भारत की भूमिका के विस्तार का समय

भारत की भूमिका के विस्तार का समय

बलबीर पुंज

भारत की भूमिका के विस्तार का समयभारत की भूमिका के विस्तार का समय

वर्ष 2022 कैसा था, उसे हम भुगत चुके है। वर्ष 2023 भारत और शेष विश्व के लिए कैसा होगा? कुछ माह पहले तक विश्व कोविड-19 के प्रकोप से लगभग मुक्ति पा चुका था, किंतु इस महामारी के उद्गमस्थल चीन में पुन: कोरोना विस्फोट ने नववर्ष में दुनिया को फिर चौकस कर दिया है। संतोषप्रद बात यह है कि हम इस संक्रमण के बहरूपिये चरित्र से पहले से अधिक परिचित, जागरूक और उससे संघर्ष करने हेतु तत्पर हैं। किंतु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि कोरोना समाप्त हो गया है और हम इससे निश्चिंत हो जाएं। सच तो यह है कि हमारी लापरवाही से कोरोना संक्रमण पुन: मानवता पर हावी हो सकता है।

विश्व यदि बीते वर्ष कोविड-19 से लगभग मुक्त रहा, तो फरवरी के अंतिम सप्ताह में शुरू यूक्रेन-रूस युद्ध ने दुनिया में ईंधन-खाद्य आपूर्ति को बाधित कर दिया। इससे विकसित और संपन्न अमेरिकी-यूरोपीय देश, आर्थिक मंदी के साथ बढ़ती मुद्रास्फीति और सख्त मौद्रिक नीति के दुष्प्रभाव रूपी भंवर में फंस गए। इस पृष्ठभूमि में भारत की स्थिति अलग हो सकती है? वैश्विक घटनाक्रम से भारत असंबंधित रहे, ऐसा संभव नहीं। फिर भी भारत, दुनिया की सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में, आर्थिक मोर्चे पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है। सरकार द्वारा किए गए सुधारों से भारत की वित्तीय स्थिति मजबूत हुई है। निवेशकों के लिए भारत आकर्षक स्थलों में से एक है।

वर्ष 2013 में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक लाख 86 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर था, जो चालू वित्तवर्ष में बढ़कर तीन लाख 46 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है। दिसंबर 2022 में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक प्रतिकूलताओं (मंदी सहित) से निपटने के लिए भारत अच्छी तरह से तैयार है। यह सब इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि बीते आठ वर्षों में जो नीतियां-योजनाएं (‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ सहित) अपनाई गईं— वे उद्योग को सुगम बनाने आदि प्रयासों से अन्य देशों की तुलना में सहायक बन रही हैं। जीडीपी के आधार पर भारत का दुनिया की 5वीं, तो क्रय शक्ति समानता (पीपीपी) के संदर्भ में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनना और देश का निर्यात निरंतर बढ़ना— इसका परिणाम है।

इन्हीं प्रयासों के कारण भारत में गरीबी भी घटने लगी है। ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (आईएमएफ) द्वारा ‘महामारी, गरीबी और असमानता : भारत से मिले साक्ष्य’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के फलस्वरूप भारत में अत्याधिक गरीबी का स्तर 0.8 प्रतिशत पर आ गया है।’ यह आंकलन वर्ष 2004-05 से कोरानाकाल वर्ष 2020-21 के बीच का है। यह ठीक है कि कोरोना के समय गरीबी कम करने के सरकारी प्रयासों को झटका लगा, किंतु आईएमएफ (IMF) की रिपोर्ट ने परोक्ष रूप से स्पष्ट कर दिया कि कोविड-19 जनित तालाबंदी से रोजगार छीन जाने और पलायन आदि कारणों से जो श्रमिक नगरों से विस्थापित होकर गांव-देहात पहुंचे, वह बिल्कुल निराश्रित नहीं थे। नगरों में कमाई गई पूंजी के बल पर श्रमिक, ग्रामीण अंचलों में आवश्यक सुविधाएं जुटाने में सफल रहे। आशा है कि वर्ष 2023 भारत में और सकारात्मक सुधारों का साक्षी बनेगा।

घरेलू स्तर पर अपनी नींव सुदृढ़ करने के साथ ‘नया भारत’ नववर्ष में वैश्विक कूटनीति के शिखर पर होगा। सितंबर 2023 तक भू-राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा से संबंधित संगठन ‘शंघाई सहयोग संगठन’ और विश्व जीडीपी में 85 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले शक्तिशाली आर्थिक समूह ‘जी-20’ की नवंबर 2023 तक भारत अध्यक्षता करेगा। इससे पहले जून 2022 में प्रधानमंत्री मोदी जर्मनी स्थित जी-7 की बैठक में बतौर अतिथि आमंत्रित थे। यह हमारे देश की शक्ति है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गूंज्यमान “यह युद्ध का दौर नहीं” यूक्रेन पर रूस की ओर से परमाणु हमले की संभावना को टालने का वैश्विक उपक्रम बना है।

