भारत की गगनभेदी उड़ान
प्रशांत पोळ
‘फेअरफेक्स फायनांशिअल होल्डिंग कॉर्पोरेशन’ इस कैनेडियन कंपनी की मीडिया में चर्चा हो रही है। 1985 में स्थापित यह कंपनी बीमा क्षेत्र में कार्यरत है और ‘शेअर होल्डर्स को निवेश के अच्छे सुझाव देना’ यह भी इस कंपनी का काम है। टोरंटो, कनाडा के अरबपति भारतीय उद्योगपति, वी प्रेम वत्स द्वारा स्थापित की हुई यह कंपनी, निवेश के क्षेत्र में एक बड़ी और विश्वसनीय कंपनी के रूप में जानी जाती है।
फेअरफेक्स नाम से भारतीयों को याद आती है बोफोर्स घोटाले की। इस घोटाले के दौरान ‘फेअरफेक्स’ यह नाम मीडिया में बार – बार आ रहा था। परंतु उस फेअरफेक्स का और इस फेअरफेक्स का कोई संबंध नही है। बोफोर्स घोटाले की फेअरफेक्स यह अमेरिका की प्राइवेट गुप्तचर कंपनी (Private Detective Firm) है और यह ‘फेअरफेक्स फायनांशिअल होल्डिंग’, आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत कनाडा की कंपनी है।
अभी इस फेअरफेक्स के सी ई ओ प्रेम वत्स द्वारा अपने शेअर होल्डर्स को लिखा हुआ एक पत्र सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है। इस पत्र में प्रेम वत्स ने भारत, और विशेष रुप से प्रधानमंत्री मोदीजी की, विशेष प्रशंसा करते हुए आर्थिक क्षेत्र के निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए कहा है। इस पत्र का एक बडा हिस्सा भारत में हो रहे विकास से संबंधित है। इसमें वत्स कहते हैं, ‘मोदी जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने तब हम सब अत्यंत उत्साहित थे क्योंकि उनका गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल अत्यधिक यशस्वी और आउटस्टैंडिंग था। तेरह वर्षों में लगातार 10 प्रतिशत की, ‘जीडीपी में वास्तविक बढ़ोत्तरी’ अद्भुत थी और मोदीजी ने हमारी अपेक्षाएं भी पूरी कीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद विगत 6/7 वर्षों में उन्होंने भारत में एक बड़ा बदलाव लाया है और अब उन्होंने व्यवसायानुकुल और आर्थिक रूप से पूर्णतः जिम्मेदारी युक्त, ऐसा बजट रखा है। इसके कारण भारत का भविष्य उज्ज्वल और आशादायक है। फेअरफेक्स जैसी विश्वसनीय निवेश मार्गदर्शक कंपनी के प्रमुख द्वारा किया हुआ यह विधान महत्त्वपूर्ण है।
और केवल फेअरफेक्स ही नहीं, लगभग सभी वैश्विक रेटिंग संस्थाओं ने भारत का अगले वर्ष का विकास दर दो आंकड़ों में रहने का अनुमान लगाया है। भारत यह दो आंकड़ों में (अर्थात दस के ऊपर) विकास दर होने वाला विश्व का एक मात्र देश रहेगा। यह सब अद्भुत है। जबरदस्त है। कोरोना महामारी के वैश्विक संकट में ना डरते हुए, उसे एक अवसर मानकर ऊंची उड़ान लेने का यह एकमात्र उदाहरण है..!
