भगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाज

भगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाज

भगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाजभगवान कृष्ण ने दिया गणतंत्र, हमने उसमें जन्म लिया: नीतीश भारद्वाज

  • पाथेय भवन में कलासाधकों के साथ किया प्रत्यक्ष कला संवाद

जयपुर। हम सौभाग्यशाली हैं कि हम गणतंत्र में हैं। यह हमें बोलने की स्वतंत्रता देता है। यह गणतंत्र व्यवस्था हमें भगवान श्री कृष्ण ने दी है। गणतंत्र व्यवस्था ही हमें अपने मन में चलने वाले विचारों को व्यक्त करने का अधिकार देती है। ये विचार बुधवार को मालवीय नगर स्थित पाथेय भवन के महर्षि नारद सभागार में संस्कार भारती की ओर से आयोजित कला संवाद में संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीतीश भारद्वाज ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। नीतीश भारद्वाज ने बीआर चोपड़ा की महाभारत में भगवान श्री कृष्ण का किरदार निभाया था। नीतीश भारद्वाज दो बार लोकसभा सदस्य के रूप में भी चुने गए थे। कलासाधकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद में भारद्वाज ने कहा कि हम कलाकार सृजन करने की शक्ति लेकर पैदा होते हैं। कला और साहित्य हर संस्कृति का ऐसा रंग होता है जो उसको पहचान देता है। हमने एक पुरानी संस्कृति में जन्म लिया, जो आज भी जीवित है। भगवान राम ने मर्यादाओं की स्थापना की। वहीं श्री कृष्ण ने मर्यादाओं को नहीं माना। श्री कृष्ण ने कहा मैं ही मर्यादाओं का निर्माण करूंगा।

उन्होंने आगे कहा कि हमारा वसुधैव कुटुंब का जो ध्येय है वह पूरे विश्व के लिए है। उन्होंने कहा लॉकडाउन ने महाभारत देखने का अवसर दिया। लॉकडाउन में अधिकतर ने महाभारत दूसरी बार देखी, लेकिन मैंने पहली बार देखी। इससे पहले महाभारत देखने का अवसर ही नहीं मिला। नीतीश भारद्वाज से कला साधकों ने प्रश्न भी किए, जिनका उन्होंने सरलता से उत्तर भी दिया।

जातिगण समीकरणों में अटकी राजनीति
राजनीतिक व्यवस्था और उसमें सुधार पर किए गए एक प्रश्न के उत्तर में भारद्वाज ने कहा कि आज भी राजनीति जातिगत समीकरणों में अटकी हुई है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, मैं हर युग में आऊंगा। उन्होंने कहा श्री कृष्ण हमें गणतंत्र व्यवस्था और वोट का अधिकार देकर गए हैं। लेकिन कृष्ण का आना आवश्यक है क्या? इसका उपाय भग्वद् गीता के सहारे भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा जब तक हम एकत्र नहीं होंगे, तब तक राजनेताओं को दोष देने से कुछ नहीं होगा। भारद्वाज ने जातिगत व्यवस्था पर आगे बोलते हुए कहा कि शूद्र वह है जो सबकी सेवा करे। शूद्र का ऊंच नीच से कोई वास्ता नहीं।

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री हुई विवश
भारद्वाज ने इस दौरान बॉलीवुड इंडस्ट्री पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आज अच्छी स्क्रिप्ट लिखने व दिखाने के लिए विवश हो गई है। आज जनता ही तय करती है कि उसे क्या देखना है, कैसे देखना है। श्रोताओं को स्वयं की मर्जी से कोई कंटेंट नहीं दिखाया जा सकता। उन्होंने कहा कि समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर फिल्में बनी हैं। एक दौर में कुछ कॉमेडी से संबंधित फिल्मों पर काम हुआ, कुछ अच्छी फिल्में बनीं और चलीं भी। इसी तरह युद्ध, व स्वाधीनता से सम्बंधित फिल्मों पर भी काम हुआ।

बच्चे हो रहे सोशल कॉन्टेक्ट से दूर
एक प्रश्न के उत्तर में भारद्वाज ने कहा कि जो आवश्यक न हो वह बच्चों को न दें, जैसे मोबाइल। उन्होंने कहा आज बच्चे मोबाइल में अंतर्मुखी हो रहे हैं और सोशल कॉन्टेक्ट से दूर। उन्होंने कहा आजकल पढ़ने का काम कम हो गया है। बच्चों को महाभारत और रामायण पढ़ने को दें। माता-पिता के डांटने पर पूछे गए एक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि माता-पिता के डांटने के पीछे प्रेम होता है। उनका यह प्रयास होता है की मेरा बच्चा कुछ अच्छा करे।

तलवारबाजी कला हो सकती है, लेकिन गला काटना नहीं: गोपाल शर्मा
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए गोपाल शर्मा ने कहा कि ज्ञान, मन और कर्म मिलकर कला बनाती हैं। उन्होंने कहा क्या संगीत, नाटक, नृत्य ही कला है? बाल काटना, मालिश करना भी कला है। उन्होंने कहा कि तलवारबाजी कला हो सकती है, लेकिन गला काटना कला नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कला को गलत संदर्भ में भी प्रयोग किया जा रहा है। आज नेता या व्यक्ति पर आरोप लगाने के लिए कह देते हैं कि यह कलाकारी कर रहा है। यह सही नहीं है। शर्मा ने कहा कि भारतीयों में लाखों वर्ष पहले भी अलग-अलग कलाओं की प्रतिभा थी। हरियाणा की एक गुफा में एक लाख साल पुराने चित्र मिले हैं। इससे पता चलता है कि विश्व में कहीं हो या नहीं, लेकिन भारत में एक लाख वर्ष पहले भी चित्रकला मौजूद थी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मधु भट्ट तैलंग ने की। संयोजक बनवारीलाल चेजारा थे। आभार आत्माराम सिंहल ने व्यक्त किया।

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