भारत की विश्व कल्याण की भावना का प्रभाव इस दौर में दिखाई देता है
प्रीति शर्मा
वर्ष 2019 से पहले सामान्य बोलचाल में जब ऐसा कहा जाता था कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं तो गर्व होता था लगता था विज्ञान ने कितनी प्रगति कर ली है। किंतु जब 2020 की शुरुआत हुई तो विश्व में एक हलचल सी सुनाई दी। एक नए वायरस – कोरोना का नाम बताया गया। देखते ही देखते आधी से अधिक जनसंख्या को जब तक उसका नाम ठीक से बोलना आया, तब तक वह विश्व की अर्थव्यवस्था ही नहीं सामान्य जीवनचर्या को भी अपंग बना चुका था। और आज तक संपूर्ण विश्व इस चुनौती के समक्ष संघर्ष कर रहा है।
भारत जो सदैव अपनी वसुधैव कुटुंबकम की नीति के साथ विदेश संबंधों को लयबद्ध रखता रहा है, इसी क्रम में वर्ष 2020 में भारत ने परंपरागत रूप से अपने पड़ोसी देशों तत्पश्चात संपूर्ण विश्व में आर्थिक सहयोग तथा कोरोना की दवा भेजकर संपूर्ण विश्व को परिवार मानने की आदि परंपरा का पालन किया। जिसकी विश्व भर में सराहना भी की गई और भारत को संकटमोचक के रूप में जाना गया। भारत ने लगभग 150 देशों को कोविड-19 की औषधि निर्यात की जो महामारी के गहन संकट के बीच ‘नर सेवा नारायण सेवा’ के मंत्र का पालन करने की इच्छा रखने वाले भारतीय संस्कारों की शक्ति एवं मंशा को इंगित करता है।
ऐसे कठिन दौर में भारत के आयुर्वेद और आध्यात्म की सुगंध संपूर्ण विश्व में आने लगी जो कोविड-19 से निपटने में सहायक भी रही। किंतु ऊंची इमारतों और घनी जनसंख्या से पटे बड़े शहरों में न जाने कब यह वायरस अपने रूपांतरित स्वरूप में सामने आने लगा और महामारी का संकट अनियंत्रित होने लगा। आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत कोरोना महामारी के बढ़ते मरीजों और ऑक्सीजन की भारी कमी से जूझ रहा है।
ऐसे युग विजयी आध्यात्मिक राष्ट्र के सहयोग के लिए आज संपूर्ण विश्व एक मंच पर आकर खड़ा हुआ है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, आयरलैंड जैसे देशों ने भारत की सहायता करने के लिए आश्वासन दिया है जो एक आशावादी कदम है।
यथार्थवादी अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दौर में राजनीतिक संबंधों का आधार मुख्यतः आर्थिक एवं वित्तीय सहायता होता है या यूं कहें कि आर्थिक संबंधों एवं पारस्परिक सहायता की विदेश नीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों का बीमा है। इसका स्पष्ट उदाहरण हम भारत और विश्व के बीच वर्तमान में बन रहे समीकरणों में देख सकते हैं। भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय कोविड सहायता कहीं ना कहीं एकात्म मानव सिद्धांत का संकेत तो देता ही है साथ ही वर्तमान अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रगाढ़ता की आवश्यकता को भी सुनिश्चित करता है।
आधुनिक विश्व में प्रत्येक देश के रणनीतिक हितों की रक्षा पारस्परिक सहयोग से ही संभव है। और विश्व गुरु भारत ने दूसरे देशों के समक्ष क्षमताओं से बढ़कर सहायता करने की उदारता के साथ मानवता के प्रति दायित्व का अत्यंत सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया जिसका परिणाम ही है कि आज भारत इस महामारी से निपटने के लिए अकेला नहीं है। किसी भी गंभीरतम समस्या से निपटने हेतु ‘वैश्विक मैत्री कवच’ निर्माण की भारत की क्षमताओं के संकेत स्पष्ट परिलक्षित हैं जो विश्व पटल पर भारत की सुदृढ़ स्थिति को बनाए रखने में सहायक भी होगा।