भारत के 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं- सरसंघचालक

भारत के 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं- सरसंघचालक

भारत के 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं- सरसंघचालक भारत के 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं- सरसंघचालक 

देहरादून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं। हमें धर्म और संस्कृति को आचरण में लाना आवश्यक है। धर्म को प्रत्यक्ष रूप से आचरण में उतारना होगा। सरसंघचालक परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के जन्म उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे।

सरसंघचालक ने कहा कि हमारी संस्कृति श्रेष्ठ संस्कृति है, परन्तु भारतीय संस्कृति को उत्थान के लिए प्रयत्न करना होगा। सनातन धर्म पर हमारी सृष्टि है, धर्म नहीं तो सृष्टि नहीं। अतः उसे पहचान कर उस पर चलने वाले सुखी रहेंगे। आज विश्व भर में पर्यावरण पर चर्चा हो रही है, हमें उसके लिए कार्य करना पड़ रहा है। हमारी भूमि में सब कुछ है, 6 हजार वर्षों से हम खेती कर रहे हैं, जो बातें विज्ञान के लिए उपयोगी हैं, वह हमारे वेदों में उपलब्ध हैं। हमारे पास पहले से ही ज्ञान भी है और विज्ञान भी है। उसके बावजूद सनातन धर्म अपना काम करता है। सनातन धर्म अपने विधि-विधान के अनुसार अपना कार्य करेगा। उसे पहचानकर हमें उन संस्कारों को स्वीकार कर चलना होगा तो हम सुखी रहेंगे। धर्म को हमारी आवश्यकता नहीं है, परन्तु हमें धर्म की आवश्यकता है।

सरसंघचालक ने कहा कि उनको अपना जन्मदिन मनाने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु यह हमारी आवश्यकता है कि वह जो कार्य कर रहे हैं, उसे अपने जीवन में हम लेकर आएं। संतों के आचरण में धर्म रहता है, धर्म सर्वत्र कार्य करता है। संत एकांत में आत्मसाधना और समाज में लोक साधना करते हैं। जन्मदिवस के अवसर पर हमारे लिए एक संदेश है कि हम अपने स्थान पर रहकर ही कुछ करें। उन्होंने कहा कि धर्मो रक्षति रक्षितः, हमें अन्तिम लक्ष्य तक पहुंचना है। यही संकल्प लेकर यहां से जाएं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने जगद्गुरू शंकराचार्य महाराज से लेकर महामंडलेश्वर स्वामी असंगानन्द महाराज की परम्परा को प्रणाम करते हुए सभी संतों का अभिनन्दन करते हुए कहा कि गंगा के इस पावन तट और हिमालय की पवित्र वादियों से एक आह्वान करने का समय आ गया है। भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री भारत का मान पूरे विश्व में बढ़ा रहे हैं। उन्हें यह संस्कृति और संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले हैं, क्योंकि यह व्यक्ति की नहीं वैश्विक संस्था है। भारत ही पूरे विश्व को शान्ति का मंत्र दे सकता है क्योंकि भारत एक जमीन का टुकड़ा नहीं, शान्ति की भूमि है। भारत का मंत्र ही है – वसुधैव कुटुम्बकम्। यहां बात सत्ता की नहीं सत्य की है। समय-समय पर सनातन के सूर्य को ढंकने के लिए बादल आते रहे हैं, परन्तु कोई ढंक नहीं पाया। उन्होंने कहा कि हम संकल्प लें कि इस मातृभूमि के मान को सदैव बनाए रखेंगे। हम विकास और विरासत को साथ-साथ लेकर चलें। स्वामी जी ने कहा कि यह प्राकट्य महोत्सव नहीं, बल्कि पर्यावरण महोत्सव है। इसलिए पर्यावरण का दीप जलाए रखें।

इस अवसर पर जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज ने कहा कि विगत कुछ वर्षों से योग, आयुर्वेद और भारत की विभिन्न विधाओं से पूरा विश्व परिचित हुआ है। पूरे विश्व में तेजी से सकारात्मक रूप से प्रसारित होने वाली संस्कृति भारत की संस्कृति है। स्वास्थ्य, सौन्दर्य, समाधान और आनन्द देने वाली संस्कृति भारत की संस्कृति है। भारत की संस्कृति हमें भय की ओर नहीं, बल्कि भाव व स्वभाव की ओर ले जाती है। वृक्ष धरा का श्रृंगार है, इसलिए इनका रक्षण करें। प्रकृति की पूजा केवल भारत में देखी जा सकती है।

कथाकार संत मुरलीधर महाराज ने कहा कि संसार में दो तरह का जन्म होता है, एक भोगने के लिए और एक उद्धार के लिए। संतों का जन्म मानवता और प्रकृति के उद्धार के लिए होता है। हम सब पूज्य स्वामी जी को पर्यावरण की सेवा कर अपना उपहार प्रदान करें।

विहिप के अन्तरराष्ट्रीय संरक्षक दिनेश ने सर्वमंगल की कामना करते हुए कहा कि मैं स्वामी महाराज को उनकी युवावस्था से जानता हूं, तब भी उनमें यही तन्मयता थी, वही तन्मयता आज पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही है। महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने कहा कि आज महाराज का आर्विभाव दिवस है, उन्होंने भारत के कोने-कोने और समुद्र पार वैदिक सनातन संस्कृति को पहुंचाया है। आज संकल्प लें कि हम अपने जीवन का एक दिन अपने गुरु को दें, तो इस प्रकृति का उद्धार होगा। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानन्द महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में पहुंचाने का अद्भुत कार्य किया है। पूज्य संतों की साधुता और सरलता अद्भुत है। संत पूरे विश्व को नवजीवन प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने नदियों में अविरल और निर्मल जल व पौधों के रोपण हेतु अद्भुत कार्य किया है।

भारत के 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी के मनके हैं- सरसंघचालक

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