मानव सभ्यता के लिये आस्था और प्रकृति का अस्तित्व बचाए रखना आवश्यक- भैय्याजी जोशी

मानव सभ्यता के लिये आस्था और प्रकृति का अस्तित्व बचाए रखना आवश्यक- भैय्याजी जोशी

मानव सभ्यता के लिये आस्था और प्रकृति का अस्तित्व बचाए रखना आवश्यक- भैय्याजी जोशीमानव सभ्यता के लिये आस्था और प्रकृति का अस्तित्व बचाए रखना आवश्यक- भैय्याजी जोशी

अमरकंटक। गंगा, नर्मदा जैसी प्रमुख जीवनदायिनी नदियों के प्रति लोगों की बड़ी आस्था है। लेकिन सिर्फ इससे काम नहीं चल सकता। जब नदियों, जंगलों, पर्वतों का अस्तित्व ही नहीं रहेगा तो सिर्फ आस्था का क्या करेंगे? 14 जनवरी, 2023 शनिवार शाम माता नर्मदा की उद्गम नगरी अमरकंटक के महामृत्युंजय आश्रम में आयोजित नर्मदांचल संवाद यात्रा की महत्वपूर्ण विचार गोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भैय्याजी जोशी ने कहा कि मानव सभ्यता के लिये आस्था और प्रकृति का अस्तित्व बचाए रखना आवश्यक है। प्रकृति के संरक्षण से समाज की सुरक्षा है और यह उसकी शक्ति भी है। इसके लिये हमें जनसामान्य के प्रबोधन का कार्य करना होगा। प्रकृति संरक्षण के लिये जन जागरूकता, जन प्रबोधन की आवश्यकता है।‌ उन्होंने कहा कि पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण की हमारी परंपरा रही हैं

नर्मदांचल संवाद यात्रा के प्रमुख उद्देश्यों…. मां नर्मदा के पुरातन स्वरूप, वर्तमान परिवेश, आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं वर्तमान नर्मदा तटों पर जीविका के साधन जैसे विभिन्न पहलुओं पर अमरकंटक के सुप्रसिद्ध संत स्वामी विश्वेश्वर आनंद जी महाराज, स्वामी परमानंद जी महाराज पेंड्रा, डॉ. दिनेश जी ग्राम विकास प्रांत प्रमुख, जनार्दन डांगे पर्यावरणविद, रामकृष्ण प्रांत प्रमुख पर्यावरण संरक्षण गतिविधि महाकौशल प्रांत सहित आसपास के क्षेत्र से नर्मदा एवं प्रकृति संरक्षण के लिये कार्य करने वाले विषय विशेषज्ञों, समाज सेवी, शोधकर्ता, कृषि वैज्ञानिक, एनजीओ संचालकों को संबोधित करते हुए भैय्याजी जोशी ने कहा कि लोकतंत्र में सरकार बड़ी शक्ति है। लेकिन सरकार की अपनी विवशताएं होती हैं। दो बातों का बड़ा दबाव होता है, पहला अध्ययन का, ज्ञान और अनुभव के आधार पर और दूसरा संख्या बल (भीड़) के आधार पर सरकार से बात करने का सिस्टम है। लोगों की अज्ञानता एक बड़ी समस्या है। लोगों की अज्ञानता दूर करना बड़ी चुनौती है।

हम मनुष्य हैं, हम ही श्रेष्ठ हैं। इस अधिकार से हम प्रकृति पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, जबकि व्यक्तियों की अनदेखी और व्यवस्था में कमी पर्यावरण की बडी चुनौतियां हैं। कचरा हम ही फेंकते हैं। नदियों में गन्दगी हम ही डालते हैं। अधिक उत्पादन के लिये कृषि में रासायनिक खाद, कीट नाशक हम उपयोग करते हैं। अंधाधुंध वनों की कटाई, बेहिसाब उत्खनन मनुष्य ही कर रहा है। उपस्थित लोगों के विचारों और प्रकृति संरक्षण के लिये किये जा रहे कार्यों का स्वागत करते हुए आह्वान किया कि हम सबको प्रकृति की, वसुंधरा की, नदियों की, पर्यावरण के संरक्षण का नित्य पूजन, संस्कार, कर्म में संकल्प लेना होगा। तभी नर्मदा सहित सभी नदियाँ, उनकी सहायक नदियाँ बची रहेंगी।

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