भारत की नियति ही अखंडता है – जगदीश

भारत की नियति ही अखंडता है - जगदीश

भारत की नियति ही अखंडता है - जगदीश

प्रयागराज। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह शारीरिक शिक्षण प्रमुख जगदीश ने यहां विश्वास व्यक्त किया कि भारत पुन: अखंड होगा। हमारे बिछड़े भूभाग देश की सीमाओं से फिर से जुड़ेंगे। भारत की नियति ही अखंडता है।

वे गुरुवार को संघ के प्रयाग विभाग की ओर से आयोजित विजयदशमी उत्सव में मुख्यवक्ता के रूप में बोल रहे थे। नगर के एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में गुरुवार को संघ की स्थापना दिवस के रूप में आयोजित इस उत्सव में बड़ी संख्या में जुटे कार्यकर्ताओं नागरिकों एवं मातृशक्ति को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि संघ का पूर्ण विश्वास है भारत पुन: अखंड होगा। देश की सेना तथा देशवासियों में पूर्ण विश्वास का उदय हुआ है, इसलिए यह कार्य होकर रहेगा। महर्षि अरविंद ने भी कहा था कि भारत अखंड होगा यह विभाजन कृत्रिम है जो समाप्त होकर रहेगा।

अपने सारगर्भित उद्बोधन में उन्होंने आगे कहा कि श्री राम मंदिर के निर्माण और धारा 370 समाप्त होने का किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था, किंतु आज यह धारा भी समाप्त हो चुकी है और हम सभी के आंखों के सामने श्री राम मंदिर का निर्माण भी हो रहा है।

अपने प्रवास के क्रम में चेन्नई से यहां आए अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख ने आगे कहा कि आज संपूर्ण विश्व में हिंदुत्व का डंका बज रहा है। हिंदुत्व से डरने वाले कुछ लोगों ने विश्व स्तर पर अमेरिका में एक ऑनलाइन सेमिनार आयोजित किया था, लेकिन वह वहीं के लोगों के विरोध के कारण सफल नहीं हो सका। आज अमेरिका के लोग पुनर्जन्म में विश्वास करने लगे हैं। पूरी दुनिया भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रही है। पहले विदेशों में भारत के प्रतिनिधियों को वह सम्मान नहीं मिलता था जो अन्य देशों को प्राप्त होता था, किंतु आज भारत के प्रधानमंत्री को दुनिया के विकसित देशों में भी विशेष सम्मान प्राप्त होता है।

संघ के स्थापना दिवस को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि 96 वर्षों की कठोर साधना के फलस्वरूप आज संघ इस मुकाम पर पहुंचा है। एक शाखा से शुरू हुआ संघ आज दुनिया के 60 देशों में किसी न किसी रूप में अपने कार्य को संचालित कर रहा है। संघ की प्रेरणा से 120 संगठन कार्य कर रहे हैं। पचास लाख स्वयंसेवकों की एक मजबूत ताकत संघ के पास है। हिंदू समाज को जागृत करने के लिए 2400 पूर्णकालिक प्रचारक और विस्तारक अपना पूरा समय देकर अविवाहित जीवन जीते हुए भारत माता की सेवा में लगे हैं। प्राथमिक शिक्षा वर्ग में प्रतिवर्ष सवा लाख कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसमें 24000 प्रशिक्षक होते हैं। इसी तरह संघ शिक्षा वर्ग में प्रतिवर्ष 30000 नए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। देशभर में प्रतिवर्ष 32 से 35 लाख कार्यकर्ता गुरु पूजन करते हैं। 11000 सेवा बस्तियों में संघ की ओर से सवा लाख से ज्यादा सेवा के कार्य संचालित हो रहे हैं। संघ का जितना विरोध हुआ है संघ उतना ही चमका है।

उन्होंने आगे कहा कि इस यात्रा को पूरा करने के लिए संघ को जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा है। आग में तप कर सोना जैसे और निखरता है, संघ भी इन विरोधों में तप कर और निखरा है। 1925 से लेकर 1948 तक संघ को अनेक राजनीतिक दलों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। 1948 में ही संघ पर पहला प्रतिबंध लगा। यह विरोध 1978 तक किसी न किसी रूप में चलता रहा। विरोध में भी संघ आगे बढ़ता ही रहा। 78 के बाद अनुकूलता का दौर शुरू हुआ जो 2010 तक चला। 2011 से सामाजिक स्वीकार्यता संघ की बढ़ी। सभी ने स्वीकार किया कि संघ जो संकल्प लेता है वह करके दिखाता है।

अखिल भारतीय सहशारीरिक प्रमुख जगदीश ने आगे कहा कि आने वाला समय हमारे हाथ में है। संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी ने कहा था कि इसी शरीर से हमें भारत माता को वैभवशाली होते देखना है। केशव जी ने संघ लगाया माधव जी ने उसे बढ़ाया।

विजयदशमी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना का दिन होने के कारण इसका महत्व कार्यकर्ताओं के लिए और भी अधिक बढ़ जाता है। यह आसुरी शक्ति पर दैवी शक्ति के विजय का पर्व है। इसी भाव को लेकर डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना विजयदशमी के दिन की। मां दुर्गा की उपासना से भी यह पर्व जुड़ा हुआ है। वास्तव में शक्ति संचय का यह पर्व है। हिंदू समाज को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

विजयदशमी के दिन एक नया शस्त्र खरीदें
उन्होंने कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि परंपरागत रूप से विजयदशमी पर हिंदू समाज के लोग शस्त्र पूजन करते हैं। यह हमारी परंपरा का अंग है। आज आवश्यकता है सभी लोग अपने पुराने शस्त्रों की साफ सफाई करने के साथ ही साथ इस पर्व पर एक नए शस्त्र को जरूर खरीदें। इस परंपरा को भूल गए हों तो इसे पुनः प्रारंभ करें।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र का निर्माण चरित्रवान लोग करते हैं। संघ ऐसे ही लोगों का निर्माण कर रहा है। देश को आज पुष्ट शरीर बुद्धि एवं निर्मल आत्मा वाले नागरिकों की जरूरत है। ऐसे समाज का निर्माण करना है जो अनुशासित हो विनम्र हो।

इसके पूर्व मुख्य शिक्षक अवधेश के निर्देशन में सैकड़ों की संख्या में आए प्रयाग विभाग के गणवेश धारी स्वयंसेवकों ने पद विन्यास, नियुद्ध, व्यायाम योग आसन दंड योग, सामूहिक समता तथा यष्टि युद्ध का अत्यंत आकर्षक एवं रोमांचक प्रदर्शन किया।

अतिथि परिचय विभाग कार्यवाह संजीव ने कराया। मंच पर सह विभाग संघचालक शिवकुमार एडवोकेट की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। बौद्धिक प्रमुख विक्रम बहादुर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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