जब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान ने निर्दोषों पर गोलियां चलवाईं

जब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान ने निर्दोषों पर गोलियां चलवाईं

भोपाल गौरव दिवस 1 जून पर विशेष

जब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान ने निर्दोषों पर गोलियां चलवाईंजब भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खान ने निर्दोषों पर गोलियां चलवाईं

1 जून, 1949 का दिन था। राजनीतिक गहमागहमी बहुत तेज थी। भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान के राजनीतिक पांसे उनके अनुकूल नहीं पड़ रहे थे। सरदार पटेल की रणनीति और भोपाल रियासत की बहुसंख्यक हिन्दू जनता की मांग के चलते भोपाल रियासत का इस दिन भारत में विलय हो गया। विलय के लिए समझौते पर हस्ताक्षर 30 अप्रैल, 1949 को ही हो गए थे।

हमीदुल्ला खान भोपाल रियासत को स्वायत्त रखना चाहते थे। लेकिन माउंटबेटन ने भोपाल रियासत के स्वतंत्र बने रहने की मांग इस आधार पर खारिज कर दी कि दो देशों के बीच में एक छोटी सी रियासत कैसे अलग रह सकती है। मजबूरी में उन्होंने वर्ष 1947 में भारत में विलय के लिए हामी तो भर दी, लेकिन इसके बाद भी वे भोपाल रियासत के स्वतंत्र अस्तित्व के प्रयासों में लगे रहे। इसके लिए जब उन्होंने अड़ियल रुख अपनाया तो दिसंबर 1948 में भोपाल की बहुसंख्यक हिन्दू जनता सड़कों पर आ गई और शंकर दयाल शर्मा रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल रियासत के भारत में विलय के लिए एक जन आंदोलन की शुरुआत हुई। आंदोलन ने जोर पकड़ा तो नवाब ने इसे कुचलने के लिए आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा दीं, अनेक निर्दोष मारे गए। इसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने हस्तक्षेप किया और वीपी मेनन को भोपाल भेजा। मेनन ने भोपाल के नवाब पर दबाव बनाना शुरू किया। इधर नवाब ने 1948 में बैंक ऑफ भोपाल की एक शाखा कराची में खोल दी और यहॉं का सारा पैसा वहां ट्रांसफर कर दिया। जिसके चलते बैंक की भोपाल शाखा का दिवाला निकल गया और लोग कंगाल हो गए। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में अपना राजनीतिक भविष्य तलाशना शुरू कर दिया।

उन दिनों पाकिस्तान में भी राजनीतिक उथल पुथल मची हुई थी। चुनाव होने वाले थे। सरकार के उच्च अधिकारियों के फोन रिकॉर्ड किए जा रहे थे। खुफिया पुलिस के कार्यालय पर छापा पड़ने से यह बात सामने गई। इस घटना के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता इतनी बढ़ गई कि चुनाव रोकने पर विचार होने लगा। उन दिनों जनरल (रिटायर्ड) इस्कंदर मिर्जा वहां के राष्ट्रपति थे। वे स्वयं को बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री फ़िरोज ख़ान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। उन्होंने हमीदुल्ला खान को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला कर लिया। अगली सुबह हमीदुल्ला खान कराची पहुंच भी गए। हालांकि बाद में हालात कुछ ऐसे बने कि नवाब ने कोई भी दायित्व लेने से मना कर दिया। वे फिर भारत गए। एक जून 1949 को भोपाल भारत में शामिल हुआ और भोपाल में नवाबी झंडे को उतार कर पहली बार भारतीय तिरंगा लहराया गया।

भारत में विलय के बाद नवाब हमीदुल्लाह इंग्लैंड चले गए। बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान ने पाकिस्तान में रहने का निर्णय लिया। उनका निकाह कुरवाई के नवाब से हुआ थापाकिस्तान जाने के बाद वहां की सरकार ने उन्हें ब्राजील में अपना राजदूत नियुक्त कर दिया। नवाब की छोटी बेटी साजिदा सुल्तान का निकाह हरियाणा के पटौदी रियासत के नवाब से हुआ। उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी भोपाल के नवाब कहलाए। उन्होंने शर्मिला टैगोर से निकाह किया। सैफ अली खान उन्हीं के बेटे हैं।

नवंबर, 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ और मध्य प्रदेश राज्य बना तो इसकी राजधानी को लेकर काफी खींचतान हुई। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और रायपुर पांच विकल्प थे। राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम प्रस्तावित किया। लेकिन भारत सरकार ने भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया क्योंकि सरकार विंध्य प्रदेश के लिए चल रहे आंदोलन को कमजोर करना चाहती थी। जबलपुर राजधानी बनता तो महाकौशल के साथसाथ विंध्य क्षेत्र की राजनीति का भी केंद्र होता। सरकार ऐसा नहीं चाहती थी। जबलपुर को राजधानी नहीं बनाने के पीछे यह तर्क भी दिया गया कि जबलपुर में सरकारी कार्यालयों और कर्मचारियों के लिए पर्याप्त इमारतें और जगह उपलब्ध नहीं है। खैर! भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी बना। उस वर्ष जबलपुर में दीवाली नहीं मनाई गई, पूरा शहर अंधेरे में रहा।

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