भारतीय है संविधान की आत्मा

भारतीय है संविधान की आत्मा

संविधान दिवस : 26 नवम्बर

डॉ. सुरेंद्र कुमार जाखड़

भारतीय है संविधान की आत्माभारतीय है संविधान की आत्मा

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसकी आत्मा भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं जन मानस के अनुरूप है। स्वतंत्रता मिलते ही देश को चलाने के लिए संविधान बनाने का काम शुरू कर दिया गया। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। 29 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान के निर्माण के लिए एक प्रारूप समिति बनाई गई, जिसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे। दुनिया भर के संविधानों का अध्ययन करने के बाद प्रारूप समिति ने डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया। 26 नवंबर 1949 को इसे भारतीय संविधान सभा के समक्ष रखा गया। इसी दिन संविधान सभा ने इसे अपना लिया। इसी कारण 2015 से प्रति वर्ष 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान के कुछ प्रावधानों को तत्काल प्रभाव से लागू किया गया। भारतीय संविधान की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी दोनों में ही हस्तलिखित है। इसमें टाइपिंग या प्रिंट का प्रयोग नहीं किया गया है। दोनों ही भाषाओं में संविधान की मूल प्रति को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखा है। रायजादा का पारिवारिक व्यवसाय कैलिग्राफी का था। उन्होंने संविधान के हर पेज को बहुत ही सुन्दर इटैलिक लिखावट में लिखा है।  251 पन्नों का संविधान लिखने में उन्हें छह महीने लगे।

भारतीय संविधान के हर पेज को सुविख्यात चित्रकार आचार्य नंदलाल बोस ने चित्रों से सजाया। मूल संविधान में  नंदलाल बोस द्वारा बनाए गए 22 चित्र हैं। संवैधानिक प्रावधानों एवं चित्र के अवलोकन के आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारे संविधान की आत्मा भारतीय है। प्रस्तावना पेज को सजाने का काम राममनोहर सिन्हा ने किया। वे नंदलाल बोस के ही शिष्य थे। इन चित्रों की शुरुआत अशोक की लाट से होती है जिसमें मुंडकोपनिषद का वाक्य सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। हम अगर इन चित्रों का विश्लेषण करें, तो हमें बड़ी दिलचस्प जानकारी मिलती है।

संविधान के भाग-एक के आरम्भ में सिंधु घाटी सभ्यता की मुहर में जेबू बैल का चित्र है। भाग-दो नागरिकता से संबंधित है। इस भाग के आरम्भ में वैदिक काल के गुरुकुल आश्रमों में शिक्षा लेते बच्चों का चित्र है। भाग तीन के आरम्भ में लंका पर प्रभु श्री राम की विजय के पश्चात पुष्पक विमान से अयोध्या लौटते श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण का मनोरम चित्र है। इसी तरह भाग-आठ के प्रारंभ में सीता माता की खोज में उड़कर लंका जाते हनुमान जी का भव्य चित्र है। भाग चार में राज्य के नीति निदेशक तत्व हैं। कृष्ण से बड़ा नीति निर्धारक कौन हो सकता है। अतः इस भाग के आरंभ में कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश देते भगवान श्री कृष्ण का चित्र है।

मूल संविधान में उकेरे गए चित्र

भारतीय सनातन परंपरा के महत्वपूर्ण तत्व महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी को भी संविधान की मूल प्रति में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। भाग पांच में महात्मा बुद्ध को स्थान दिया गया है। इस भाग के प्रारंभ में महात्मा बुद्ध से ज्ञान लेते लोग और पशु पक्षी उकेरे गए हैं। इसी तरह भाग-छह के आरम्भ में तप में लीन जैन तीर्थंकर वर्धमान महावीर का चित्र है।

संविधान के अलग अलग भागों के पृष्ठ हिस्से में सिंहासन बत्तीसी पर बैठे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में उपस्थित शिक्षार्थी, नटराज के रूप में भगवान शिव की कलाकृति, भागीरथ की तपस्या और गंगा का अवतरण, मराठा महाराज शिवाजी और गुरु गोविंद सिंह जी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नमक कानून के विरुद्ध दांडी मार्च करते गांधीजी, आजाद हिंद फौज के झंडे को सैल्यूट करते नेताजी सुभाष चंद्र बोस, दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों वाला हिमालय, थार के रेगिस्तान को पार करते सजे धजे ऊंट और समुद्र की ऊंची लहरों को मात देते भारतीय समुद्री जहाजों के मनोरम चित्र हैं। एक भाग के पृष्ठ में राजा भरत का शेर के साथ लुभावना चित्र है, जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत है। इसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद-एक के खंड क में किया गया है।

संविधान के मुख्य पृष्ठ पर सुनहरे रंग से बहुत सुंदर चित्रण किया गया है। उसी प्रकार अंतिम पृष्ठ पर भी सुनहरे रंग का पुष्प हार बना है, जो स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानियों को समर्पित किया गया है। हमारी संविधान सभा में संविधान के हर प्रावधान पर भारतीय जनमानस, संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप पर्याप्त वाद विवाद के पश्चात 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में यह संविधान बनकर तैयार हुआ।

संविधान में रुचि रखने वालों के लिए एक और दिलचस्प तथ्य है। असल में पंथनिरपेक्ष, समाजवादी और अखंडता शब्द मूल संविधान के अंग नहीं थे। आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष, समाजवादी एवं अखंडता शब्दों को जोड़ा गया और अनुच्छेद 51-क के रूप में एक नया भाग-4-क मूल कर्तव्यों के रूप में संविधान में जोड़ा गया।

संविधान दिवस के उपलक्ष्य में हम भारत के लोगों को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने संविधान प्रदत्त अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति भी जागरुक रहेंगे तथा अन्य सभी को भी जागरूक करेंगे, तभी संविधान और अधिक सार्थक सिद्ध हो पाएगा।

(लेखक विधि शिक्षक हैं)

 

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