मातृभूमि वन्दना
हरि
हे मातृभूमि! तेरे चरणों में,
मैं नित नित शीश झुकाता हूँ।
तेरे आँगन की क्यारी में, माँ!
मैं नित नये पुष्प लगाता हूँ।
हे मातृभूमि…।।
सदा लहराए तेरा दामन,
रहे सलामत हर घर आँगन।
चमके मस्तक पर सूरज सा,
स्वर्णमय ये शिखर हिमालय।
तेरे आँचल की छाया में, माँ!
मैं नित नये स्वप्न सजाता हूँ।
हे मातृभूमि….।।1।।
ऋषि मुनियों की पावन धरती,
महाज्ञानियों के धाम यहाँ।
वीरों के बलिदान से गर्वित,
गूंजा करते गान जहाँ।
तेरी पूजा की थाली में, माँ !
मैं नित नये दीप जलाता हूँ।
हे मातृभूमि….।। 2 ।।
एकलव्य की प्रखर साधना,
अभिमन्यु का त्याग महान।
केशव की गीता की वाणी,
राम-भरत का हिन्द महान।
तेरी वसुधा की गोदी में, माँ !
मैं नित नये वीर सुलाता हूँ।
हे मातृभूमि…..।। 3 ।।