सांस्कृतिक राजधानी चावण्ड का महाराणा प्रताप स्मारक समिति द्वारा जीर्णोद्धार

सांस्कृतिक राजधानी चावण्ड का महाराणा प्रताप स्मारक समिति द्वारा जीर्णोद्धार

धर्मनारायण

सांस्कृतिक राजधानी चावण्ड का महाराणा प्रताप स्मारक समिति द्वारा जीर्णोद्धार

विश्व वंदनीय महाराणा प्रताप का सम्पूर्ण जीवन अद्वितीय साहस, अतुलनीय त्याग, उत्कृष्ट राष्ट्रप्रेम एवं स्वाधीनता की दिव्य ज्योति का प्रेरणा स्रोत रहा है। उन्होंने अपने 25 वर्षों के राज्यकाल में 22 वर्षों तक अकबरी साम्राज्य के विरुद्ध सतत संघर्ष कर मेवाड़ की अस्मिता को बनाए रखा। संघर्ष के बाद महाराणा ने जनजाति बहुल व विपुल वनाच्छादित चावण्ड को मेवाड़ की राजधानी बनाया क्योंकि एक तो चावण्ड सुरक्षित स्थान था, दूसरा भील समाज की राणा के प्रति अटूट श्रद्धा व असीम सहयोग था।

चावण्ड की पहाड़ियों में लम्बे समय तक भटकने के बाद भी शाहबाज खां प्रताप का पता नहीं लगा पाया और निराश होकर वापस अकबर के पास चला गया। अपने जीवन के शांतिकाल में चावण्ड में रहते हुए महाराणा ने अपने उत्कृष्ट विकास कार्यों से एक योग्य लोक कल्याणकारी शासक के रूप में स्वयं को दर्शाया। मेवाड़ के विकास कार्यों को गति प्रदान की। चामुंडा माता का मंदिर बनवाया। अपने व अपने सहयोगी सरदारों के लिए महलों का निर्माण करवाया। अस्त व्यस्त मेवाड़ को संगठित कर आर्थिक व सांस्कृतिक व्यवस्था दी। तत्कालीन निर्माणों में स्थापत्य व शिल्प कला की उत्कृष्टता आज भी देखी जा सकती है। साहित्य व चित्रकला के क्षेत्र में भी यह समय विशिष्ट महत्व का रहा। चक्रपाणि मिश्र, रामासांदू, हेमरतन सूरी व दुरसा आढ़ा इसके विशिष्ट उदाहरण हैं।

सुदीर्घ कालखंड में ऐतिहासिक महलों का विध्वंस जगविदित है, चावण्ड भी इससे अछूता नहीं रहा। प्रताप के टूटे-फूटे महलों के खंडहर पर एक मनीषी वैद्य रामेश्वर प्रसाद कुमावत का ध्यान गया। उन्होंने सन 1965-66 में चावण्ड के सजग व सक्रिय नागरिकों से संपर्क किया और 1971 में लालचंद जैन व सोहन लाल आमेटा को प्रेरित कर उनके नेतृत्व में एक स्मारक समिति का गठन किया। महाराणा प्रताप के हजारों चित्र एवं उनके जीवन की महत्वपूर्ण तिथियों से अंकित फोल्डर छपवाए। समाज से एक-एक रुपए की सहयोग राशि  एकत्रित की गई। कुछ भामाशाहों से बड़ा आर्थिक सहयोग भी लिया। तत्कालीन राज्यपाल (कर्णाटक) मोहनलाल सुखाड़िया के सहयोग से महाराणा प्रताप, उनके सहयोगी राणा पूंजा, भामाशाह, हकीम खां सूरी एवं झालामान की मूर्तियों को महलों के पास टेकरी पर स्थापित किया। संपूर्ण समाज ने सचेत मन से समिति को सहयोग दिया। आज समिति के पास चावण्ड के विकास की बहुत सारी योजनाएं हैं।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *