भारत को किससे खतरा?
बलबीर पुंज
चीन संबंधित घटनाक्रम सदैव अचंभे से भरे होते हैं। ऐसा ही एक खुलासा, अमेरिकी मीडिया ने किया है। यह विवरण भारत के लिए दो कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला— जो जानकारी सामने आई है, उसे लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) फरवरी 2021 से जांच कर रहा है। जब इस मामले में कार्रवाई प्रारंभ हुई थी, तब इसे स्वयंभू सेकुलरवादियों (कांग्रेस सहित), वाम-उदारवादियों और मीडिया के एक वर्ग ने ‘लोकतंत्र पर हमला’ कहकर परिभाषित कर दिया। दूसरा— जिस अमेरिकी समाचार पत्र ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के भारत-विरोधी एजेंडे पर देश का विकृत कुनबा अक्सर आंख मूंदकर विश्वास करता है, वह उसकी हालिया रिपोर्ट पर दम खींचे बैठा है। आखिर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने ऐसा क्या प्रकाशित कर दिया?
इस अमेरिकी समाचार पत्र ने 5 अगस्त के अंक में खुलासा किया कि अमेरिकी व्यवसायी नेविल रॉय सिंघम के साथ न केवल चीनी सरकार के निकटवर्ती संबंध हैं, बल्कि वह भारत में ‘न्यूजक्लिक’ नामक वामपंथी प्रोपेगेंडा पोर्टल का वित्तपोषण भी कर रहा है। नेविल आईटी कंपनी थॉटवर्क्स का संस्थापक है और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीसीपी) के प्रोपेगेंडा फैलाने वाले प्रखंड के लिए काम करता है। आरोप है कि नेविल ने ‘न्यूजक्लिक’ को भारत के विरुद्ध विषवमन के लिए वर्ष 2018-21 के बीच 38 करोड़ रुपये दिए थे। इसी से संबंधित वित्तीय कदाचार की जांच, ईडी कर रही है।
‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के अनुसार, “गैर-लाभकारी संगठनों… की आड़ में नेविल, चीन में वामपंथी सरकार के अधीनस्थ मीडिया के साथ मिलकर काम करता है और चीन के प्रोपेगेंडा को दुनियाभर में फैलाने हेतु वित्तपोषण कर रहा है। इसमें नेविल भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका आदि देशों में प्रगतिशील होने के बहाने, चीन के मुद्दों को लोगों के बीच फैलाने में सफल भी हुआ है।”
चीनी प्रोपेगेंडा के दो पक्ष होते हैं। पहला— झूठ-सच के आधार पर चीन के पक्ष में वातावरण बनाना। दूसरा— विरोधी/शत्रु देश की भौगौलिक-आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर प्रश्नचिन्ह लगाना। इसका सीधा उद्देश्य— शत्रु/विरोधी देश को भितरघात के माध्यम से बिना किसी सैन्य-युद्ध के क्षति पहुंचाना या उसे अंदर से खोखला करना होता है। बकौल ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’, “चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने शासनकाल में सरकारी मीडिया तंत्र का तेजी से विस्तार किया है। इसके लिए चीन ने विदेशी मीडिया संस्थानों के साथ मिलकर प्रभावशाली लोगों को अपने प्रचार तंत्र में शामिल किया है, जिससे चीनी प्रोपेगेंडा को स्वतंत्र मीडिया सामग्री के रूप में दिखाया जा सके। ऐसे संगठन चीनी सरकार की बातों को दोहराते हैं या इनके विचार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से मेल खाते हैं।” भारत को खतरा केवल चीन तक सीमित नहीं है। वर्ष 2020 में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने न केवल खुलेआम भारतीय लोकतंत्र को नष्ट करने की चुनौती दी थी, बल्कि राष्ट्रवाद से प्रेरित मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए भारी वित्तपोषण करने की घोषणा भी की थी।
