कारगिल युद्ध में बलिदान हुए मेजर राजेश सिंह की वीरगाथा
मेजर राजेश सिंह अधिकारी इंडियन मिलिट्री एकेडमी से 11 दिसंबर, 1993 को सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई को उनकी यूनिट को 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने का दायित्व सौंपा गया। यह पोजीशन भारतीय सेना के लिए बेहद अहम थी क्योंकि यहीं पर भारतीय सेना बंकर बनाकर टाइगर हिल पर बैठे दुश्मनों पर निशाना साध सकती थी।
मेजर राजेश सिंह अपनी कंपनी की अगुआई कर रहे थे, तभी दुश्मन सेना ने उन पर दोनों तरफ से मशीनगनों से हमला शुरू कर दिया। मेजर राजेश सिंह ने तुरंत अपनी रॉकेट लांचर टुकड़ी को दुश्मन को उलझाए रखने का निर्देश दिया और दुश्मन के दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद मेजर अधिकारी ने धीरज से काम लेते हुए अपनी मीडियम मशीनगन टुकड़ी को एक चट्टान के पीछे से मोर्चा लेने और दुश्मन को उलझाए रखने को कहा और अपनी हमलावर टीम के साथ एक-एक इंच आगे बढ़ते रहे।
दुश्मन की उपस्थिति में असाधारण वीरता व उत्कृष्ट नेतृत्व का प्रदर्शन
मोर्चा लेने के दौरान ही मेजर राजेश सिंह दुश्मन की गोलियों से गंभीर रूप से घायल हो गए, फिर भी वह अपने सैनिकों को निर्देशित करते रहे और वहां से हटे नहीं। उन्होंने दुश्मन के दूसरे बंकर पर हमला किया और वहाँ बैठे पाकिस्तानी सैनिक को मार गिराया। इस तरह मेजर अधिकारी ने तोलोलिंग ऑपरेशन में दो बंकरों पर कब्जा कर लिया, जो अंत में प्वाइंट 4590 को जीतने में सहायक सिद्ध हुए। लेकिन वीरता और अदम्य साहस का परिचय देते हुए वे स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गए। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर राजेश सिंह का जीवन परिचय
राजेश सिंह अधिकारी का जन्म 25 दिसंबर 1970 को नैनीताल में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक व कॉलेज शिक्षा नैनीताल में ही हुई। सेना के प्रति उनका रुझान उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी में ले आया और 11 दिसंबर 1993 को मेजर राजेश सिंह अधिकारी भारतीय सैन्य अकादमी से ग्रेनेडियर में कमीशन हुए। मात्र 28 वर्ष की आयु में वे वे देश पर बलिदान हो गए। कारगिल युद्ध ने उनकी जान ले ली।