भारतीय मुसलमानों द्वारा इजराइल विरोध के मायने क्या?

भारतीय मुसलमानों द्वारा इजराइल विरोध के मायने क्या?

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारतीय मुसलमानों द्वारा इजराइल विरोध के मायने क्या?

इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन वे इजराइल का विरोध कर रहे हैं। उनका यह विरोध एक बार को तब समझ आ सकता था जब इजराइल में काम करने गए मुसलमानों पर वहॉं कोई अत्‍याचार हो रहा होता। किंतु, जब इस मामले से भारतीय मुसलमानों का कोई सीधा संबंध ही ना हो और भारत के मुसलमानों में एक बड़ी जमात इजराइल का विरोध करती नजर आए तो अनेक प्रश्‍न खड़े होते हैं ?

वस्‍तुत: यहां कई घटनाएं तेजी से पिछले एक सप्‍ताह में घटी हैं। इनमें दो घटनाएं जो पिछले सप्‍ताह से चल रहे इजराइल और फिलिस्‍तीन के आपसी झगड़े के बीच सामने आई हैं, उन्‍होंने खास तौर से फिर सोचने पर मजबूर किया है कि इन तमाम मुसलमानों की भक्‍ति किस ओर है? कायदे से होना क्‍या चाहिए था? हम सभी जानते हैं कि इजराइल विरोधी प्रदर्शनों पर जम्मू कश्मीर पुलिस ने सख्त रुख अपनाया हुआ है, इसके बाद भी पुलिस को श्रीनगर के पादशाही बाग इलाके से 18 साल के एक युवक मुदासिर गुल को इसलिए गिरफ्तार करना पड़ा क्‍योंकि उसने फिलिस्तीन के समर्थन में वॉल पेंटिंग बनाईं।

जम्‍मू-कश्‍मीर के कई क्षेत्रों में इस्‍लामिक लोगों ने इजरायल के विरोध में प्रदर्शन किए। इजराइल विरोधी नारेबाजी के दौरान इजरायल ध्वज भी जलाने की घटनाएं घटीं। प्रदर्शनकारियों ने इजराइल को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी देश ठहराया। फिर इजराइली कंपनियों का विरोध किस तरह करना है, उसका असर उत्‍तर प्रदेश में कुछ इस तरह दिखा कि कानपुर के समाजवादी पार्टी नेता डॉ. इमरान, नाफुद्दीन, आबिद हसन इरानी और जफरखान के साथ मुनाउद्दीन ने सार्वजनिक पोस्‍टर तक लगवा दिए।

भारतीय मुसलमानों द्वारा इजराइल विरोध के मायने क्या?

देश में टीपू सुल्तान पार्टी की तरफ से ट्वीट किए जा रहे हैं। एक मोहम्मद जाहिद ने आप नेता अमानतुल्ला खान को कोट करते हुए लिखा, “हम मस्जिद ए अक्सा की ओर उठने वाले हर नापाक हाथ को काट डालेंगे, ये याद रखना मस्जिद ए अक्सा कोई इमारत नहीं है, यह हमारे दिल की धड़कन है। जब तक ये है तो हम हैं, अगर ये नहीं तो हम भी नहीं।”

यहां यह भी जान लें कि आम आदमी पार्टी के नेता के जिस ट्वीट को जाहिद ने कोट किया था, उसमें लिखा था, “हम फ़िलिस्तीन पर हो रहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ हैं। जिस तरह इजरायल फ़िलिस्तीन के लोगों पर बम बरसा कर मासूम जिंदगियों को तबाह कर रहा है। यह नाकाबिले बर्दाश्त है। ये इस्लाम विरोधी ताकतें एक दिन नेस्तानाबूद होंगी। हिंदुस्तान इस मुश्किल घड़ी में फ़िलिस्तीन के साथ है।”

ऐसा ही एक ट्वीट मालेगांव के एआईएमआईएम विधायक मुफ्ती इस्माइल कासमी को उद्धृत कर लिखा गया। कासमी ने अपने ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने यूएन से दारुल उलूम देवबंद की माँग पर इजराइल को आतंकवादी राज्य घोषित करने का आग्रह किया है। इसी प्रकार से कुछ ऐसे भी भारतीय मुसलमान हैं जो सीधे सोशल मीडिया पर भारत में यहूदियों को धमकाते हुए भी दिखाई दे रहे हैं।

अब मामला यह है कि भारत के इन तमाम मुसलमानों की फिलिस्‍तीन भक्‍ति बाहर क्‍यों आ रही है, जबकि होना यह था कि देश में कोई भी हो वह भारत का मुसलमान हो या हिन्‍दू उसे या तो तटस्‍थ रहकर फिलिस्‍तीन-इजराइल झगड़े को देखना चाहिए या फिर बहुत ही ताकत के साथ खड़े होकर इजराइल का मनोबल बढ़ाना चाहिए।

गोया, कोई पूछ सकता है कि क्‍यों खड़ा होना चाहिए भारत के लोगों को इजराइल के पक्ष में? इसका सिर्फ एक उत्‍तर हो सकता है कि जो आपके बुरे दौर में भी साथ दे, उसका ऋण उतारने का जब-जब अवसर मिले, तब उसके लिए हमेशा आगे रहना चाहिए। भारत और इजराइल के संबंध भी कुछ ऐसे ही हैं। इन तथ्‍यों से इतिहास भरा पड़ा है कि एक छोटे से देश इजराइल के भारत पर कितने अधिक एहसान हैं। कारगिल युद्ध में जब किसी देश ने हमारी मदद नहीं की, तब इजरायल वह इकलौता देश आगे आया जिसने भारत को लेजर गाइडेड मिसाइल देते हुए एक सच्चे मित्र की भूमिका निभाई।

वर्तमान में कृषि क्षेत्र के अंतर्गत इजराइल के सहयोग से रेनवाटर हार्वेस्टिंग (जल संरक्षण) की टेक्नोलॉजी के साथ ही सब्जी और फलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना भारत में की जा रही है। इजराइल ड्रिप इरिगेशन टेक्नोलॉजी भारत को देने जा रहा है। इससे बुंदेलखंड के साथ ही महाराष्ट्र और राजस्थान के उन क्षेत्रों को फायदा होगा, जहाँ सिंचाई के लिए सीमित जल उपलब्ध है।

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की पहल पर इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस बात पर सहमत हुए हैं कि उनकी रक्षा कंपनियां ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में उत्पादन करेंगीं और उच्‍च आयुध टेक्नोलॉजी को भारत के साथ साझा करेंगी. इजराइल ने भारत को बराक मिसाइल के साथ ही फाल्‍कॉन हवाई पूर्व चेतावनी और नियंत्रण सिस्‍टम उपलब्ध करवाया है। इसी प्रकार स्टार्ट-अप में सहयोग और आतंकवाद का मुकाबला आदि अनेक मामलों में सतत भारत को सहयोग इजराइल से मिल रहा है। ऐसे में जो भारतीय मुसलमान आज इजराइल के विरोध में दिखाई दे रहे हैं, क्‍या उसे कहीं से भी सही माना जा सकता है?

दूसरा जो फिलिस्‍तीन के ‘हमास’ ने किया, क्‍या वह सही था? दुनिया जानती है कि ‘हमास’ एक आतंकी संगठन है। हमास का मतलब है ‘हरकत उल मुकवामा अल इस्लामिया’। वस्‍तुत: यह फिलिस्तीन का सामाजिक-राजनीतिक आतंकवादी संगठन है जो मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में 1987 में स्थापित किया गया था। इसे आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है। इस आतंकवादी संगठन को इजरायली सरकार और नागरिकों के खिलाफ अपने अभियान में हिज़्बुल्लाह लेबनान आतंकवादी संगठन का समर्थन भी हासिल है। यह अपने हमलों में बेहिचक छोटे बच्‍चों एवं महिलाओं को हथियार के रूप में उपयोग करता आया है। अब यहां विचार करिए कि जो भारत में मुसलमान इस संगठन का समर्थन कर रहे हैं, वह क्‍या प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से आतंकवाद का समर्थन नहीं कर रहे हैं?

चलो थोड़ी देर के लिए इस बात को छोड़ भी दें, तो जो तथ्‍य निकलकर सामने आए हैं, उसमें भी घटना की शुरुआत यरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद के बाहर से फिलिस्तिनियों द्वारा इजरायलियों पर फेंके गए पत्थरों के बाद से शुरू हुई है। संघर्ष के दूसरे दिन हमास ने इजरायल पर 300 रॉकेट दाग दिए। इस हमले में एक भारतीय महिला सौम्या संतोष की भी मौत हुई है. तब से अब तक हमास ने इजरायल पर 4,000 से ज्यादा रॉकेट दागे हैं। ‘हमास’ ने पहली बार अय्याश 250 मिसाइल का इस्तेमाल किया है, जिसकी क्षमता 250 किलोमीटर तक मार करने की है। ये अलग बात है कि इजरायल के मजबूत मिसाइल रोधी सिस्टम आयरन डोम ने 90 फीसदी रॉकेट हमलों को डिफ्यूज यानि नाकाम कर दिया है।

बात सिर्फ इतनी है कि कोई यदि हमला करे तो क्‍या करना चाहिए? क्‍या चुपचाप रहना चाहिए और सहना चाहिए? जब बैठे बिठाए 300 रॉकेट फिलिस्तीनियों की ओर से ‘हमास’ छोड़ेगा, तब ऐसे में क्‍या इजराइल को अपनी सुरक्षा के लिए कुछ नहीं करना चाहिए था?

ये ऐसे प्रश्‍न हैं जिनके उत्‍तर में निश्‍चित ही यही कहा जाएगा कि जैसे एक व्‍यक्‍ति को अपनी स्‍वतंत्रता प्रिय है, वैसे ही एक देश को भी यह अधिकार है कि यदि पड़ोसी देश बार-बार आगे होकर झगड़ने आ रहा हो तो उसका ठीक से प्रतिकार करे। आज इजराइल बदले में वही कर रहा है। काश, अच्‍छा हो कि भारतीय मुसलमान भी इस बात को समझें कि देश से बड़ा धर्म नहीं होता, जो हमारे देश का हितैषी वह हमारा मित्र।

(लेखक फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य एवं पत्रकार हैं)

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