धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है मुस्लिम वक्फ बोर्ड
धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है मुस्लिम वक्फ बोर्ड
धर्मनिरपेक्ष देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है मुस्लिम वक्फ बोर्ड। विडंबना देखिए भारत विभाजन के पश्चात पाकिस्तान से जो हिन्दू भारत आए, उनकी पाकिस्तान में रह गई चल अचल संपत्तियों पर मुसलमानों और पाकिस्तान सरकार ने कब्ज़ा कर लिया। लेकिन भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की जमीन भारत सरकार ने वक्फ बोर्ड को दे दी। वर्ष 1954 में वक्फ बोर्ड एक्ट बनाया गया और वर्ष 1995 में वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव कर वक्फ बोर्डों को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए गए। इसके बाद से वक्फ बोर्ड की संपत्ति में लगातार वृद्धि हो रही है।
अब प्रश्न है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में वक्फ एक्ट जैसा मजहबी कानून कैसे लागू हो गया? हिन्दुओं, ईसाइयों और सिखों के लिए ऐसा कोई अधिनियम क्यों नहीं है? केवल मुसलमानों के लिए ही क्यों? तुष्टीकरण की पराकाष्ठा देखिए कि वर्ष 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (places of worship act) बनाया गया, जिसमें कहा गया है कि देश की स्वाधीनता के समय जो धार्मिक स्थल थे, उन्हें वैसे ही रखा जाएगा। वहीं, 1995 में वक्फ एक्ट लागू होता है, जो देशभर के वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति पर अपना अधिकार जताने का अधिकार देता है और पीड़ित पक्ष इसके विरुद्ध देश की किसी भी अदालत में अपील भी नहीं कर सकता ।
वर्ष 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां चार लाख एकड़ जमीन पर फैली हुई थीं, जो अब दोगुना से भी अधिक हो गई हैं, जबकि देश में भूमि उतनी ही है जितनी पहले थी, तो वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है? वक्फ बोर्ड देश में जहां भी कब्रिस्तान की बाउंड्रीवाल कराता है, उसके आसपास की भूमि को अपनी संपत्ति मानता है। इसी प्रकार धीरे-धीरे अवैध मजारों और मस्जिदों को भी वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति घोषित कर देता है।
2013 में, इस अधिनियम में और संशोधन करके वक्फ बोर्डों को किसी की संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियाँ दे दी गईं, जिन्हें किसी भी अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती थी। मार्च 2014 में, लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक पहले, कांग्रेस ने इस कानून का उपयोग करके दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दे दिया। इस काले कानून के कारण अब तक देश में हिंदुओं की हजारों एकड़ भूमि छीन ली गई। हाल ही में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड ने 1500 साल पुराने हिन्दू मंदिर समेत तमिलनाडु के 6 गांवों को वक्फ संपत्ति घोषित किया है।
दिल्ली सरकार के अधीन काम करने वाले दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन ने 2019 में एक रिपोर्ट दी। जिसमें केवल उन हिंदू धर्मस्थलों का विवरण था, जिन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा जताता है, रिपोर्ट का शीर्षक था- The legal Status Of Religious Spaces in and Around West Delhi
यह रिपोर्ट उस आरोप के बाद तैयार की गई थी, जिसमें आरोप था कि दिल्ली में वक्फ बोर्ड अवैध तरीके से कब्जे करके मस्जिद और कब्रिस्तान का निर्माण करवा रहा है। लेकिन रिपोर्ट में इन आरोपों को खारिज कर दिया गया था।उलटा दिल्ली में कई मंदिरों को अवैध घोषित करते हुए उन्हें वक्फ बोर्ड की जमीन पर बना हुआ बता दिया गया और 173 पन्नों की रिपोर्ट में दिल्ली की सभी मस्जिदों को क्लीन चिट दे दी गई, जबकि कई हिन्दू मंदिरों को Illegal Construction की श्रेणी में डाल दिया गया।
दिल्ली वक्फ बोर्ड ने वर्ष 2016 में दावा किया था कि उसकी 30 प्रतिशत सम्पत्तियों पर DDA और अन्य लोगों का कब्ज़ा है। वर्ष 2018 में भारत सरकार ने बताया था कि दिल्ली में वक्फ बोर्ड की 373 सम्पत्तियों पर कब्ज़ा हुआ है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने 23/06/2023 शुक्रवार को यह आदेश पारित किया है कि 1947 से पहले ट्रांसफर की गई किसी भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार नहीं होगा क्योंकि उसके कागज मान्य नहीं होंगे। इसके अतिरिक्त 1947 के बाद भी जिन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जताता है।उनके कागज उसे दिखाने होंगे कि वे संपत्तियां उसके पास आईं कहाँ से?
यदि…वक्फ बोर्ड अपनी किसी संपत्ति का उचित कागज नहीं दिखा पाता है तो सुप्रीम कोर्ट के 23/06/2023 शुक्रवार के निर्णय के अनुसार वो संपत्ति उसके मूल मालिक को वापस दे दी जाएगी और अगर संपत्ति का मूल मालिक बंटवारे के बाद देश छोड़कर जा चुका है अथवा 1962, 1965 & 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने के आरोप के कारण भाग गया है, तो उस स्थिति में वो संपत्ति “शत्रु संपत्ति अधिनियम 2017” के अंतर्गत सरकार की हो जाएगी।
1947 में बंटवारे के समय पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) को मिलाकर उन्हें लगभग 10 लाख 32 हजार स्क्वायर किलोमीटर भूमि दी गई थी और एक अनुमान के अनुसार इतनी ही भूमि आज भारत में वक्फ बोर्ड के कब्जे/रिकॉर्ड में है।