भारत में क्यों है मंदी की शून्य सम्भावना

भारत में क्यों है मंदी की शून्य सम्भावना

प्रहलाद सबनानी

भारत में क्यों है मंदी की शून्य सम्भावनाभारत में क्यों है मंदी की शून्य सम्भावना

अभी हाल ही में एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निवेश प्रबंधन एवं वित्तीय सेवा कम्पनी मॉर्गन स्टेनली के अर्थशास्त्रियों ने एक प्रतिवेदन जारी कर कहा है कि वित्तीय  वर्ष 2022-23 में भारत एशिया में सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बन कर उभरने जा रहा है। इनके अनुमान के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था वित्तीय  वर्ष 2022-23 में 7 प्रतिशत से अधिक की विकास दर प्राप्त कर लेगी, जो विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी एवं भारत का एशियाई व वैश्विक  अर्थव्यवस्था के विकास दर में क्रमश: 28 प्रतिशत एवं 22  प्रतिशत का योगदान रहने जा रहा है। भारत में सुदृढ़ आर्थिक मांग उत्पन्न होने की प्रबल सम्भावनाएं मौजूद हैं। साथ ही, आर्थिक सुधार कार्यक्रम भी तेजी से लागू किये जा रहे हैं। देश में पर्याप्त मात्रा में युवा श्रम शक्ति मौजूद है एवं व्यापार में लगातार निवेश बढ़ रहा है। अभी हाल ही में ब्लूम्बर्ग द्वारा सम्पन्न किए गए एक सर्वे के अनुसार, कोविड महामारी एवं रूस युक्रेन युद्ध के बीच भारत में मंदी की  शून्य  सम्भावना है, जबकि कई विकसित एवं विकासशील देश भी मंदी की परेशानी से जूझ रहे हैं। यह भारत के लिए एक अच्छी खबर कही जा सकती है।

दरअसल भारत ने पिछले 8 वर्षों के दौरान आर्थिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जिनका प्रभाव अब भारतीय  अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। जो क्षेत्र अभी तक लगभग पूर्णतः आयात पर निर्भर थे, उन क्षेत्रों से भी निर्यात अब बहुत तेज गति पकड़ रहा है। जैसे कि खिलौना उद्योग, सुरक्षा उपकरण निर्माण उद्योग, फार्मा उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, ऑटो उद्योग आदि आदि।

भारतीय खिलौना उद्योग पूरी दुनिया को खिलौने निर्यात कर रहा है और अब भारतीय खिलौना बाजार वैश्विक आकार लेता दिखाई दे रहा है। उद्योग मंडल फिक्की (FICCI) और केपीएमजी (KPMG) की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय खिलौना बाजार वर्ष 2024-25 तक बढ़कर 200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने का अनुमान है। आंकड़ों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले 3 वर्षों में भारत से खिलौना निर्यात में 61 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पहले भारत  घरेलू स्तर पर तैयार खिलौनों का लगभग 400 करोड़ रुपए  का  निर्यात करता था, लेकिन अब यह आंकड़ा 2600 करोड़ रुपये को पार कर गया है।

देश की रक्षा एजेंसियों, विशेष रूप से डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन), द्वारा भारत को रक्षा उपकरणों के निर्यातक देशों की श्रेणी में ऊपर लाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं एवं अब इसके सुखद परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। भारत जल्द ही दुनिया के कई देशों यथा फिलीपींस, वियतनाम एवं इंडोनेशिया आदि को ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्यात करने की तैयारी कर रहा है। कुछ अन्य देशों जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं दक्षिण अफ्रीका आदि ने भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। ध्वनि की गति से तीन गुना तेज, माक 3 की गति से चलने वाली और 290 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइलें भारत-रूस सैन्य सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जमीन, आकाश और समुद्र स्थित किसी भी लॉन्च उपकरण से छोड़े जा सकने वाले ब्रह्मोस की विशेषता यह है कि यह अपनी तरह का अकेला क्रूज मिसाइल है। आज भारत से 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है।  इस सूची में कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान जैसे देश भी शामिल हैं, जिन्हें भारत द्वारा बॉडी प्रोटेक्टिंग उपकरण आदि निर्यात किए जा रहे हैं।

