भगवा ध्वज यह अमर ध्वज है (कविता)
डॉ. श्रीकांत
भगवा ध्वज यह अमर ध्वज है,
राष्ट्र ध्वजा यह वीरों की।
अमर-संगिनी युद्ध-भूमि तक,
बनी रही रणधीरों की॥
कभी रथों पर, अश्वों पर भी,
विजय-पताका लहरायी।
चन्द्रगुप्त से खारवेल तक,
पुष्यमित्र ने फहरायी॥1॥
शक-जेता फिर हूण-विजेता,
विक्रम और यशोधर्मा।
थे प्रताप या शिवा छत्रपति,
इसी ध्वजा के हितकर्मा॥
वीर बुन्देला छत्रसाल या
सिक्ख गुरु दशमेश सभी ।
आसामी लाचित बड़फूकन,
लिखी जिन्होंने विजय कभी॥2॥
महाराष्ट्र के शेर मराठे,
वीर पेशवा निकल पड़े।
जगह-जगह अपने पौरुष से,
भगवा ध्वज कर दिये खड़े॥
इसी ध्वजा के लिए लड़े थे,
मारवाड़ में दुर्गादास।
उस मेवाड़ी राजसिंह ने,
फहराया भगवा ध्वज खास॥3॥
विजय नगर साम्राज्य पला था,
इसी ध्वजा की छाया में।
हरिहर-बुक्का अमर हो गये,
विजय नगर की माया में॥
विद्यारण्य शिष्य थे दोनों,
भगवा संस्कृति सरसायी।
दक्षिण भारत खड़ा हो गया,
मुगली व्याधा थर्रायी॥4॥
भगवा ध्वज के साथ भरतपुर
महाराजा सूरजमल जाट।
लड़े युद्ध में सदा विजेता,
उड़ा दिया मुगलों का ठाठ॥
क्रान्ति मन्त्र का अमर पुजारी
गोकुल जाट अमर है नाम।
शौर्य-पराक्रम कृषक-सुरक्षा,
भगवा ध्वज रक्षक अभिराम॥5॥
निकल पड़े ले सत्तावन के,
योद्धा इसी पताका को।
मिला दिया मिट्टी में सारी,
अँग्रेजी अभिलाषा को॥
थाम करों में लक्ष्मीबाई-
तात्या-नाना खूब लड़े।
इसी ध्वजा पर कुँअरसिंह ने,
कीर्तिमान कर दिये खड़े॥6॥
रँग दिख जाता केसरिया जब,
क्रान्ति खड़ी हो जाती है।
रक्त-धार रण-वीरों की
रण – आँगन खूब सजाती है ॥
फहर-फहर फहराती नभ में,
इसी ध्वजा को नमन करें।
श्रेष्ठ गुरु इस राष्ट्र-देव की,
मान-वन्दना आज करें ॥7॥