अनुसूचित जाति से मुस्लिम, ईसाई बनने वालों को आरक्षण देना न्याय विरुद्ध

अनुसूचित जाति से मुस्लिम, ईसाई बनने वालों को आरक्षण देना न्याय विरुद्ध

विजय शंकर तिवारी

अनुसूचित जाति से मुस्लिम, ईसाई बनने वालों को आरक्षण देना न्याय विरुद्ध अनुसूचित जाति से मुस्लिम, ईसाई बनने वालों को आरक्षण देना न्याय विरुद्ध

मतांतरण की विभिन्न गतिविधियों से अपनी संख्या बढ़ाकर मुसलमानों ने भारत का विभाजन तक करा दिया। मिशनरीज ने अपनी संख्या बढ़ाकर इंडोनेशिया से पूर्वी तिमोर को अलग करवा लिया, इसी प्रकार हमारे देश में भी पूर्वोत्तर भारत के मतांतरण करके ईसाई बहुल हो गए राज्यों में विगत कई दशकों से अलगाववाद और आतंकवाद चलाया जा रहा है। मुस्लिम बहुल हो गई कश्मीर घाटी में आतंकवाद और जिहादी कत्लेआम से पूरा देश त्रस्त रहा है। पश्चिम बंगाल, आसाम, बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के अनेक जिले मुस्लिम बहुल हो जाने से वहाँ भी आतंकवादी घटनाएँ होती रहती हैं। मुसलमान व ईसाई लंबे समय से भारत में मतांतरण का कुचक्र चला रहे हैं। यहाँ तक कि कई लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के साथ ही वे साधनों का दुरुपयोग करके मतांतरण के कार्य में तेजी ला रहे हैं। आरक्षण की व्यवस्था भी इनके मतांतरण में सहायक हो जाए, ऐसा कुचक्र लंबे समय से रचा जा रहा है। पहले ईसाई लोग मतांतरण करते ही, मतांतरित हिन्दू का नाम बदल देते थे, सरकारी दस्तावेजों में उसका पंथ बदलवा देते थे। किन्तु अब उन्होंने इस रणनीति को बदल दिया है। अब वे मतांतरित लोगों का न तो नाम बदलते हैं और न ही सरकारी दस्तावेज में उनका पंथ। ऐसा करने से अनुसूचित जाति के लोग मतांतरण होने के बाद भी अनुसूचित जाति को दिए जाने वाले आरक्षण का लाभ उठाते रहते हैं। संविधान के अनुसार मतांतरित लोगों की जातिगत पहचान समाप्त हो जाती है, ऐसे में कुछ रणनीतिक धोखाधड़ी से मतांतरण का जब वो लाभ लेते हैं, तो व्यवहार में वह अनुसूचित जाति के संविधान प्रदत्त आरक्षण के अधिकारों का हनन है, उस अधिकार पर डाला गया डाका है। अन्याय का यह क्रम तत्काल रुकना चाहिए।

जब मतांतरित लोगों को आरक्षण मिलता है, तो इससे मतांतरण करने के लिए उस समुदाय के लोगों में प्रोत्साहन का वातावरण बनता है। इससे जनता के अनेक मौलिक अधिकारों का हनन होता है। संविधान द्वारा हिन्दू जातियों को दी गई व्यवस्था ही यदि मतांतरण का कारण बन जाए, तो देश के कानून निर्माताओं को और कानून की संरक्षक न्यायपालिका को इस विषय पर गंभीर विचार करना होगा। मतांतरण की इस रणनीतिक धोखाधड़ी में संलिप्त लोगों की पहचान करके उन पर आपराधिक मुकदमे चलाने चाहिए, दोषी सिद्ध हो गए लोगों को कठोर दंड दिया जाना चाहिए और ऐसी घटनाओं की पुनरावृति न हो पाए, इसके लिए संसद और राज्यों की विधायिका में मतांतरण विरोधी कठोर कानून बनाने चाहिए।

इस्लाम और ईसाइयत द्वारा हिन्दू जनसंख्या को अपने पंथ में मतांतरण करने में लिप्त लोग मतांतरण कर के मुसलमान और ईसाई बने अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अनुसूचित जाति और जनजाति के रूप में मान्य करके आरक्षण देने की लम्बे समय से पैरवी कर रहे हैं। जब उनकी बातें इस प्रकार नहीं मानी गईं, तो क्रिप्टो क्रिश्चियन का छल किया गया और पसमांदा मुसलमानों का मुद्दा उठाया जाने लगा। ये लोग गरीब मुसलमानों को पसमांदा शब्द से संबोधित करके उनको आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात करने लगे। इसके लिए केन्द्र सरकार ने बालकृष्णन आयोग का गठन किया है, जो देशभर में जाकर यह पता करेगा कि ईसाइयों और मुसलमानों के गरीब लोगों को आरक्षण का लाभ दिया जाए या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार आरक्षण की निर्धारित सीमा से अधिक आरक्षण देना संभव नहीं है, तो ऐसे में किसी नये समूह को अलग से आरक्षण कैसे दिया जा सकता है? समुदाय के कोटे में से ही काटकर देना संभव हो पायेगा। जब तक आरक्षित समाज का सामाजिक-आर्थिक उन्नयन सुनिश्चित नहीं हो जाता है, तब तक उनके हिस्से का आरक्षण किसी भी अन्य पंथ के लोगों को देने की बात सोचना भी न्याय और संविधान विरुद्ध है।

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