वर धाम, सनातन और मीडिया

बागेश्वर धाम, सनातन और मीडिया

डॉ. अरुण सिंह

बागेश्वर धाम, सनातन और मीडियाबागेश्वर धाम, सनातन और मीडिया

बागेश्वर धाम आजकल चर्चा में है। संभव और असंभव की बातें हो रही हैं, जबकि प्रश्न संभव और असंभव का है ही नहीं। जो जनता को अभीष्ठ है, वह है दुःख का निवारण। और धीरेंद्र शास्त्री वह कर रहे हैं। सबसे ऊपर, वह जो कर रहे हैं, बड़े बड़े स्वघोषित शक्तिशाली नहीं कर पाते। जो भूत में हुआ है, जो छीना गया है, उस अस्तित्व, उस सनातनी विरासत को पुनः स्थापित करने में अपना बड़ा योगदान दे रहे हैं। हिंदुओं का मतांतरण कोई सामान्य घटना के अंतर्गत नहीं हुआ। कितने ही आघात सहन किए होंगे पूर्वजों ने! कितने षड्यंत्र झेले होंगे! कितनी चालों में फंसे होंगे! परमानंद से आनंद मसीह बने कितने ही क्रिप्टो ईसाइयों ने अपने ही देश और संस्कृति के साथ घात किया होगा!

धीरेंद्र शास्त्री ऐसे ही मसीहों के पाप धो रहे हैं। घर वापसी करा रहे हैं, उनकी जो अपनी राह भूल गए थे या उनकी राह भुला दी गई।

भारत में अंग्रेजी परिपाटी की शिक्षा व्यवस्था ने क्या दिया है? ऐसी धर्मनिरपेक्षता जो निरंतर सनातन धर्म और संस्कृति पर कुठाराघात करती है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में गुरुकुल शिक्षा पर लगभग पूर्ण विराम ही लग गया। संस्कृत शिक्षा गर्त में डाल दी गई। हमारा आध्यात्म और जीवन पद्धति जिस भाषा में निहित थे, उसके अस्तित्व को संरक्षित करने हेतु कोई प्रयास नहीं हुए। अंग्रेजी के अतिरिक्त उर्दू, अरबी और फारसी भाषाओं को बढ़ावा दिया गया।

सनातन धर्म और श्रद्धा के विषय आधुनिक अंग्रेजी और धर्मनिरपेक्ष बौद्धिकवाद के परिपेक्ष्य में प्रासंगिक नहीं हैं, यह एक बड़ी विडंबना है। परंतु धीरेंद्र शास्त्री एक चुनौती हैं बौद्धिकवाद के पूरे तंत्र के सामने। वे यह साबित करते हैं कि श्रद्धा में शक्ति होती है, जो खोखले तर्कों से परे है। वह श्रद्धा की शक्ति उस खोखले ज्ञान के दायरे में नहीं आती। दैव कृपा संभव है, यह धर्मेंद्र शास्त्री खुले में सिद्ध कर रहे हैं।

भारतीय मीडिया में साधु संतों का मखौल उड़ाना सामान्य शगल है। पर बागेश्वर धाम में उनके दुस्साहस को पस्त होते देखना कौतूहल पैदा करता है। पत्रकार सुधीर चौधरी का मत यहां प्रशंसनीय है। वे किसी भी प्रकार की असहमति को विनम्रता से प्रकट करने के पक्ष में हैं।

संक्षेप में बस इतना ही, धीरेंद्र शास्त्री सनातन परंपरा के वाहक और नेता दोनों बनने में सक्षम हैं। वे एक प्राचीन संस्कृति को सुदृढ़ करने में अपनी आहुति प्रदान कर रहे हैं। चुनौती दे रहे हैं तो स्वाभाविक है कि बाधाएं आएंगी।

साधुवाद एवं स्वागत है ऐसे युवा संत का!

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