प्रकृति के साथ चलने वाली भारतीय कालगणना का पुनर्स्थापन आवश्यक

प्रकृति के साथ चलने वाली भारतीय कालगणना की पुनर्स्थापन आवश्यक

प्रकृति के साथ चलने वाली भारतीय कालगणना की पुनर्स्थापन आवश्यक

उदयपुर, 22 मार्च। भारतीय कालगणना पूर्णतः वैज्ञानिक है। इसे अब आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है। यह काल गणना प्रकृति के साथ चलने वाली है। इसके बारह महीने ऋतु चक्र परिवर्तन का भी स्पष्ट आंकलन प्रदर्शित करते हैं। किन्तु, भारतीय समाज अपनी इस वैज्ञानिक कालगणना से कुछ दूर हो गया है। इसे पुनः स्थापित करना आवश्यक है और यह तभी संभव है जब इसे नित्य-प्रतिदिन की जीवनचर्या में समाहित किया जाए।

ये विचार सोमवार को भारतीय नववर्ष समाजोत्सव समिति की ओर से यहां हिरण मगरी सेक्टर-4 में आयोजित होली मिलन में मुख्य वक्ता आनंद प्रताप ने व्यक्त किए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक आनंद प्रताप ने भारतीय नववर्ष और विक्रम संवत के महत्व को प्रतिपादित करते हुए नई पीढ़ी तक इसके महत्व को पहुंचाने का आह्वान किया। साथ ही, इसके अंतर्गत 2 अप्रैल को उदयपुर शहर में होने जा रही विशाल शोभायात्रा में सहभागिता का आग्रह किया।

इधर, इस विशाल आयोजन की तैयारियों और जन-जन को इस आयोजन से जोड़ने के अंतर्गत सोमवार को भी विभिन्न क्षेत्रों में पीले चावल देकर शोभायात्रा में आने के निमंत्रण का क्रम जारी रहा।

हिरण मगरी सेक्टर 4 शिव मंदिर व आर्य समाज मंदिर में मंदिर समिति, हिरण मगरी सेक्टर-7 जगन्नाथ मन्दिर में मन्दिर ट्रस्ट तथा आयड़ स्थित गंगू कुंड पर भावसार समाज को श्रीफल और कलश देकर निमंत्रण दिया गया।

समिति की बेदला स्थित सामुदायिक भवन में तैयारी बैठक हुई, जिसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्ता व समाजजन शामिल हुए और शोभायात्रा के लिए अधिक से अधिक संख्या जोड़ने का संकल्प लिया गया। इसी तरह, बेदला में सुखदेवी माता के मंदिर में भी बैठक हुई।

शहर के घंटाघर क्षेत्र में केशव नगर नववर्ष समारोह समिति के कार्यकर्ताओं ने नववर्ष के पत्रक का विमोचन किया व पत्रक बांटे। जगदीश मंदिर से घंटाघर तक पत्रक बांटे गए, जिसमें सर्व समाज के प्रतिनिधि साथ रहे।

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