मैं अपनी आँखों से मंदिर नहीं देख पाऊंगी, परन्तु मुझे खुशी है कि मेरे भगवान का मंदिर बन रहा है

मैं अपनी आँखों से मंदिर नहीं देख पाऊंगी, परन्तु मुझे खुशी है कि मेरे भगवान का मंदिर बन रहा है

अर्पण, तर्पण और संघर्ष का संकल्प है राम मंदिर

प्रेरक प्रसंग -2

मैं अपनी आँखों से मंदिर नहीं देख पाऊंगी, परन्तु मुझे खुशी है कि मेरे भगवान का मंदिर बन रहा है

पिपलोद में राम मंदिर के लिए निधि संग्रह महाअभियान का द्वितीय चरण चल रहा था। कार्यकर्ता सहरिया बस्ती में पहुंचे। घर घर सम्पर्क कर ही रहे थे कि पीछे से किसी ने रुकने का आग्रह किया। कार्यकर्ताओं ने मुड़कर देखा तो एक दिव्यांग पति – पत्नी खड़े थे। दोनों बड़े मनुहार से उन्हें अपने घर ले गए। कार्यकर्ताओं ने देखा रामभरोसे सहरिया पैर से विकलांग हैं तो पत्नी प्रकाशी बाई देख नहीं सकतीं। लेकिन राम मंदिर के लिए उनका समर्पण भाव अविस्मरणीय था। उन्होंने 10 रुपये समर्पित किये। उस समय उनके चेहरे की खुशी देखने लायक थी। प्रकाशी बाई ने कहा कि मैं अपनी आँखों से मंदिर नहीं देख पाऊंगी, परन्तु मुझे यह खुशी है कि मेरे भगवान का मंदिर बन रहा है। कार्यकर्ता भाव विह्वल हो गए। वे उनके सामने नत मस्तक हो, नए जोश के साA4 आगे बढ़ गए।
यह समर्पण भाव बहुत बड़ा संदेश देता है।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

1 thought on “मैं अपनी आँखों से मंदिर नहीं देख पाऊंगी, परन्तु मुझे खुशी है कि मेरे भगवान का मंदिर बन रहा है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *