सेवा के बदले मतांतरण करने वाले ईसाई मिशनरी भगिनी निवेदिता के जीवन से कुछ सीखेंगे?
भगिनी निवेदिता जयंती/ 28 अक्टूबर
निखिल यादव
भगिनी निवेदिता ने सेवा का कार्य निस्वार्थ भाव से किया। वह भारत में आकर भारतीयता के रंग में रंग ही गईं।
भारत के निर्माण में भारतीयों के साथ विदेशी मूल के भारतनिष्ठ व्यक्तियों का योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। इनमें से एक हैं भगिनी निवेदिता। भगिनी निवेदिता की जीवन यात्रा से उन मिशनरी संस्थाओं, पादरियों और वेटिकन के इशारों पर भारत में धर्मान्तरण जैसे कुकृत्य में शामिल बड़े चर्चों, पादरियों और धर्मान्तरित इसाइयों को सीख लेनी चाहिए कि सेवा एक निस्वार्थ भाव है, जिसके बदले में कुछ भी षड्यंत्र रचना घोर अपराध है।
भगिनी निवेदिता के भारत के निर्माण और स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को ठीक ढंग से उल्लेखित नहीं किया गया है। यही कारण है कि अधिकतर भारतीय निवेदिता से उस ढंग से परिचित नहीं हैं, जितना होना चाहिए। इतिहास और इतिहासकारों ने उनके साथ न्याय नहीं किया। भला हम भगिनी निवेदिता के अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के प्रति श्रद्धा, भारत के लिए सेवा का संकल्प और भारतीयों के लिए किया गया त्याग कैसे भूल सकते हैं। उन्होंने उस समय के गुलाम देश भारत के अनजान लोगों के बीच शिक्षा और स्वास्थ के क्षेत्र में सेवा देने का कार्य किया। अंग्रेज़ों की भारतीयों के ऊपर क्रूरता देखी तो सहन नहीं कर पाईं और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गईं।
भगिनी निवेदिता ने सेवा का कार्य निस्वार्थ भाव से किया। वह भारत में आकर भारतीयता के रंग में रंग ही गई। स्वामीनाथन गुरुमूर्ति जी के अनुसार ‘’ वह भारत में भले ही ना पैदा हुई हो लेकिन भारत के लिए पैदा हुई थी ‘’। स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल कहते हैं कि ”निवेदिताजिस प्रकार भारत को प्रेम करती हैं , भारतवासियों ने भी भारत को उतना प्रेम किया होगा – इसमें संदेह हैं’’। उनका भारत के प्रति स्नेह उनकी पुस्तकें ”काली द मदर”, ”द वेब ऑफ इन्डियन लाइफ” , ”क्रेडिल टेल्स ऑफ हिन्दुइज्म”, ”एन इन्डियन स्टडी ऑफ लाइफ एन्ड डेथ”, ”मिथ्स ऑफ हिन्दूज एन्ड बुद्धिस्टस” , ”फुटफाल्स ऑफ इन्डियन हिस्ट्री”, ”रिलिजन एन्ड धर्म”, ”सिविक एन्ड नेशनल आइडियल्स् ” को पढ़ कर जाना जा सकता है।
भगिनी निवेदिता की भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भागीदारी रही – निवेदिता एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता एक साथ साथ एक कुशल लेखिका भी थीं। उनके लेखों ने उस समय हज़ारों युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया था। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार के अधिकारी उनकी जासूसी करते थे और उनके द्वारा लिखे गए पत्रों को सरकार पढ़ती थी। निवेदिता को जब अंग्रेज़ों की भारतीयों के प्रति द्वेष और दमनकारी नीतियों के बारे में पता लगा तो उनके वैचारिक दृष्टि में परिवर्तन आने लगा। उनको राजकीय स्वतंत्रता सबसे अधिक महत्वपूर्ण लगने लगी थी। उनका मानना था सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए देश का स्वाधीन होना बहुत आवश्यक है।