‘न्यूजक्लिक’ पर चीन का भोंपू होने का आक्षेप, कोई जुमला नहीं है। इसने अपने यूट्यूब चैनल पर 2 अक्टूबर 2019 को चीनी सरकार के मुद्दों से जोड़ते हुए वीडियो में कहा था, “चीन का इतिहास श्रमिक वर्गों को प्रेरित करता रहा है।” ‘न्यूजक्लिक’ का यह आकलन तब है, जब मानवाधिकारों पर चीन का रिकॉर्ड भयावह है। इसका कारण चीन के दिलचस्प मिश्रण में मिलता है। जहां चीन स्वभाव से साम्राज्यवादी है, तो राजनीतिक अधिष्ठान हिंसा केंद्रित वामपंथी है और उसकी आर्थिकी अमानवीय पूंजीवाद पर आधारित है। इसी जहरीले कॉकटेल का परिणाम है कि अवसाद और आत्महत्या के मामले में चीन, दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। विफल ‘जीरो-कोविड’ रूपी साम्यवादी नीतियों से चीन की जनता त्रस्त है। शिनजियांग प्रांत में एक करोड़ से अधिक उइगर मुस्लिम, तो तिब्बत में लाखों बौद्ध अनुयायी का राजकीय सांस्कृतिक संहार चरम पर है। स्वयं को प्राचीनकाल से एक विशाल सभ्यता और उसे विश्व के लिए ईश्वरीय वरदान मानने की सनक के कारण चीन का 1962 से भारत, साथ ही जापान सहित कई देशों के साथ दशकों से सीमा विवाद है। इसी मानसिकता से जनित डोकलाम (2017), गलवान (2020-21) और तवांग (2022) प्रकरण ने भारत-चीन संबंध को और अधिक तनावग्रस्त बना दिया है। चीन इन्हीं कुकर्मों को अपनी प्रोपेगेंडा मशीनरी से मिटाने का प्रयास करता है।
वास्तव में, चीन का अंतिम लक्ष्य अगले कुछ दशकों में प्रमुख प्रतिद्वंदी— अमेरिका से दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र होने का ताज छीनना है। इसके लिए वह सुदूर प्रशांत, पश्चिमी एशियाई देशों के साथ रूस के साथ नया गठजोड़, तो भारत-अमेरिका के प्रगाढ़ होते संबंधों का विरोध करता है। अपनी इस महत्वकांक्षा की पूर्ति हेतु चीन, जापान के बाद एशिया में एक ‘अलग-थलग’ और ‘मित्र-विहीन’ भारत चाहता है, जो उसके षड्यंत्रों में अवरोधक नहीं बने। दुर्भाग्य से इस उपक्रम में भारत स्थित मीडिया से लेकर राजनीतिज्ञ समूह का एक वर्ग, चीन का प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से साथ दे रहा है।
इस पृष्ठभूमि में चीन की वामपंथी सरकार से पैसा लेकर भारत-विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप, राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता और एकता को गहरे खतरे में डाल देता है। भारत के लिए यह संकट इसलिए भी और गंभीर है, क्योंकि जिन बाह्य शक्तियों ने भारत में अलगाववाद का बीजारोपण किया था— उनमें शामिल वामपंथी, जिहादी और इंजीलवादी आज भी खंडित भारत में ‘सेकुलरवाद’ के नाम पर फल-फूल रहे हैं।
विदेश में बैठे हमलावरों को चिन्हित करना, बहुत आसान है। परंतु जो लोग भारत में बसते हैं, स्वयं को भारतीय कहते हैं और भारतीय पासपोर्ट रखते हैं, उसका एक वर्ग या तो देशविरोधी शक्तियों के हाथों धन के लोभ में बिक जाता है या बाहरी विचारधारा का आवरण ओढ़कर भारत-विरोधी हो जाता है या फिर मजहबी कारणों से देश की बहुलतावादी संस्कृति से घृणा करने लगता है। भारत में माओवादी, जिन्हें नक्सली (शहरी नक्सली सहित) भी कहा जाता है और जो 1967 से देश में सक्रिय हैं, वे घोषित रूप से चीन के भाड़े के टट्टू ही तो हैं। ऐसे में ‘न्यूजक्लिक’ संबंधित खुलासे पर आश्चर्य कैसा?
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)