अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्नअखिल भारतीय साहित्य परिषद की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

नीम का थाना। सीकर जिले के नीम का थाना में अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान की इकाई नीम का थाना द्वारा भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में साहित्य की भूमिका विषय पर 28-29 दिसम्बर 2022 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में उद्घाटन एवं समारोप सत्र के अतिरिक्त पांच तकनीकी सत्र भी रखे गये, जिनमें वक्ताओं ने स्वाधीनता आन्दोलन में साहित्य की भूमिका को अपनी अपनी विचार शैली के अनुसार प्रतिपादित किया।

उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि यह स्वाधीनता का अमृत महोत्सव केवल रस्म अदायगी मात्र नहीं है। यदि इतना होता तो हम ये राष्ट्रीय संगोष्ठियां नहीं करते। इस अमृत महोत्सव को मनाने के पीछे कुछ उद्देश्य हैं, जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन्होंने 1857 स्वतंत्रता संग्राम की पुस्तक को पढ़ा है, उन्हें ज्ञात होगा कि अपनी पहचान, भाषा, वेशभूषा, अस्मिता, धर्म को कैसे बचाये रखना है। आज हमारी स्थिति किस प्रकार की है। हमने अपने संस्कारों, सरोकारों, भाषा यहां तक कि आचार व्यवहार को ही छोड़ दिया है। सिर्फ नाम के सनातनी रह गये है। हमें स्वाधीनता तो मिली, लेकिन वैचारिक स्वाधीनता अभी बाकी है। जिसके लिए हमारे साहित्यकारों, विचारकों, पत्रकारों ने अपना सब कुछ होम कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि हमारी सनातन संस्कृति ही संसार की पहली गौरवमयी संस्कृति है। जिसके पुनः स्थापित होने में हम सब की श्रेष्ठता है।

उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय साहित्य परिषद राजस्थान के अध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा ने विषय प्रर्वतक के रूप में बोलते हुए कहा कि स्वाधीनता आन्दोलन में साहित्यकारों की बहुत बड़ी भूमिका थी। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से आम जनमानस में ऊर्जा भरने का काम किया।

प्रथम तकनीकी सत्र में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राजस्थान के संगठन मंत्री डॉ. विपिन चन्द्र पाठक ने कहा कि व्यक्ति के विचारों के पतन से ही समाज व राष्ट्र का भी पतन होता है। विचारों की श्रेष्ठता से ये दोनों समृद्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में निज भाषा, निज वेषभूषा, निज स्वाभिमान का गौरव जब प्रज्ज्वलित हुआ तो देश का प्रत्येक नागरिक जाग उठा। आज भी स्व के स्वाभिमान को प्रज्ज्वलित करने की आवश्यकता है। इसी सत्र में डॉ. राहुल मिश्र व डॉ. रविन्द्र उपाध्याय ने भी विचार व्यक्त किये। द्वितीय तकनीकी सत्र में डॉ. जनार्दन यादव व जितेन्द्र सिंह आदि ने भी विषयान्तर्गत अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन रामस्वरूप रावतसरे ने किया।

तृतीय सत्र में वक्ता के रूप में साहित्यकार डॉ. पूनम माटिया , डॉ. सारिका कालरा आदि ने विषय के अनुरूप अपने विचार रखे। इस सत्र का संचालन श्रीमती मोनिका गोड़ ने किया।

चतुर्थ तकनीकी सत्र में डॉ. सुनील पाठक अध्यक्ष अ.भा.सा.प. उत्तराखंड, ऋतुराज सिंह सहायक आचार्य देव संस्कृति विवि हरिद्वार, डॉ. ममता जोशी उदयपुर व डॉ. ख्याति पुरोहित ने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में साहित्य की भूमिका विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। सत्र का संचालन संतोष भार्गव ने किया।

इसी प्रकार पंचम सत्र में डॉ. जितेन्द्र कुमार, उमराव लाल वर्मा आदि साहित्यकारों के उद्बोधन हुए। इस सत्र का संचालन राजेन्द्र राज तरुण ने किया। दो दिवसीय कार्यक्रम के समारोप सत्र में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर थे। इस सत्र का संचालन डॉ. केशव शर्मा ने किया।
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहियकारों, विचारकों ने गहराई से विषय पर मंथन किया और कहा कि हमें अपने गौरवमयी सांस्कृतिक इतिहास को पुनः स्थापित करने एवं इसे भावी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए।

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