विभाजन की विभीषिका : भारत जलता रहा, षड्यंत्र होते रहे…
विभाजन की विभीषिका : भारत जलता रहा, षड्यंत्र होते रहे…
माउंटबेटन जल्द ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहते थे। उन्होंने 3 जून 1947 को अपनी योजना प्रस्तुत की, जिसके अनुसार भारत को धर्म के आधार पर विभाजित कर पाकिस्तान बनाने का खाका प्रस्तुत किया गया। इस कुख्यात योजना को ‘माउंटबेटन योजना’ के नाम से जाना जाता है।
माउंटबेटन योजना के मुख्य बिंदु –
(1) पश्चिम पाकिस्तान में पश्चिमी पंजाब, सिन्ध, और संभवतः उत्तर पश्चिम सीमा और बलूचिस्तान शामिल होंगे, जिनकी जनसंख्या 25 मिलियन (18 मिलियन मुसलमान) थी।
(2) 44 मिलियन (31 मिलियन मुसलमान) की जनसंख्या के साथ पूर्वी बंगाल और असम के सिलहट जिले को शामिल करते हुए पूर्वी पाकिस्तान बनाया जायेगा। एक हजार मील की दूरी पर ये दोनों क्षेत्र, 70 लाख की जनसंख्या के साथ पाकिस्तान राज्य अथवा संघ का गठन करेंगे।
13 अगस्त 1947 की सुबह, लुईस माउंटबेटन अपनी पत्नी एडविना के साथ कराची पहुंचे। अविभाजित भारत में वायसराय के नाते यह उनकी अंतिम अधिकारिक यात्रा थी। मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी बेगम ने माउंटबेटन दंपति का बहुत ही गर्म-जोशी से स्वागत किया। शहर के गवर्नमेंट हाउस में उनके रुकने का विशेष प्रबंध किया गया, जिसे किसी ‘हॉलीवुड’ फिल्म के सेट की भांति सजाया गया था। रात में ‘सॉफ्ट ड्रिंक्स’ और मधुर संगीत के बीच सभी ने मिलकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाया। अगले दिन माउंटबेटन ने पाकिस्तान की लेजिस्लेटिव असेम्बली के उद्घाटन की रस्म-अदायगी की और दोपहर में दिल्ली वापस जाने के लिए विमान में सवार हो गये।
जब यह विमान पंजाब के सीमावर्ती इलाकों से गुजरा तो वहां का दृश्य एलन कैंपबेल-जॉनसन ने अपनी पुस्तक ‘मिशन विद माउंटबेटन’ में इस प्रकार लिखा है, “जब हम पंजाब की सीमा के ऊपर से गुजर रहे थे, तो हमने कई जगह आग लगी हुई देखी। ये मनहूस रोशनियाँ मीलों तक फैली हुई थीं।” एलन कैंपबेल-जॉनसन उस विमान में माउंटबेटन के साथ ही मौजूद थे।
इसी दिन सुबह 9 बजकर 30 मिनट पर माउंटबेटन को संयुक्त पंजाब के अंतिम गवर्नर, ई. जेंकिस का एक टेलीग्राम मिला, जिसमें उन्होंने लिखा, “शांति व्यवस्था स्थापित करने और रेलवे को सुरक्षित रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त फौज अथवा पुलिस नहीं है। हमें वहां सेना को ‘वॉर डिपार्टमेंट’ की भांति तैनात करना होगा, जिसके पास रेलवे की सुरक्षा भी रहेगी। मुस्लिम लीग नेशनल गार्ड्स लाहौर शहर में सक्रिय है और गैर-मुसलमानों के विरुद्ध अत्यंत हिंसक हो गए हैं।“ 13 अगस्त को ही ई. जेंकिस ने माउंटबेटन को एक लंबा पत्र भी लिखा और स्पष्ट बताया, हमले और हत्याएं इतनी हो रही हैं कि अब सभी घटनाओं पर दृष्टि रखना कठिन हो गया है।”
कुछ ही घंटों के बाद, वायसराय का विमान दिल्ली हवाईअड्डे पर उतर गया और यहां भी 15 अगस्त – स्वाधीनता और उससे सम्बंधित कार्यक्रमों में सभी व्यस्त हो गये। इसी दिन फील्ड मार्शल क्लाउड औचिनलेक ने माउंटबेटन को बताया कि कैसे पूरा पंजाब सांप्रदायिक हिंसा में झुलस गया है। उन्होंने हिन्दू बहुल लाहौर शहर का जिक्र करते हुए बताया, “एक अनुमान के अनुसार लाहौर शहर के दस प्रतिशत घर आग से जल चुके हैं। यह शहर का लगभग पंद्रह प्रतिशत क्षेत्र है।“