दुनिया में भारत की बढ़ती स्वीकार्यता की झलक अमेरिकी खुफिया एजेंसी ‘सीआईए’ के अध्यक्ष विलियम बर्न्‍स के हालिया वक्तव्य के साथ विश्व के सबसे शक्तिशाली अमेरिकी राष्ट्रपति के ‘ओवल कार्यालय’ में लटकी एक तस्वीर में मिलती है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो एक साथ दिख रहे हैं। यह सम्मान केवल व्यक्तिगत नहीं, अपितु एक राष्ट्र के रूप में भारत के प्रति आए आमूलचूल बदलाव को रेखांकित करता है। 2015 से प्रतिवर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने से लेकर वैश्विक प्रतिबंधों के बीच रूस से भारत द्वारा अपनी आवश्यकता हेतु ईंधन का आयात, अमेरिकी आपत्ति के बाद भी रूसी एस-400 की खरीद जारी रखना और रूस के विरुद्ध खुलकर ना जाने के बाद भी रूस-विरोधी शक्तिशाली देशों से अपने संबंध कमजोर नहीं होने देना— इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

आखिर यह कैसे संभव हुआ? इसके पीछे भारत में मई 2014 से प्रचंड बहुमतधारी और राजनीतिक इच्छाशक्ति से परिपूर्ण केंद्र सरकार की वे विदेशी-घरेलू नीतियां, जनकल्याणकारी योजनाएं (वैश्विक वैक्सीन मैत्री सहित) और अभूतपूर्व घटनाक्रम (सामरिक सहित) हैं, जिनके बल पर भारत का इकबाल सदियों बाद दुनिया में पुन: स्थापित हो रहा है। विदेशी आक्रांताओं के घृणा प्रेरित चिंतन और गुलाम मानसिकता से ग्रस्त पूर्ववर्ती दृष्टिकोण को पीछे छोड़ते हुए आज भारत विदेशी मापदंड-एजेंडे के अनुरूप चलने के बजाय अपने हितों को केंद्र में रखकर शेष विश्व के लगभग सभ्य देशों से अपनी शर्त पर संबंध प्रगाढ़ कर रहा है। यही नहीं, अपनी मूल सनातन संस्कृति के अनुरूप भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ मूलमंत्र के साथ विश्व कल्याण को सर्वोपरि रखते हुए विभिन्न देशों (श्रीलंका-अफगानिस्तान सहित) को रसद-वित्तीय आपूर्ति करके संकट से भी बचा रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी भारत की प्रगति संतोषजनक है। विगत साढ़े आठ वर्षों में जम्मू-कश्मीर और पंजाब में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष भारत में कहीं भी कोई बड़ा आतंकवादी हमला नहीं हुआ है। सीमा पर दुस्साहस करने पर पाकिस्तान-चीन को उन्हीं की भाषा में उत्तर दिया जा रहा है। धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण के बाद सीमापार से घुसपैठ और आतंकवादी घटनाओं में बड़ी कमी आई है। वामपंथ प्रेरित नक्सली हमलों में भी 70 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई है। हमारे कदम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, किंतु अभी हमें एक लंबी दूरी तय करनी है।

वर्ष 2023 दुनिया के लिए कैसा होगा, यह चीन और रूस पर निर्भर करता है। पिछले दो दशकों से चीन वैश्विक आर्थिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कई छोटे-बड़ों देशों की भांति भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 15% से अधिक है। अपने साम्राज्यवादी चिंतन के कारण चीन के पहले ही विश्व के कई देशों (भारत-अमेरिका सहित) से तनावपूर्ण संबंध हैं, ऐसे में वहां कोरोना ने वीभत्स रूप लिया, तो विश्व में आपूर्ति ठप हो सकती है। इसी प्रकार यदि रूस-यूक्रेन युद्ध जारी रहा, तो यह दुनिया को और गंभीर संकट में पहुंचा सकता है।

जहां तक बात भारत की है, तो सरकार और समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अपनी क्षमता के साथ आतंरिक-बाह्य चुनौतियों— विशेषकर मजहबी कट्टरता और विकास-विरोधी आंदोलनों से अवगत है। केरल में निर्माणाधीन विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के विरुद्ध चर्च प्रेरित हिंसक प्रदर्शन के साथ 21-28 जून 2022 के बीच अमरावती में उमेश कोल्हे और उदयपुर में कन्हैयालाल की जिहादियों द्वारा नृशंस हत्या— इसके बड़े प्रमाण हैं। आशा है कि वर्ष 2022 की तुलना में 2023 अधिक मानवीय, कल्याणकारी और शांतिमय होगा।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *