तोड़ मरोड़कर समाचार प्रस्तुत करने वालों का सच बनाम झूठ

मीडिया का सच बनाम झूठ

मीडिया का सच बनाम झूठ

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक फलक पर क्या कुछ घटित हो रहा है, इससे आम जन मीडिया के द्वारा ही परिचित होते हैं। इसलिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। देश और समाज का सही चित्रण जन जन तक पहुंचाना मीडिया की जिम्मेदारी है। लेकिन आज जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है उससे लगता है जैसे बाड़ ही खेत को खा रही है। फेक व तोड़ मरोड़कर वर्ग संघर्ष पैदा करने वाले समाचार आजकल मुख्यधारा की मीडिया में भी स्थान पाने लगे हैं।

11 दिसम्बर के टाइम्स ऑफ इंडिया में एक समाचार था कि अजमेर जिले की पीसांगन तहसील के ग्राम पगारा में अनुसूचित जाति के दूल्हे की घोड़ी पर बारात पुलिस सुरक्षा में निकली। जानकारी मिलने पर संघ के कार्यकर्ता वहाँ गए।पता चला कि दोनों पक्षों में समझौता हो गया था। पर वास्तविक घटना क्या थी? जाने पर पता चला कि पगारा गॉंव गुर्जर जाति बहुल है। यहाँ गुर्जर समुदाय के आराध्य लोक देवता श्री देवनारायण जी का एक मंदिर है। परम्परागत रूप से गाँव का कोई भी व्यक्ति इस मंदिर के सामने से निकलते समय जूते भी खोलकर हाथ में ले लेता है। कोई भी घोड़ी पर बैठकर मंदिर के सामने से नहीं निकलता। जिस अनुसूचित जाति परिवार में पुत्री का विवाह था, उस परिवार को लगा कि हो सकता है गॉंव के लोग मंदिर के सामने से घोड़ी पर वर – यात्रा न निकलने दें। अतः उन्होंने पुलिस- प्रशासन को सूचना दे दी। गाँव में किसी विवाद के कारण पुलिस नहीं आयी थी। प्रशासन ने सबसे चर्चा की और गाँव की स्थापित परम्परा के अनुरूप दोनों पक्षों में समझौता हो गया। मार्ग में परिवर्तन कर वर शोभा यात्रा घोड़ी पर बिना किसी विरोध के सहज रूप से निकली। लेकिन मीडिया ने इसे अनुसूचित जाति समाज बनाम गुर्जर समाज बनाकर प्रस्तुत किया।

तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत समाचार

इसी तरह तीन दिन पहले NDTV इंडिया पोर्टल पर एक समाचार पढ़ने को मिला – मध्यप्रदेश: छतरपुर जिले में पार्टी में भोजन छू लेने पर दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या। समाचार के विवरण में था – ‘मध्य प्रदेश में एक खौफनाक घटना में एक 25 वर्षीय दलित युवक को उसके दो अन्य पिछड़ी जाति (OBC) के दोस्तों ने कथित तौर पर पीट-पीटकर मार डाला। यह वारदात छतरपुर जिले के किशनपुरा गांव में हुई। दलित युवक ने एक निजी पार्टी में अपने दोस्तों का भोजन छू लिया था। इस पर उन्होंने उसे पीट-पीटकर मार डाला।’ इस समाचार की तह में जाने पर पता चला कि तीनों दोस्त थे (जोकि NDTV इंडिया टीवी ने भी लिखा है), तीनों पार्टी कर रहे थे और तीनों नशे में थे। पार्टी के दौरान ही तीनों दोस्तों में मार पीट हुई, जिसमें एक दोस्त की मौत हो गई। अब चूंकि यहॉं मरने वाला वंचित समाज से था और मारने वाले अन्य पिछड़ा वर्ग से। इसलिए यह समाचार बन गया। इन्डियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, छतरपुर के पुलिस अधीक्षक सचिन शर्मा ने कहा, “तीनों एक-दूसरे के मित्र थे और जिस समय ये घटना घटी वे नशे में थे। इस दौरान खाने को लेकर झगड़ा हुआ और दोनों ने देवराग अनुरागी पर हमला किया।”

ऐसा पहली बार नहीं है जब मुख्यधारा की मीडिया ने किसी सामाजिक अपराध के समाचार को जातिगत भेदभाव की शक्ल देने का प्रयास किया हो। कुछ महीनों पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस में भी ऐसा ही गंदा खेल खेला गया था। तोड़ मरोड़कर समाचार प्रस्तुत करने वाले आखिर सकारात्मक भूमिका कब निभाएंगे..?

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