कुछ दिन पहले ‘मूडीज एनेलिटिक्स’ इस वैश्विक रेटिंग संस्था ने ‘भारत की विकास दर 12 प्रतिशत रहेगी’ ऐसा बताया है। पूरे विश्व में ‘मूडीज’ के किसी भी अनुमान का एक विशेष अर्थ होता है। नवंबर में इसी ‘मूडीज एनेलिटिक्स’ ने यह दर 9 प्रतिशत रहेगी ऐसा अनुमान लगाया था। दिसंबर में समाप्त हुए तिमाही में, अपेक्षा से अच्छे परिणाम सामने आने के कारण भारत के बढ़ते विकास दर का अनुमान लगाया जा रहा है।
इसी मूडीज की और एक साझा कंपनी है ‘मूडीज इन्वेस्टर सर्विस’। इस कंपनी ने भारत का विकास दर 13.7 प्रतिशत की गति से आने वाले वित्तीय वर्ष मे बढ़ेगी, ऐसा अनुमान लगाया है। पिछले ही सप्ताह ‘ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन एण्ड डेवलपमेंट’ (OECD) ने कहा है कि आने वाले वित्तीय वर्ष में भारत की विकास दर 12.6 प्रतिशत रहेगी। यह सब सुखद है। क्योंकि इन सब अनुमानों के अनुसार आने वाले वित्तीय वर्ष मे हमारे विकास दर के आसपास विश्व का कोई भी देश नही रह सकता। कोरोना की इस दूसरी लहर के बावजूद भी, अधिकतम एजेंसीज का कहना है, कि भारत का प्रदर्शन बेहतर ही रहेगा।
यह सब इतनी आसानी से और अचानक नही हुआ है। कोरोना के इस कठिन काल में, जब प्रगतिशील देशों की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाओं समेत अन्य सभी व्यवस्थाएं चौपट हो रही थीं, तब भारत अपनी पूरी ताकत से खड़ा होकर इस संकट का सामना कर रहा था। N15 मास्क, पीपीई किट, टेस्टिंग किट्स से लेकर वेंटिलेटर और वैक्सीन तक, सबका स्वयं निर्माण कर रहा था। पूरे विश्व में इस पद्धति से कोरोना से मुकाबला करने वाला भारत एकमात्र देश है और इसीलिये अन्य देशों के लिये रोल मॉडल बना है।
इस पूरे कालखंड में भारत ने जबरदस्त चमत्कार कर दिखाया। कोरोना के कारण पूरे विश्व में पीपीई किट्स (पर्सनल प्रोटेक्शन ईक्विपमेंट किट) की मांग बहुत ज्यादा थी। मार्च 2020 तक अपने देश में पीपीई किट्स का उत्पादन नहीं होता था। पूरे विश्व का 17 बिलियन अमरीकी डॉलर्स का ‘मेडिकल टेक्सटाइल’ का बाजार मानो हमारी जानकारी में ही नहीं था। किन्तु कोरोना के कारण हमें पीपीई किट्स की आवश्यकता हुई और फिर केंद्र सरकार ने ये किट्स, सारे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, भारत में ही बनाने का निर्णय लिया।
हमारे उद्यमियों की अथक मेहनत के कारण मई के दूसरे सप्ताह में डेढ़ लाख पीपीई किट प्रतिदिन बनना प्रारंभ हो गए थे। मात्र चार महीनों में, भारत में पीपीई किट का उद्योग 7 हजार करोड़ का हो गया था, जो विश्व में चीन के बाद, दूसरे क्रमांक पर है।
और आज? आज हम आठ लाख पीपीई किट प्रतिदिन बना रहे हैं। सोलह सौ से ज्यादा पीपीई किट्स की निर्माता, HLL (हिंदुस्तान लाइफकेअर लिमिटेड) दिये हुए मानकों के अनुसार पीपीई किट्स का उत्पादन कर रही है। दस से ज्यादा देशों को हम ये किट्स निर्यात कर रहे हैं, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन जैसे बड़े देश हैं, तो सेनेगल जैसे छोटे देश भी हैं। लगभग 2 करोड़ 30 लाख किट्स के ऑर्डर लंबित हैं।
वेंटिलेटर के मामले में भी यही हुआ। कोरोना के प्रारंभिक दिनों में भारत में कुल 16,000 वेंटिलेटर्स थे, जिनमें से 8,432 सरकारी अस्पतालों में थे। अर्थात सत्तर वर्षों में हम मात्र 16,000 वेंटिलेटर्स जोड़ सके, और वो भी सारे के सारे आयातित। कोरोना की आहट लगते ही प्रधानमंत्री ने Empowered Group of Secretaries (EGoS) की एक समिति बनाई, जिसने अनुमान लगाया कि कोरोना के चलते, हमें कम से कम 75,000 वेंटिलेटर्स की आवश्यकता होगी। तुरंत वेंटिलेटर्स के स्पेसिफिकेशन्स बनाकर MSME मंत्रालय के साथ समन्वय बनाया गया।
और एक अद्भुत इतिहास रचा गया ..
