बीटीपी के विरुद्ध भाजपा और कांग्रेस का गठजोड़ समय की मांग

बीटीपी के विरुद्ध भाजपा और कांग्रेस का गठजोड़ समय की मांग

बीटीपी के विरुद्ध भाजपा और कांग्रेस का गठजोड़ समय की मांग

जयपुर। राजस्थान के जनजातीय जिले डूंगरपुर में हाल में हुए पंचायत समिति और जिला परिषद चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को मिली सफलता इस क्षेत्र में बरसों से राजनीति कर रहे भाजपा और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। हालांकि दोनों ही दलों ने डूंगरपुर जिला प्रमुख के चुनाव में बीटीपी को रोकने के लिए जिस तरह का गठजोड़ किया, वह समय की जरूरत माना जा रहा है और दोनों ही दलों के लिए, विशेषकर कांग्रेस के लिए काफी सही निर्णय माना जा रहा है। यह बात और है कि बाद में इस गठजोड़ को लेकर कांग्रेस में आपस में मतभेद सामने आए, लेकिन जो हुआ, उससे बीटीपी के बढ़ते कदम कुछ हद तक थम गए।

भारतीय ट्राइबल पार्टी ने जिस तरह अपनी जगह राजस्थान के इस जनजातीय क्षेत्र में बनाई है, वह किसी से छुपी नहीं है। युवाओं को एकजुट कर इस पार्टी ने धीरे-धीरे यहां अपनी ताकत बनाई और पहली बार में ही इसके दो विधायक जीत कर विधानसभा पहुंच गए। विधानसभा के बाद जिला परिषद और पंचायत समिति का चुनाव वह पहला चुनाव था, जब इस पार्टी की पैठ का आंकलन किया जा सकता था और 11 में से सात पंचायत समितियों में बहुमत तथा जिला परिषद में 27 में से 13 सीटें जीत कर बीटीपी ने डूंगरपुर में अपनी पकड़ का अहसास भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही करवा दिया है।

इस वर्ष अगस्त-सितम्बर में शिक्षक भर्ती को लेकर जिस तरह का उग्र आंदोलन बीटीपी ने वहां किया था और उस आंदोलन में जिस तरह से बाहरी तत्वों का हस्तक्षेप होने के बाद हिंसा की स्थिति बनी थी, उसे देख कर इस बात की आशा थी कि जनता में बीटीपी के प्रति रोष दिखेगा। कुछ इलाकों में यह रोष दिखा भी, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में इस पार्टी की पकड़ धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इस क्षेत्र में बरसों से राजनीति कर रहे हैं। हाल के आंदोलन में हुई हिंसा के बाद दोनों ही दलों ने मिल कर बीटीपी के राजनीतिक तौर-तरीकों का विरोध किया था। हालांकि आदिवासियों में पकड़ बनाए रखने के लिए दोनों ही दलों के जनजातीय नेताओं को स्थानीय स्थिति के हिसाब से राजनीति भी करनी पड़ती है, लेकिन बीटीपी और इसकी राजनीति के तरीके को लेकर आंदोलन के समय भाजपा और कांग्रेस के नेता एक सुर में बात करते दिखे थे। इसी बीच बांसवाड़ा में वहां के कांग्रेस के विधायक महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने बीटीपी विधायकों पर सरकार बचाने के लिए पैसा लेने का आरोप लगा दिया। इससे भी यह संकेत मिले कि कांग्रेस ने सरकार बचाने के लिए बीटीपी को साथ भले ही लिया, लेकिन स्थानीय स्तर पर कांग्रेस बीटीपी का समर्थन नहीं करती है और आगे भी नहीं करेगी।

अब डूंगरपुर जिला परिषद में जिला प्रमुख के चुनाव से इस दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा है। यहां जिला प्रमुख के चुनाव में बीटीपी के पास 13 सीटें हैं और उसे अपना जिला प्रमुख बनाने के लिए कांग्रेस के सिर्फ एक पार्षद के समर्थन की जरूरत थी। बीटीपी चूंकि राज्य सरकार को समर्थन दे रही है, इसलिए उसे पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस का समर्थन उसे मिल जाएगा, लेकिन यहां कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष दिनेशा खोडनिया और यूथ कांग्रेस अध्यक्ष गणेश घोघरा ने बाजी पलटते हुए भाजपा का साथ दिया। भाजपा की पार्षद सूर्या अहारी को निर्दलीय के रूप में खड़ा किया गया और कांग्रेस के छह पार्षदों ने भाजपा के आठ पार्षदों के साथ मिल कर सूर्या अहारी को जिला प्रमुख बना दिया। डूंगरपुर के स्थानीय कांग्रेस और भाजपा के नेता मानते हैं कि बीटीपी के बढ़ते कदम रोकने के लिए यह किया जाना जरूरी था। यहां कांग्रेस और भाजपा के स्थानीय नेता यह मानते हैं कि एक बार यह सीट बीटीपी के हाथ में चली जाती तो आगे के लिए काफी मुश्किलें खड़ी हो सकती थीं। दोनों पार्टियों के स्थानीय नेतृत्व के इस निर्णय को इनके प्रदेश नेतृत्व का भी समर्थन मिला। कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि स्थानीय स्तर का चुनाव था और जैसा वहां के नेतृत्व ने उचित समझा, वह किया, वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने तो साफ कहा कि बीटीपी के नक्सलियों से सम्बन्ध होने की बात सामने आने के बाद हमने कांग्रेस का साथ देना उचित समझा।

इस घटनाक्रम के बाद हालांकि बीटीपी ने सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कही है, लेकिन देखा जाए तो मौजूदा स्थिति में प्रदेश की कांग्रेस सरकार को बीटीपी के विधायकों की जरूरत भी नहीं है। यहां कांग्रेस सरकार के पास खुद के 105 विधायक हैं, वहीं इसे दस निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में सरकार को कोई संकट नहीं है। हालांकि कांग्रेस की स्थानीय इकाई में भी इस घटनाक्रम के बाद मतभेद सामने आए और ताराचंद भगोरा व अन्य नेताओं ने इस निर्णय का विरोध किया, लेकिन अभी तक पार्टी ने भगोरा के विरोध पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, इससे लग रहा है कि पार्टी का प्रदेश नेतृत्व अभी भी जो कुछ हुआ उसे सही मान रहा है।

ओवेसी के समर्थन के बाद तो और भी जरूरी- इस बीच हैदराबाद के सांसद असद्दुदीन ओवेसी ने जिस तरह से बीटीपी को समर्थन दिया है और ओवेसी की राजस्थान की राजनीति में जिस तरह से रुचि बढ़ती दिख रही है, उसे देखते हुए तो कांग्रेस के लिए यह और भी जरूरी हो गया है कि वह आदिवासी क्षेत्र में बीटीपी का राजनीतिक विरोध जारी रखे और कम से कम उस क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस का गठजोड़ कायम रहे, ताकि प्रदेश के आदिवासी इलाके को बाहरी तत्वों से बचाया जा सके।

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