भगवद्गीता: संसार की श्रेष्ठतम मार्गदर्शक

भगवद्गीता: संसार की श्रेष्ठतम मार्गदर्शक

पंकज जगन्नाथ जयस्वाल

भगवद्गीता: संसार की श्रेष्ठतम मार्गदर्शक
वर्तमान समय में मानवता एक कठिन दौर से गुजर रही है। हर कोई न केवल वित्तीय मामलों से, बल्कि मन की शांति के लिए जूझ रहा है, जीवन इतना थका हारा क्यों हो गया है? आखिर जीवन का उद्देश्य क्या है? … यह कठिन प्रश्न शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी बहुत प्रभावित कर रहा है। पूरी दुनिया अब भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को आशान्वित भाव से देख रही है। हम भारतीय सामान्य रूप में, आमतौर पर अपने प्राचीन ज्ञान को अधिक महत्व नहीं देते हैं, जो हमें हमारे प्राचीन ऋषियों ने आसानी से विरासत में दिया है।
विश्व को भगवद्गीता के रूप में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए वास्तविक ज्ञान की ओर मुड़ने की आवश्यकता है। किसी भी स्तर, लिंग, जाति, पंथ, धर्म या रंग से प्रत्येक व्यक्ति अमीर या गरीब, बड़ा या छोटा, बुजुर्ग या किशोर सभी की समस्याओं का समाधान भगवद्गीता में मिलता है। हम इसे जीवन “प्रबंधन पुस्तक” के रूप में मान सकते हैं।
भगवद्गीता को मोटे तौर पर तीन खंडों – ज्ञान, कर्म और व्यवहार में विभाजित किया गया है। भगवद्गीता खोए हुए पथिक को रास्ता दिखाती है, सभी को यथोचित और योग्य उत्तर देती है। जब अर्जुन ने अपना आत्मविश्वास खो दिया था और उनका मन खिन्न हो गया था, उस समय भगवान कृष्ण ने उन्हें आत्मा की क्षणिक और शाश्वत उपस्थिति के बारे में ज्ञान दिया और धर्म, योग्य मार्ग, उचित कार्यों के साथ उत्थान के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मन को स्थिर रखने और जो कुछ भी है उसका व्यापक दृष्टि से समाधान ढूंढ़ने के लिए कहा था। मन और उससे जुड़े आयाम हमारे जीवन में कभी न खत्म होने वाले कष्टों का मुख्य कारण हैं, अच्छे समय में भी, हम सच्चे अर्थों में खुश नहीं हैं। अंततः शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर पर कई समस्याओं से लड़ते रहते हैं। इन सभी मुद्दों के पीछे का सरल कारण हमें हमारे स्कूल या कॉलेज जीवन में कभी नहीं सिखाया गया।
हमारे स्कूली दिनों से भगवद्गीता का यह अनमोल ज्ञान देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक बार जब बच्चा अपने मन को शांत करना सीख जाता है, तो जाहिर है कि वह खुशी और मन की शांति के साथ किसी भी लक्ष्य / उद्देश्य को प्राप्त करेगा, तब हम इसे वास्तविक सफलता कह सकते हैं। भगवान कृष्ण ने योग साधना पर प्रमुखता से ध्यान दिया। निश्चित समय-अवधि में किया गया ध्यान अभ्यास हमारी क्षमता के बारे में स्पष्टता लाता है, तनाव को समाप्त करता है, अनावश्यक स्मृतियों को मिटा देता है और सर्वशक्तिमान के साथ हमारा संबंध स्थापित करता है।
भगवान कृष्ण ने कहा, विभिन्न कार्यों को करते हुए, हम भगवान के कार्य को कर रहे हैं, ऐसी भावना सदैव अपने मन में रखें और परिणाम के बारे में सोचे बिना कार्य को वरीयता दें, ताकि कार्य अधिक गहराई और प्रभावी ढंग से हो सकें। जो कुछ भी आपके कार्यों का परिणाम होगा उसे विनम्रता से स्वीकार करें, सही समय आने पर आपको उसका फल मिलेगा। हम आज की दुनिया में विशेष रूप से युवाओं के साथ देख रहे हैं, हर क्रिया को सफलता या असफलता के पैमाने में देखा जाता है। अंत में आशा, अवसाद, आक्रामकता, उद्धिग्न मन सभी के लिए नकारात्मक वातावरण बनाने में कारणीभूत होता है। मन की शांति और आनंदपूर्ण तरीके से कार्यों को करने का तरीका जानने के लिए भगवद्गीता पढ़ें, ताकि हम भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में भी धीरे-धीरे प्रगति करते रहें।
भगवान कृष्ण ने कहा, भगवान सर्वोच्च और सर्वव्यापी हैं। विपरीत परिस्थितियों के दौरान, आपके निकट और प्रियजन आपको छोड़ सकते हैं, फिर भी, मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा। मैं आपसे बिना शर्त प्रेम करता रहूँगा। इसलिए, हर कार्य को प्रेम के साथ मेरी क्रिया के रूप में करें। तुम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाओगे, इसलिए अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए और काम-सुख के लिए किसी भी बुरे काम को मत करो।
यदि हम जागरूकता के साथ देखें, तो भगवान ने हमेशा हमारी सहायता की है, जब भी हमें उनकी सख्त आवश्यकता होती है, वह हमारी सहायता करते हैं। इसलिए ईश्वर पर विश्वास रखें और विश्वास और कृतज्ञता के साथ जीवन में आगे बढ़ें कि सर्वशक्तिमान ईश्वर हम पर प्रेम बरसा रहे हैं।
दुनिया को समझने और हर परिस्थिति में आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए हमें अपनी महान ज्ञान पुस्तक भगवद्गीता की ओर ध्यान केंद्रित करना होगा। यह हमारा कर्तव्य है कि हम इसे एक जन आंदोलन बनाकर सरकार और स्कूलों को अपने स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाने का प्रयत्न करें।
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