1970 के दशक में अस्तित्व में आया भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग आज देश और दुनिया में नित नये आयाम स्थापित कर रहा है। इंडस्ट्री बॉडी नेस्कॉम की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष आईटी सेक्टर में 15.5 प्रतिशत की विकास दर दृष्टिगोचर होने की पूरी सम्भावना है। आज आईटी सेक्टर में लगभग 50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। जिसमें लगभग 18 लाख महिलाएं शामिल हैं और आईटी सेक्टर का आकार 200 अरब डॉलर से भी अधिक का है। भारत का आईटी सेक्टर जिस तरह से आगे बढ़ रहा है, वो दिन दूर नहीं जब दुनिया की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में बस भारत की ही कंपनियों का नाम शुमार होगा।

सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की तर्ज़ पर ही भारत का इलेक्ट्रॉनिक वाहन बाजार भी बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है। इंडिया एनर्जी स्टोरेज एलायंस (आईईएसए) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 से वर्ष 2030 के बीच भारत का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार 49 प्रतिशत की दर से प्रगति करेगा, इतना ही नहीं इन वाहनों की वार्षिक बिक्री भी 1.7 करोड़ यूनिट तक होने की सम्भावना है। भारत में लीथियम आयन बैटरी की मांग वर्ष 2030 तक सालाना स्तर पर 41 प्रतिशत चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़कर 142 गीगा वॉट तक पहुंच सकती है। घरेलू बाजार में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का 50 प्रतिशत हिस्सा दोपहिया वाहनों की बिक्री का लगभग 4.67 लाख यूनिट के रूप में है। भारत में वर्ष 2021 में ई-रिक्शा की मांग के कारण लेड एसिड बैटरी का हिस्सा 81 प्रतिशत का रहा है।

उक्त वर्णित क्षेत्रों के अलावा अन्य कई क्षेत्रों में भी भारत से निर्यात में लगातार प्रभावशाली वृद्धि दर हासिल की जा रही है, क्योंकि भारत के उत्पादों की पूरी दुनिया में मांग बढ़ रही है। इसीलिए भारत सरकार द्वारा भारत से किए जाने वाले निर्यात को वर्ष 2030 तक दो लाख करोड़ आमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए भारत के 100 भारतीय उत्पादों को ग्लोबल चैंपियन बनाये जाने के प्रयास किए जाएंगे और देशभर में आर्थिक क्षेत्र स्थापित किए जाएंगे। वर्ष 2012-22 में देश का वस्तु व सेवा निर्यात 67500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जिसे 2030 तक 2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिसके लिए बाहरी देशों के साथ लगातार मुक्त व्यापार समझौते किये जा रहे है। उक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद भारत वर्ष 2030 तक विश्व व्यापार के विदेश व्यापार में योगदान देने वाले पहले तीन-चार देशों में शामिल हो जाएगा।

खिलौना उत्पादों एवं रक्षा उत्पादों के साथ ही प्रौद्योगिकी, सूचना तकनीकी, आटोमोबाईल, फार्मा, मोबाइल उत्पादन, नवीकरण ऊर्जा, डिजिटल व्यवस्था, बुनियादी क्षेत्रों का विकास, स्टार्ट अप्स, ड्रोन, हरित ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भी  भारत अपने आप को तेजी से वैश्विक स्तर पर स्थापित कर रहा है।

भारत में लगातार तेज गति से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था और निर्यात में लगातार हो रही चहुमुखी प्रगति तथा देश के पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध विदेशी मुद्रा भंडार के चलते ही वैश्विक आर्थिक संस्थान लगातार यह आभास दे रहे हैं कि भारत में मंदी की सम्भावनाएं  लगभग शून्य ही हैं।

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