सितम्बर 1902 से निवेदिता ने पूरे भारत में स्वतंत्रता के लिए जनजागृति शुरू कर दी थी। दमनकारी अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ वो सीधी आवाज़ उठाती थीं। ” लिजेल रेमंड ” द्वारा लिखित भगिनी निवेदिता की जीवनी के अनुसार 20 अक्टूबर, 1902 को निवेदिता बड़ौदा पहुंची जहा उन्होंने योगी अरविन्द से मुलाकात की। योगी अरविन्द उस समय 30 वर्ष की उम्र के थे। निवेदिता ने उनको कलकत्ता में चल रही राजनैतिक गतिविधयों से अवगत करवाया। उन्होंने योगी अरविन्द को कलकत्ता आकर स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी बनने का निमंत्रण भी दिया और उसकी आवश्यकता भी समझाई। इसका परिणाम यह होता है कि आने वाले समय में योगी अरविन्द और भगिनी निवेदिता ने साथ मिलकर स्वतंत्रता के लिए कार्य किया। वर्ष 1902 में महात्मा गाँधी भी भगिनी निवेदिता से कलकत्ता में मिले थे।
1904 में भारत का प्रथम राष्ट्रीय ध्वज भी भगिनी निवेदिता द्वारा चित्रित किया गया था। ध्वज में लाल और पीले रंग की पट्टिया थी और वज्र को दर्शाया गया था।
1906 और 1907 में ब्रिटिश सरकार की अनैतिक नीतियों के खिलाफ भगिनी निवेदिता ने भारतीय समाज को जागरूक करने के लिए लेख लिखने का कार्य सुनियोजित तरीके से शुरू कर दिया। प्रबुद्ध भारत , संध्या और न्यू इंडिया जैसे पत्रों में उनके लेख प्रकशित हुए। योगी अरविन्द के साथ उन्होंने युगान्तर, कर्म -योगिन और “वंदे मातरम” जैसे पत्रों में भी सेवाएं दी।
शिल्पकार अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और चित्रकार नंदलाल बोस को राष्ट्रवादी चित्र बनाने के लिए और दक्षिण भारत के कवि सुब्रमणियम भारती को श्रृंगार रस की कविताएँ छोड़ कर वीर रस की कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित करती है ताकि इनके माध्यम से युवा प्रेरित हो और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले I
वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु के परिवार के साथ भी निवेदिता के आत्मीय सम्बन्ध थे। डॉ. बसु को उनके शोध कार्य में मानसिक रूप से निवेदिता सहयोग करती थीं। वर्ष 1905 में लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन से बंगाल में स्वदेशी आंदोलन का बिगुल बज गया था। निवेदिता ने भी उसमें सहभागिता निभाई और अंग्रेज़ों से सीधे दो-दो हाथ किए। इस दौरान स्वदेश और स्वाबलंबन पर निवेदिता ने बहुत जोर दिया था। स्वदेशी का महत्व बताने के लिए आम सभाओं में भगिनी निवेदिता को वक्ता के रूप बुलाया जाता था जहॉं वह स्वदेश का प्रचार – प्रसार करती थीं और स्वावलम्बी बनने का सन्देश देती थीं। क्रांतिकारियों के संगठित प्रयास से विभाजन वापस लिया गया।
रवींन्द्र नाथ टैगोर ने निवेदिता के कार्य को देख कर उनको ”लोकमाता” का दर्जा दिया था। उनके कार्य के महत्व को हम भारतीय इतिहास के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में से एक सुभाष चंद्र बोस के शब्दों से जान सकते हैं जो उन्होंने भगिनी निवेदिता के बारे में कहे थे -”मैंने भारत को प्रेम करना सीखा स्वामी विवेकानंद को पढ़ कर और स्वामी विवेकानंद को मैंने समझा भगिनी निवेदिता के पत्रों से।” स्वास्थ्य बिगड़ जाने से मात्र 44 साल की उम्र में 13 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग में उनका निधन हो गया।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं)
Nice