मात्र 3 महीने में, भारत में ही 60,000 वेंटिलेटर्स बनाए गए, और वो भी वैश्विक मानकों के साथ ! आयातित वेंटिलेटर्स की एक चौथाई कीमत के ये वेंटिलेटर्स, अस्पतालों में लग भी गए हैं और सत्तर वर्ष तक उन्हें आयातित करने वाला हमारा भारत, अब पांच – छह देशों को यह निर्यात कर रहा है।
अर्थात हम कर सकते हैं, हमने कर दिखाया है..!
ऐसे अनेक उदाहरण हैं। सिरेमिक टाइल्स की गाथा भी ऐसी ही है। भारत में चीन से ये टाइल्स आयात होती थीं। भारत ने चीन से आयात कम करने की नीति बनाई, तो भारतीय निर्माता आगे आए। भारत का सिरेमिक हब है, गुजरात का मोरबी शहर। पिछले कुछ महीनों में मोरबी, राजकोट आदि शहरों में सिरेमिक के सौ – सवा सौ नए कारखाने खुल गए हैं। इस क्षेत्र में लगभग 1,100 करोड़ का निवेश हुआ है। पहले से स्थापित कंपनियां अपनी क्षमता बढ़ा रही हैं। कोरोना से पहले, ये कम्पनियां अपने उत्पादन का 18% निर्यात करती थीं। अब यह प्रतिशत 28 तक पहुंचा है। ग्राहक कह रहे हैं, ये टाइल्स तो चीनी टाइल्स से भी अच्छी हैं।
इन उत्पादनों को लगने वाला कच्चा माल है, सिरेमिक पाउडर। यह राजस्थान में बनती है। मोरबी और राजकोट के उद्योगों ने इन राजस्थानी उद्योगों का व्यवसाय भी बढ़ा दिया है। मात्र नवंबर माह में राजस्थान के सिरेमिक पाउडर बनाने वाले उद्योगों ने 700 करोड़ का व्यवसाय किया है..!
मात्र शहरों में ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों ने भी चमत्कार कर के दिखाया। बिहार के चंपारण जिले के गांवों में वापस लौट रहे श्रमिकों को पृथकवास के दौरान सरकारी अधिकारी, उनका कौशल्य (skill set) पूछ रहे थे। इनमें से अनेक श्रमिक ऐसे थे, जिन्होंने पंजाब के लुधियाना, जालंधर और गुजरात, राजस्थान में रेडीमेड कपड़ों की इकाइयों में काम किया था। साड़ी, एंब्रोयडरी आदि में ये श्रमिक निपुण थे।
स्किल मैपिंग के अंतर्गत प्रशासन ने पश्चिम चंपारण के 76 श्रमिकों की उद्यमिता की पहचान की। इन्हें नाममात्र किराये पर बेतिया तहसील के चनपटिया में ‘भारतीय खाद्य निगम’ के बेकार पड़े गोदाम में जगह दी। इन लोगों ने छोटी सी पूंजी से काम शुरू किया। सरकार ने मदद की…
.. और इतिहास बनता गया !