उधर दिल्ली से लेकर कराची तक आधिकारिक कार्यक्रमों अथवा उत्सवों में एक-दो सप्ताह और बीत गये। पंजाब से लगातार पत्र, टेलीग्राम, टेलीफोन आते रहे लेकिन मगर अभी तक किसी ने पंजाब को राहत दिलाने का संतुलित प्रयास नहीं किया। अब जब जैसे-जैसे समय बीतने लगा तो समाचार-पत्रों में पंजाब की हिंसक घटनाओं का उल्लेख बड़े पैमाने पर होना शुरू हो गया।
पंजाब के बेकाबू सांप्रदायिक हालातों को संभालने की जिम्मेदारी एक ब्रिटिश सैन्य-अधिकारी थॉमस विनफोर्ड रीस के हाथों में थी। भारतीय समाचार-पत्रों में रीस को निशाना बनाया गया क्योंकि वह हर मोर्चे पर विफल हो गया। मात्र इस एक कारण के लिए आनन-फानन में माउंटबेटन के ‘बेडरूम’ में 27 अगस्त की सुबह एक बैठक हुई, जिसमें माउंटबेटन के अलावा उनके एक ब्रिटिश सहयोगी और वी.पी. मेनन उपस्थित थे। इस बैठक में पंजाब को राहत दिलाने अथवा स्वयं का मूल्यांकन करने के बजाय माउंटबेटन का पूरा ध्यान अपने-आप को और अपने ब्रिटिश अधिकारियों को बचाने पर ही केन्द्रित रहा। जबकि मेनन का सुझाव था कि उन्हें समाचार-पत्रों पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए। फिर भी माउंटबेटन ने शाम चार बजे कुछ संपादकों को बुलाया, उन्हें पहले डराया कि अगर वे मैक्सिको में होते तो अब तक उन्हें उठाकर फेंक दिया जाता। फिर उन्हें एक इशारे से समझाया कि अब सारी जिम्मेदारी भारत की संसद की है।
दरअसल, ई. जेंकिस ने 15 अगस्त को ही माउंटबेटन सहित लन्दन में भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को एक टेलीग्राम भेजकर पंजाब की असंतोषजनक स्थिति से अवगत करा दिया था। इसके उसने अलावा एक सुझाव भी दिया कि अब हालातों से नयी सरकारों को निपटना चाहिए।” कुल मिलाकर अब ब्रिटिश क्राउन और उसकी सरकार सहित अधीनस्थ अधिकारी भारत को सांप्रदायिक हिंसा में झोंककर भागने की पूरी तैयारी कर चुके थे।
31 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने समकक्ष पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ पहली बार पूर्वी पंजाब के दौर पर थे। उनके साथ पत्रकारों की एक छोटी टोली भी थी, जिसमें ‘इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर’ के लेखक दुर्गादास भी उपस्थित थे। वह अपनी इस पुस्तक में उस दिन के घटनाक्रमों का उल्लेख करते हुए लिखते हैं, “हमनें अमृतसर से उड़ान भरी और लायलपुर में उतरे। यहां आधा मिलियन हिन्दू और सिख सुरक्षित भारत पहुँचने की गुहार लगा रहे थे। यह राखी का दिन था, जब हिन्दू बहनें अपने भाई की कलाई पर धागा बांधकर अपनी सुरक्षा का वचन लेती हैं। दर्जनभर महिलायें सर्किट हाउस में आईं और उन्होंने प्रतीकात्मक धागे नेहरू के हाथ में बांध दिए। इससे हम सभी की आँखें नम हो गयीं। फिर हम अपने डकोटा जहाज से लाहौर एयरफिल्ड पहुंचे, जहाँ हमारी भेंट फ्रांसिस मुड़ी और ज्ञानी करतार सिंह से हुई।”
दुर्गादास ने मुड़ी और अपनी बातचीत के एक घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मुड़ी ने मुझसे कहा था, “तुम्हें स्वतंत्रता चाहिए, अब ले लो स्वतंत्रता।”
मुड़ी का यह ताना न सिर्फ उसके अहंकार को दर्शाता है बल्कि बताता है कि ब्रिटिश क्राउन ने भारत के साथ स्वाधीनता के नाम पर कितना बड़ा छल किया था। इसलिए 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश औपनिवेशिकता से भारत स्वाधीन जरूर हुआ, लेकिन इतिहास के पन्नों में इस दिन विभाजन का भी एक अध्याय हमेशा के लिए थोप दिया गया। यह विभाजन सिर्फ सीमाओं के निर्धारण तक सीमित नहीं था बल्कि इसके पीछे हजारों दर्दनाक विभीषिकाएँ भी दर्ज हैं। दुर्भाग्य ऐसा था कि जब तक माउंटबेटन भारत से चला नहीं गया, तब तक पंजाब लगातार सांप्रदायिक हिंसा में जलता रहा।