श्रमिकों ने उन कंपनियों से बात की, जहां उनकी पहले वाली कंपनी का माल जाता था। जहां ये श्रमिक काम करते थे, वो पहले की कंपनियां कोरोना के कारण बंद पड़ी थीं। अतः ग्राहक तो माल देने वाले सप्लायर को ढूंढ ही रहे थे। बात आगे बढ़ गयी। एक से बढ़कर एक उत्पाद तैयार होने लगे और इन कामगारों ने अपने बूते इन्हें बाहर के राज्यों में भेजना शुरू कर दिया। लद्दाख में सेना के लिए कंबल और टोपी का ऑर्डर भी ले लिया। साथ – साथ अब तो इनके तैयार कपड़े बांग्लादेश, कतर और स्पेन में भी जाने लगे हैं। ऐसी साठ से ज्यादा इकाइयां चनपटिया में काम कर रही हैं।
दूसरे कंपनियों में काम करने वाले इन श्रमिकों ने, सब मिला कर 20 लाख का निवेश किया था और आज ये करोड़ों का टर्न ओवर कर रहे हैं। 500 से ज्यादा श्रमिकों को अपने ही गावों में रोजगार उपलब्ध हुआ है। इन्हें देखकर सूरत और लुधियाना की कुछ कंपनियां, अपने कारखाने की इकाइयां बिहार में लेकर जाने की तैयारी में हैं। यहां के उत्पाद सस्ते और अच्छी गुणवत्ता वाले हैं। इसलिए बाजार में इनकी काफी मांग है। मुंबई और सूरत से, चनपटिया की इकाइयों के लिए कच्चा माल भेजा जा रहा है, तो बेतिया जिला उद्योग केंद्र द्वारा एक डाइंग यूनिट लगाने की योजना अंतिम चरण में है। बेतिया शीघ्र ही एक बड़ा औद्योगिक केंद्र बनने जा रहा है।
चनपटिया में एक छत के नीचे, ‘चंपारण ब्रांड’ के कशीदे वाली साड़ी, लहंगा, चुनरी बननी शुरू हुई हैं। अब तो इन इकाइयों ने आधुनिक मशीनें मंगाई हैं, जो ‘कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन’ (CAD) के माध्यम से टेक्सटाइल के क्षेत्र में उत्पादों का निर्माण करेंगी। यहां अब जैकेट, टी-शर्ट, ट्रेक सूट, फुटवेयर, सेनेटरी नैपकिन आदि उत्पाद भी बनने लगे हैं।
यह ‘चनपटिया मॉडल’, भारतीय श्रमशक्ति का और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का मजबूत उदाहरण है..!
ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्होंने भारत को एक मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा किया है। यह सब अद्भुत है। कल्पना से परे है। भारत के लिए, आपदा को अवसर में बदलने का यह टर्निंग पॉइंट है।
सारा विश्व अत्यंत आदर और सम्मान के साथ आज हमारी ओर देख रहा है। भारतीय जीवन मूल्यों का परिचय, दुनिया को हो रहा है। इस चीनी महामारी ने हमें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया, इसका कारण हमारा खानपान, हमारी जीवनशैली, हमारा योग, हमारा आयुर्वेद, हमारे जीवनमूल्य हैं, ऐसा दुनिया कह रही है। इस आपत्ति में भी हमने ईरान से लेकर कनाडा तक, अनेक देशों की जिस प्रकार से सहायता की, उसकी भी वैश्विक मंच पर प्रशंसा हो रही है। कोरोना के प्रारंभिक काल में जब भारत ने कहा कि ‘हम कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं’ तो अनेकों ने भारत की खिल्ली उड़ाई। ‘वैक्सीन बनाने का काम तो इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी जैसे विकसित देश करेंगे… इस में भारत का क्या काम?’ यह अनेक पत्रकारों की और राजनयिकों की सोच थी।
और आज ?
आज अनेक देश हम से कोरोना की वैक्सीन लेने के लिए पंक्ति में खड़े हैं। 81 देशों को हमने वैक्सीन दी है। ब्राज़ील जैसा देश, हमारी कोरोना वैक्सीन की तुलना, हनुमान जी द्वारा लायी हुई संजीवनी बूटी से कर रहा है। पूरे विश्व में हमने सबसे कम समय में, तेज गति से, दस करोड़ से ज्यादा लोगों का वैक्सीनेशन किया है।
वर्षप्रतिपदा के अवसर पर नियति संकेत दे रही है, बहुत अच्छी बातें हो रही हैं। समाज सक्रिय है। केंद्र में संवेदनशील सरकार है। एक सौ तीस करोड़ का यह राष्ट्रपुरुष जाग रहा है!